जिस 'आंजनेय' से जूते साफ़ करवाना चाहते थे आजम, उसने मय कुनबे के सियासत ही साफ़ कर दी!
रामपुर के स्वार से आज़म ख़ान के पुत्र अब्दुल्ला आजम को टिकट मिला है. अब्दुल्ला आज़म के मुकाबले में अपना दल (सोनेलाल) से टिकट हासिल करने वाले हैदर अली खान हैं. चूंकि अब्दुल्ला आज़म करीब 2 साल सीतापुर की जेल में रहकर आए हैं. तो उस अधिकारी ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की सियासत को गर्मा दिया है जिसने बतौर रामपुर डीएम, अखिलेश सरकार में मंत्री रह चुके आजम खान और अब्दुल्ला आज़म की कमर तोड़ी थी.
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2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव का बिगुल फूंका जा चुका है. चाहे वो सपा-बसपा हों या फिर भाजपा और कांग्रेस. प्रयास यही है कि, कैसे वोटर का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लिया जाए. इस चुनावी महापर्व में नेताओं का आना जाना या ये कहें कि दल बदल भी बदस्तूर जारी है और सुर्खियों का बाजार गर्म है. चुनाव की बेला है तो सिर्फ नेतागण ही नहीं चंद अधिकारी भी ऐसे हैं जो सुर्खियां बटोर रहे हैं. रामपुर के स्वार से सपा के कद्दावर नेताओं में शुमार आज़म ख़ान के पुत्र अब्दुल्ला आजम को टिकट मिला है. अब्दुल्ला आज़म के मुकाबले में भाजपा के सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) से टिकट हासिल करने वाले हैदर अली खान हैं. चूंकि अब्दुल्ला आज़म करीब 2 साल सीतापुर की जेल में रहकर आए हैं. तो उस अधिकारी ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की सियासत को गर्मा दिया है जिसने बतौर रामपुर डीएम अखिलेश सरकार में मंत्री रह चुके आजम खान और अब्दुल्ला आज़म की कमर तोड़ दी. जिस अधिकारी की बात हम कर रहे हैं वो रामपुर के तत्कालीन डीएम आंजनेय कुमार सिंह थे. मौजूदा वक्त में सिंह मुरादाबाद मंडल के कमिश्नर हैं.
रामपुर के पूर्व डीएम आंजनेय कुमार सिंह ने न केवल आजम खान और उनके परिवार पर नकेल कसी बल्कि उन्हें दिन में तारे भी दिखा दिए
सिंह और ख़ान की रंजिश का दिलचस्प पहलू ये है कि इसकी शुरुआत 2019 के लोकसभा चुनाव में खुद आज़म खान ने की थी. एक सभा में भाषण देते हुए आज़म ख़ान ने आंजनेय कुमार सिंह से जूता साफ करवाने की बात कही थी. ये बात आज़म ख़ान ने भले ही जोश जोश में कही हो. लेकिन सिंह को चुभ गई. उसके बाद आज़म ख़ान के राजनीतिक कद का क्या हुआ? यदि इसे समझना या फिर इसका अवलोकन करना हो तो हम सीतापुर जेल का रुख कर सकते हैं जहां आजम खान बंद हैं और जमानत के लिए तरस रहे हैं.
बताते चलें कि आंजनेय कुमार सिंह सिक्किम कैडर के 2005 बैच के आईएएस अफसर हैं. अखिलेश यादव के शासनकाल में 16 फरवरी 2015 को सिंह प्रतिनियुक्ति पर उत्तर प्रदेश आए. बाद में सूबे में योगी की सरकार आई और फरवरी 2019 में आंजनेय को रामपुर का जिलाधिकारी नियुक्त किया गया. अपनी पोस्टिंग के फौरन बाद ही सिंह ने आजम खान पर नकेल कसी और उन्हें बताया कि आखिर ब्यूरोक्रेसी का चाबुक होता क्या है.
यूं तो रामपुर में आंजनेय कुमार सिंह सुर्खियां बटोर ही रहे थे. लेकिन सूबे और राजधानी लखनऊ में इनके बारे में बातें होनी उस वक्त शुरू हुईं जब 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्होंने चुनाव अचार संहिता का पालन बहुत सख्ती से करवाया. आज़म ख़ान और उनके करीबियों पर जिस तरह इन्होंने नकेल कसी थी उसके बाद आज़म खान ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी थी.
सपा सांसद आज़म खान ने अपना राजनीतिक रसूख दिखाते हुए कहा था कि, 'कलेक्टर-फलेक्टर से मत डरियो, ये तनखैय्ये हैं. अल्लाह ने चाहा तो चुनाव बाद इन्हीं से जूते साफ कराऊंगा.' एक पढ़े लिखे अधिकारी से जूते साफ कराने की बात किस हद तक जी का जंजाल बनेगी इसका अंदाजा आज़म ख़ान को उस वक्त लग गया जब 27 किसानों ने तत्कालीन डीएम आंजनेय कुमार सिंह से न केवल मुलाकात की बल्कि आजम खान पर जौहर विश्वविद्यालय के लिए जमीन हड़पने के गंभीर आरोप लगाए.
किसानों की इस शिकायत को आंजनेय सिंह ने गंभीरता से लिया और इस मामले की जांच एसडीएम से करवाई और शिकायत सही पाए जाने पर सभी मामलों में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे दिया. साथ ही उन्होंने न केवल सरकारी जमीन को आजम खान के चंगुल से छीना बल्कि उसे मुक्त भी कराया.बताया ये भी जाता है कि ये आंजनेय कुमार सिंह ही थे जिनकी रिपोर्ट को आधार बनाकर चुनाव आयोग ने रामपुर के स्वार से तत्कालीन विधायक अब्दुल्ला आज़म की सदायता को खारिज किया था.
आज़म खान पर 100 के आसपास मुकदमे लादकर आंजनेय कुमार सिंह ने न केवल आजम खान को उनकी हद बताई बल्कि ये भी बताया कि शिक्षा और ब्यूरोक्रेसी को अपने घर की बांदी समझने वालों के साथ वास्तव में क्या अंजाम होना चाहिए.
जैसा कि हम बता चुके हैं अगर आज आंजनेय कुमार सिंह का जिक्र हुआ है तो इसकी वजह वो विधानसभा सीट यानी स्वार है. जिसने अब्दुल्ला आजम की राजनीति शुरू होने से पहले ही उनका भट्टा बैठा दिया था. साफ़ है कि न आज़म अपनी हदें पार करते न नौबत यहां तक आती.
कुल मिलाकर कहा यही जा सकता है कि आंजनेय कुमार सिंह उन तमाम बड़बोले नेताओं के लिए सबक हैं जो अधिकारी या बहुत सीधे कहें तो किसी आईएएस को अपने पांच की जूती साझते हैं और ये भूल जाते हैं कि यदि कोई अधिकारी उस मुकाम पर पहुंचा है तो बस अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर.
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