प्रधानमंत्री मोदी के मल्टीपल स्ट्राइक से बैकफुट पर केजरीवाल, राहुल और...
राहुल गांधी अपनी खाट सभाओं में अक्सर सूट बूट की सरकार से लेकर निकम्मी सरकार कह कर बीजेपी की सरकार को कोसते रहे - लगता है अब उन्हें नये नारे गढ़ने होंगे.
-
Total Shares
सेना की सर्जिकल स्ट्राइक ने सरहद पार हड़कंप तो मचा रखा है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधियों पर भी भारी पड़ रहा है. 24x7 मोदी को टारगेट पर रखने वाले अरविंद केजरीवाल जहां बैकफुट पर देखे जा रहे हैं वहीं राहुल गांधी भी तारीफ कर रहे हैं.
हमारे प्रधानमंत्री
राहुल गांधी जब भी संसद में नरेंद्र मोदी का जिक्र करते रहे, उनके मुहं से निकलता - आपके प्रधानमंत्री. असल में वो बीजेपी नेताओं की ओर देख कर सरकार पर हमले कर रहे होते थे. हालांकि, जब उन्हें ध्यान दिलाया जाता वो सुधार करते और हमारे प्रधानमंत्री बोलते.
इसे भी पढ़ें: सर्जिकल स्ट्राइक की अगली कड़ी में हाफिज सईद?
यहां तक तो चलता भी, देवरिया से दिल्ली तक अपनी किसान यात्रा के दौरान तो राहुल ने उरी हमले को लेकर भी प्रधानमंत्री मोदी की खिंचाई की - 'इवेंट मैनेजमेंट से लड़ाई नहीं जीती जाती.'
लेकिन पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक का मोदी के फैसले का राहुल गांधी पर भी खूब असर हुआ है. ऐसा लगता है तथाकथित भक्तों को कोसते कोसते वो खुद भी मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ने लगे हैं.
मैं उनको धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने ढाई साल में पहला एक्शन लिया है जो प्रधानमंत्री के लायक एक्शन है, और मेरा उनको पूरा समर्थन है
— Office of RG (@OfficeOfRG) September 30, 2016
जब प्रधानमंत्री जी, एक प्रधानमंत्री के लायक काम करते हैं तो मैं भी उनका समर्थन करता हूं
— Office of RG (@OfficeOfRG) September 30, 2016
कांग्रेस पार्टी और पूरा हिन्दुस्तान उनके साथ इस बात पर खड़ा हुआ है।
— Office of RG (@OfficeOfRG) September 30, 2016
राहुल अपनी खाट सभाओं में अक्सर सूट बूट की सरकार से लेकर निकम्मी सरकार कह कर बीजेपी की सरकार को कोसते रहे - लगता है अब उन्हें नये नारे गढ़ने होंगे. मोदी ने टीम राहुल की भी मुसीबत बढ़ा दी है - अब फोटोकॉपी से काम तो चलने से रहा. उन्हें नये सिरे से नारे गढ़ने होंगे - और कहानियां भी तैयार करनी होंगी.
बैकफुट पर विरोधी
डीजीएमओ की प्रेस कांफ्रेंस का ऐसा असर हुआ कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अपनी प्रेस कांफ्रेंस को स्थगित करना पड़ा. दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र भी इसी मकसद से बुलाया गया था - हालांकि, डेंगू और चिकनगुनिया भी चर्चा के विषय थे.
False cases against AAP MLAs n ministers, FIR against me, CBI raid on me - why? A v big conspiracy. Will expose in Del Assembly on Fri
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) September 27, 2016
शायद केजरीवाल को लगने लगा है कि अब लोगों को ये समझाना मुश्किल होगा कि मोदी 'कायर' और 'मनोरोगी' हैं या फिर उनकी 'हत्या' कराना चाहते हैं. राहुल गांधी की ही तरह केजरीवाल के रवैये में आये बदलाव के सबूत खुद उनके पुराने और नये ट्वीट हैं.
Excellent article. On Uri, rather than Pak, India seems to be getting isolated internationally
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) September 27, 2016
भारत माता की जय। पूरा देश भारतीय सेना के साथ है
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) September 29, 2016
इस बीच इंडियन एक्सप्रेस ने खबर दी है कि दिल्ली सरकार के नए विज्ञापनों पर सूचना एवं प्रचार निदेशालय ने रोक लगा दी है. निदेशालय के हवाले से छपी रिपोर्ट के अनुसार वे सभी विज्ञापन सुप्रीम कोर्ट की गाइलाइन का उल्लंघन कर रहे थे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक आप सरकार अपने उन विज्ञापनों में केंद्र सरकार के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाना चाहती थी.
"है कि नहीं..." |
मायावती ने तो पहले ही शक जता रखा था कि चुनाव जीतने के लिए बीजेपी की सरकार युद्ध तक करा सकती है - और अब वो अपनी रैलियों में इसे जोर शोर से उठा सकती हैं. मगर, देशभक्ति में आकंठ डूबा जनमानस क्या ऐसी बातों पर ध्यान देगा. आजीवन युद्ध के खिलाफ आवाज बुलंद किये रहने वाले वाम नेता भी मजबूरन मोदी के साथ खड़े हो गये हैं. येचुरी का कहना है कि उनकी पार्टी सैन्य कार्रवाई का समर्थन करती है लेकिन महसूस करती है कि सैन्य कार्रवाई जवाब नहीं है तथा दोनों पड़ोसियों के बीच वार्ता बहाल होनी चाहिए.
ब्रांड मोदी फिर से
पाकिस्तान के खिलाफ इस जोरदार एक्शन के बाद बीजेपी एक बार फिर 2014 के लोग सभा और उसके बाद के विधानसभा चुनावों की तरह ब्रांड मोदी के साथ मैदान में उतर सकती है. 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे के साथ अब बीजेपी कह सकती है कि देश मोदी के हाथों में सुरक्षित है. देशभक्ति में वो ताकत है कि धर्म और जाति के बंधन भी पीछे छूट जाते हैं.
यूपी के साथ साथ पंजाब, उत्तराखंड और मणिपुर में भी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं - बीजेपी चाहे तो बस मोदी के चेहरे से काम चला सकती है. विरोधियों को बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी पर हमले की नयी तरकीब खोजनी होगी.
इसे भी पढ़ें: इस 'सर्जिकल स्ट्राइक' की पटकथा तो पहले ही लिखी जा चुकी थी
जानकारों को भी सेना के इस सर्जिकल स्ट्राइक में राजनीतिक फायदा ज्यादा नजर आ रहा है. बीबीसी से बातचीत में रक्षा विशेषज्ञ अजय साहनी कहते हैं, "मुझे लगता है कि जिस तरह से इस ऑपरेशन का प्रचार किया जा रहा है उससे साफ जाहिर होता है कि इसका मकसद जितना उस तरफ नुकसान पहुंचाना था उतना ही था कि भारत में जो राजनीतिक लोग हैं उन्हें लुभाना या उसका रुख बदलना. क्योंकि एक तबके में ये ख्याल आ रहा था कि ये सरकार नाकाम हो रही है. पाकिस्तान को लेकर जो वादे किए गए वो पूरे नहीं किए जा रहे हैं और मोदी ने जो स्ट्रांगमैन या सशक्त नेता की छवि पेश की है वो उस पर खरे नहीं उतर रहे हैं, वो भी बाकी सरकारों की तरह नकारा हैं."
उरी हमले के बाद देश गुस्से में था. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत में आधिकारिक तौर पर भले ही ये कह दिया हो कि ऐसी कार्रवाई आगे करने का कोई इरादा नहीं है, फिर भी लोग इसे ट्रेलर के तौर पर ले रहे हैं. हर गली और नुक्कड़ पर चर्चा-ए-आम है - पिक्चर अभी बाकी है दोस्त!
आपकी राय