तीन काली रातें, 3000 मौतें और 32 साल से नहीं मिला कोई जवाब
कुछ यादें इतनी विभत्स होती हैं कि अतीत की जरा सी झलक भी आपको अंदर से झकझोर देती है. ऐसी ही एक याद है 1984 के एंटी-सिख दंगों की. 32 साल भी क्या पीडि़तों को न्याय मिला? जवाब है नहीं.
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कुछ यादें इतनी विभत्स होती हैं कि अतीत की जरा सी झलक भी आपको अंदर से झकझोर देती है. ऐसी ही एक याद है 1984 के एंटी-सिख दंगों की. उस समय मैं थी तो नहीं, लेकिन ये याद मेरे पिता के जहन से आई है जो इन दंगों के प्रत्यक्षदर्शी थे. उन्होंने बताया कि कैसे इंदिरा गांधी की मृत्यू के दूसरे दिन ही दंगे भड़क उठे थे. दूरदर्शन पर किस तरह की खबरें आती थीं. सिख परिवारों के साथ कैसी अमानवीय हरकतें की गई थीं. सुनकर ही रूह कांप गई. इस बात को भले ही 32 साल हो गए हों, लेकिन उस समय जो लोग इसकी चपेट में आए थे क्या उन्हें न्याय मिला? जवाब है नहीं.
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1 नवंबर 1984-
31 अक्टूबर 1984, जिस दिन इंदिरा गांधी के दो सिख बॉडीगार्ड्स ने उनकी हत्या कर दी थी. इसके दूसरे ही दिन से एंटी-सिख दंगे भड़क गए. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2800 मौतें हुई थीं जिसमें से 2100 दिल्ली में थीं, लेकिन असलियत कुछ और ही है. कई सूत्रों का मानना है कि करीब 8000 मौतें हुई थीं जिसमें से 3000 सिर्फ दिल्ली में. इसके अलावा, पंजाब और अन्य सिख इलाकों में करीब 40 शहरों में दंगों का प्रभाव देखने को मिला था. दिल्ली में ही सुल्तानपुरी, मंगोलपुरी, त्रिलोकपुरी और यमुना के पास के अन्य इलाकों में सबसे ज्यादा नरसंहार हुए थे.
भीड़ बेकाबू हो चुकी थी. हाथ में लोहे की छड़ें, चाकू, बैट, बांस, मिट्टी का तेल और पेट्रोल जैसी चीजें लिए दंगाई हर सिख आदमी, औरत और बच्चे की तलाश में थे. सिख महिलाओं के साथ गैंगरेप किए गए, मर्दों को जिंदा जलाया गया. बच्चों तक को नहीं छोड़ा गया. प्रत्यक्षदर्शी तो ये भी याद करते हैं कि सिख परिवारों को जलाने से पहले उनकी उंगलियां काट दी गई थीं. कुछ की आंखें फोड़ दी गई थीं.
दंगों के दौरान की एक फोटो |
सिखों के घर जलाए गए थे. लूट मची थी. जो भी जिसके हाथ आया ले गया. रिफ्यूजी कैम्प में भी आराम नहीं था. वहां भी दहशत थी. लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं थी.
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जब फैली थी खबर..
इंदिरा गांधी को सुबह 9.30 के करीब मारा गया था और शाम 6 बजे ये खबर आधिकारिक तौर पर सामने आई थी. इसके बाद तो जैसे लोग बेकाबू हो गए थे. तीन दिन के अंदर ही 3000 से ज्यादा सिख मारे जा चुके थे और हजारों बेघर हो गए थे. लोग इतने गुस्से में थे की तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर भी पत्थर बरसाए गए थे. वो भी सिख थे तो गुस्सा उन्हें भी झेलना पड़ा.
कब पड़ी थी नींव....
इन दंगों की नींव दरअसल सालों पहले पड़ गई थी जब 1973 में अकाली दल और बाकी सिख संगठनों ने आनंदपुर साहिब अभियान शुरू किया था. इस अभियान के तहत सिख अपने लिए खास दर्जे की मांग कर रहे थे.1970 और 80 के दशक में पंजाब की राजनीति और बिगड़ गई. 1983 में पंजाब सरकार गिर गई. इसी दौर में एक सिख समूह के नेता के तौर पर जर्नैल सिंग भिंड्रेवाल सामने आया. अब तक पंजाब की राजनीति ने खौफनाक मोड़ ले लिया था. जर्नैल को मिलिटेंट करार दिया गया. कुछ सिख संगठनों ने एक अलग राज्य खलिस्तान बनाने की मांग की जिसके लिए दंगे किए गए.
ऑपरेशन ब्लू स्टार |
अब तक पंजाब में आर्मी, टैंक और सैनिक आ चुके थे. अक्टूबर 1983 में कुछ सिख लड़ाकों ने एक बस को रोककर 6 हिंदुओं को गोली मार दी. उसी दिए एक ट्रेन में दो अधिकारियों को मार दिया गया. इसके बाद केंद्र सरकार ने पंजाब सरकार को बर्खास्त कर पंजाब में प्रेसिडेंट रूल की घोषणा की. जनवरी 1984 से जून तक के बीच पांच महीनों में पंजाब में कई हत्याएं हुईं. इन हत्याओं के बाद ही इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार को हरी झंडी दिखाई. यही था वो ऑपरेशन जिसने पूरे देश में हाहाकार मचा दिया. हुआ कुछ ऐसा की जर्नैल ने अमृतसर के हरमंदिर साहिब कॉम्प्लेक्स में हथियारों का जमावड़ा शुरू किया. ऑपरेशन ब्लू स्टार में सभी आतंकियों को चाहें वो जहां भी हो बाहर निकालकर खत्म करने के आदेश थे. मिलिट्री ने तीर्थ माने जाने वाले हरमंदिर साहिब से भी जर्नैल को निकाला गया. इस ऑपरेशन में सूत्रों की मानें तो आर्मी और आम लोगों के साथ करीब 20000 लोगों को नुकसान पहुंचा था. इसी ऑपरेशन में अकाल तख्त मंदिर के ढांचे को काफी नुकसान पहुंचा था. इसका पूरे देश में सिख परिवारों द्वारा विरोध हुआ था और इसी का गुस्सा इंदिरा गांधी के बॉडीगार्ड्स ने उनकी जान लेकर निकाला. यही थी एंटी सिख दंगों की शुरुआत.
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क्या गलती थी किसी की...
इस पूरे घटनाक्रम में किसी एक को दोष देना सही नहीं होगा. कुछ लोगों का मानना है कि कांग्रेस सरकार ने अपनी सिख विरोधी मानसिकता के चलते ऐसा होने दिया. कांग्रेसी नेता सच्चन कुमार और जगदीश टिटलर पर कई बार कार्यवाही हुई. प्रत्यक्षदर्शियों के बयान लिए गए, लेकिन हुआ क्या? उस दौरान जिन परिवारों ने अपना सब कुछ खो दिया उनमें से कई आज भी गरीबी में जी रही हैं. आज भी इतने बड़े दंगे की जिम्मेदारी किसी की नहीं है. 32 साल बीत गए, लेकिन इसे सरकार की नाकामी मानी जाए या देश की ये अभी तक तय नहीं हो पाया.
सांकेतिक फोटो |
लोग कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी द्वारा वोटर लिस्ट की मदद से सिख परिवारों को ढूंढा गया और उन्हें तहस-नहस किया गया. क्या सच है और क्या झूठ ये तो किसी को नहीं पता, लेकिन फिर भी कई आंखें अभी भी 32 साल पहले आज ही के दिन को याद करके नम हो जाती हैं. नाम कई सामने आए और कुछ भी ना हुआ. तो क्या इतने लोगों की हत्या का आरोपी कोई नहीं था. क्या किसी की गलती नहीं थी?
आज का दौर..
आज सुबह उठकर सोशल मीडिया अकाउंट देखा तो कई लोगों ने अपने दर्द को बयान किया था. लोग आज भी उन बातों को नहीं भूले हैं तो क्या सरकार भूल गई है?
32 yrs ago my client Gurcharan Singh was attempted to be burnt alive by Cong party workers on 1st Nov 1984.Died of his injuries on 17.2.2009 pic.twitter.com/xYoJjwhstI
— NAVKIRAN SINGH (@singhlawyers) November 1, 2016
HOW CAN WE FORGET 1984? Hacked & charred bodies of Sikh men left on trolley at Railway station in Delhi #SikhGenocide84 pic.twitter.com/zgtmsVYhKm
— ravinder singh (@RaviSinghKA) November 1, 2016
Among the multitude of things I never understand about India, one item on the top is how could Punjab vote for the Congress after 1984.
— IndiaSpeaks (@IndiaSpeaksPR) November 1, 2016
1 Nov, 1984. Chilling story of Gurdip Kaur who was raped in front of her son & he was burnt alive later #LestWeForget #SikhGenocide84 pic.twitter.com/grnwapP5sA
— Rahul Sharma (@Biorahul) November 1, 2016
फिर से राजनीति...
पंजाब की राजनीति है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही. आप नेताओं ने मोहाली में 3 नवंबर को भूख हड़ताल का ऐलान कर दिया है. उन्हें 1984 सिख दंगों के लिए न्याय चाहिए. आप पंजाब पार्टी के आधिकारिक अकाउंट से ट्वीट किए जा रहे हैं. यहां कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला गया है.
Congress leaders were responsible for 1984 massacre so we couldn't expect justice from them, says @ArvindKejriwal in Amritsar.
— AAP Punjab (@AAPPunjab2017) November 1, 2016
Congress, BJP & Captain are all saving those responsible for 1984 massacre; Akalis are in power with BJP. What is happening: @ArvindKejriwal
— AAP Punjab (@AAPPunjab2017) November 1, 2016
1984 के दंगों को मुद्दा बनाया जा रहा है. इलेक्शन की तैयारी की जा रही है. क्या ये सही है? उन लोगों का क्या जो उस कत्लेआम का हिस्सा बने थे. क्या भूख हड़ताल से उन्हें इंसाफ मिलेगा? सिर्फ उम्मीद ही की जा सकती है कि इससे उनका कुछ फायदा हो. हालांकि, इस बात की कल्पना करना भी मुश्किल है कि उनपर उस दौर में क्या बीती होगी. भगवान उन परिवारों को शांती प्रदान करे.
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