सैनिक एरिया में खुले बेख़ौफ़ प्रवेश का फायदा आतंकी न उठा लें
आतंकवादी सिर्फ सैनिकों की बस्तियों और उनके ठिकानों को ही निशाना बनाते हैं. ऐसे में सैनिक एरिया को जनता के लिए खोल देना बेहद खतरनाक है.लेकिन इससे भी ज्यादा खतरनाक है इस इलाके को खोल दिए जाने के फैसले को एक राजनीतिक पार्टी की जीत बताना.
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कल जब आप न्यूज़ चैनल देख रहे थे तो एक खबर जबरदस्त छायी हुई थी. ये खबर थी कश्मीर में आतंकवादी हमले का एलर्ट, इस खबर के बीच एक और खबर कहीं खो गई और ये खबर थी कि भारत के मिलिट्री एरिया में यानी कैंट एरिया में अब आम आदमी भी बे-रोक-टोक जा सकेंगे.
जब आप ये दोनों खबरें पढ़ते हैं तो याद आ जाती है उरी और पठानकोट की घटना जहां आर्मी कैंट में घुसकर आतंकवादियों ने हमला बोल दिया था. घटना की सारी तफ्सील आपको याद होगी. याद तो आपको लाल किले पर हमला भी होगा और ये भी याद होगा कि अब आतंकवादी सिर्फ सैनिकों की बस्तियों और उनके ठिकानों को ही निशाना बनाते हैं. ऐसे में सैनिक एरिया को जनता के लिए खोल देना बेहद खतरनाक है.
सैनिक एरिया को जनता के लिए खोल देना बेहद खतरनाक है
लेकिन इससे भी ज्यादा खतरनाक है इस इलाके को खोल दिए जाने के फैसले को एक राजनीतिक पार्टी की जीत बताना. आपको पता होगा कि 20 मई को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया कि देश के सभी 62 कैंट एरिया की बंद सड़कों को आम लोगों के लिए खोला जाए ताकि आम लोगों को आने जाने में और ट्रैफिक जाम की दिक्कत ना हो. यहां तक तो ठीक था लेकिन इस फैसले के ठीक बाद बीजेपी के लोगों ने देश के अलग-अलग कैंट एरिया में “विजय जुलूस” निकाल दिया. कार्यकर्ता झंडे डंडे को साथ निकल पड़े और कैंट एरिया में नारेबाजी शुरू कर दी. सवाल ये है कि विजय कैसी और किसके खिलाफ.
दरअसल जब ये फैसला किया जा रहा था तो आर्मी की तरफ से इसका विरोध किया गया था. कई अफसरों ने इसे गलत बताया था सरकार ने उनकी राय को एक तरफ रखकर ये फैसला लिया. जाहिर बात है इससे यही संदेश गया. क्या आर्मी पर जीत का जश्न ठीक था. क्या ये देश की सेना को मुंह चिढ़ाने वाली हरकत नहीं थी ?
बीजेपी की खासियत ये है कि वो दोनों हाथों में लड्डू पकड़ना जानती है. एक तरफ बीजेपी आर्मी अफसरों के परिवार के सामने हमेशा शांत रहने वाले कैंट एरिया में जुलूस निकाल रही थी तो दूसरी तरफ संघ सैनिकों की तरफ से आवाज उठाकर दाग धोने में लगी थी.
संघ से जुड़ा संगठन अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद सरकार के फैसले के खिलाफ खड़ा हो गया. संगठन का कहना था कि ये सुरक्षा से खिलवाड़ है. ये संगठन इसे लेकर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को भी पत्र लिख रहा है. लेकिन मामला सिर्फ चिट्ठी तक जाकर ही खत्म हो रहा है. बीजेपी कार्यकर्ता इसे लेकर रुकने को तैयार नहीं हैं. वो ट्विटर पर बधाईयों का आदान प्रदान करने में लगे हैं. इन गतिविधियों से चिंतित सेना अधिकारियों की पत्नियों ने इस फैसले के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है. उन्होंने रक्षा मंत्री से मिलने की बात भी कही है. रविवार को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने ट्वीट किया कि ‘सेना अधिकारियों की पत्नियों का स्वागत है और हम उनकी बात को खुले दिमाग से सुनेंगे. वहीं संघ से जुड़ा संगठन पूर्व सैनिक सेवा परिषद ने इस फैसले को गलत बताया.
“Wives of Army officers across the nation have launched a signature campaign...against the decision.They also said...would meet the Defence Minister...for the order to be reversed.” Welcome to meet me. Shall hear them with an open mind. @DefenceMinIndia https://t.co/V10gE9hFvr
— Nirmala Sitharaman (@nsitharaman) May 27, 2018
परिषद के संगठन मंत्री और संघ प्रचारक विजय कुमार ने कहा कि सुरक्षा के नाते यह फैसला सही नहीं है, इस तरह वहां असामाजिक तत्व भी खुलेआम घूम सकते हैं. हम रक्षा मंत्री को इस फैसले पर फिर से विचार करने के लिए लेटर लिखेंगे. परिषद के नैशनल प्रेजिडेंट लेफ्टिनेंट जनरल वीएम पाटिल ने कहा कि यह फैसला सोच समझकर किया जाना चाहिए था.
डिफेंस एक्सपर्ट कर्नल अशोक कहते हैं कि यह फैसला गलत है. रक्षा मंत्री के पास यह फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं है इसलिए एक कमांडर ने यह फैसला मानने से इनकार भी कर दिया. इस फैसले के बाद वहां रह रहे सैनिकों के परिवार सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि कैंट बोर्ड मिलिट्री पुलिस के अंडर आता है तो मिलिट्री पुलिस कैसे आम लोगों पर कानून लागू करेगी. उन्होंने कहा कि यह महज वोट बैंक की पॉलिटिक्स है.
अगर कोई फैसला लेना था तो कैंट बोर्ड के जरिए स्टेशन कमांडर स्थानीय जरूरत के हिसाब से फैसला ले सकते थे. डिफेंस एनलिस्ट मेजर गौरव आर्या कहते हैं कि पठानकोट, उरी जैसे अटैक को देखते हुए यह फैसला सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है. बिना चेकिंग के लोग कैंट एरिया में आ जा सकेंगे, कहीं अटैक हुआ तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?
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