बनारस के नतीजों से समझिए 'सगे' और 'गोद' लिए बेटे का फर्क
बनारस में बीजेपी के लिए पहली चुनौती यही थी कि वाराणसी लोक सभा की कम से कम तीन सीटें वो बचा ले, लेकिन मोदी सुनामी में उसके गठबंधन ने पूरे जिले की आठों सीटें अपनी धार में बहा ली.
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2014 में नरेंद्र मोदी को बनारस सीट पर चुनौती देने वालों में दो लोग सबसे चर्चित रहे. एक अरविंद केजरीवाल और दूसरे अजय राय. ताजा चुनाव में अरविंद केजरीवाल गोवा में जीरो पर आउट हो गये और पंजाब में रनर अप रहे, जबकि सूबे में पांचवें नंबर पर पहुंच चुकी कांग्रेस के अजय राय को बनारस के पिंडरा में थर्ड डिवीजन से संतोष करना पड़ा. राजनीति जब रनर अप की कोई अहमियत नहीं बचती तो तीसरे पोजीशन की बात कौन करे.
चुनाव नतीजों से पहले बीजेपी ही नहीं संघ को भी फीडबैक मिलने पर लगभग सांप ही सूंघ गया होगा. ये बात अलग है कि नतीजों ने फीडबैक ही नहीं सारे अनुमानों को किनारे कर दिया.
बनारस में बीजेपी के लिए पहली चुनौती यही थी कि वाराणसी लोक सभा की कम से कम तीन सीटें वो बचा ले, लेकिन मोदी सुनामी में उसके गठबंधन ने पूरे जिले की आठों सीटें अपनी धार में बहा ली.
उस भीड़ में वोटर नहीं थे
4 मार्च को मोदी ने लंका से रोड शो शुरू किया और भैरोनाथ पहुंचने तक पूरे रास्ते भीड़ जमी रही. इस बात की भी खूब चर्चा रही कि जब राहुल गांधी और अखिलेश यादव तीसरे पहर रथ पर साथ सवार होकर शहर में निकले तो भीड़ और भी ज्यादा देखने को मिली. लोग मान कर चल रहे थे कि सुबह की भीड़ पर शाम का सैलाब भारी पड़ेगा, लेकिन जब नतीजे आये तो मालूम हुआ - सुबह वाले वोटर थे और शाम वाले तफरीह के लिए निकले लोगों का हुजूम. पहले पहुंच कर अमित शाह का हफ्ते भर बनारस में केंद्रीय मंत्रियों के साथ जमावड़ा और फिर तीन दिन तक मोदी का शहर में डेरा डाले रहना अनायास नहीं था. अपने फीडबैक के आधार पर संघ ने मोदी को नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने और लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा वक्त गुजारने की सलाह दी थी. मोदी ने किया भी वैसा ही.
बनारस बोल रहा है...
मोदी ने शहर के कोतवाल को सलाम किया तो लाल बहादुर शास्त्री के घर और गढ़वा घाट आश्रम पहुंच कर गो सेवा भी की. कोतवाल काल भैरव के दरबार में हाजिरी लगाने भी तीन साल बाद पहुंचे थे, जो यूं ही नहीं था. वैसे नतीजों से साफ हो चुका है कि लोग शुरू से ही मोदी को अपना चुके थे - उन्होंने तो बहुत बाद में महसूस किया और बताया कि गोद लिये ही सही वो यूपी के बेटे हैं. लोगों ने मोदी के लिए केजरीवाल के हिसाब से दिल्ली दोहरा दी - और पूरा बनारस ही नाम लिख दिया.
हार-जीत के फासले और बागी
बनारस में जिस सीट को लेकर संघ सबसे ज्यादा चिंतित रहा वो थी - शहर दक्षिणी. इसी सीट पर सात बार के विधायक श्यामदेव रॉय चौधरी का टिकट काटकर नये नवेले नीलकंठ तिवारी को दिया गया था. वजह भी यही रही कि मोदी का रोड शो सबसे पहले उसी इलाके से निकला और नतीजा ये हुआ कि बीजेपी उम्मीदवार ने कांग्रेस के पूर्व सांसद राजेश मिश्रा को 17 हजार वोटों से हराया.
शहर उत्तरी सीट पर तो लड़ाई इसलिए भी मुश्किल हो गयी थी क्योंकि बीजेपी उम्मीदवार रविंद्र जायसवाल को विरोधी पार्टियों के साथ साथ अपनी ही पार्टी के दो बागियों से दो दो हाथ करने पड़े. इन बागियों के लिए अब तो खतरे की घंटी ही बज चुकी है. अब तो वे जाने उनका काम जाने.
बीजेपी के बनारसी विधायकों का पूरा कुनबा !
टिकट न मिलने पर श्यादेव रॉय चौधरी ने तो बस प्रचार से दूर रहने का फैसला किया लेकिन शहर उत्तरी से तो डॉ. अशोक सिंह और सुजीत कुमार टीका तो बाकायदा चुनाव भी लड़े. वैसे रविंद्र जायसवाल ने कांग्रेस उम्मीदवार अब्दुल समद अंसारी को 46 हजार वोटों से शिकस्त दी.
सेवापुरी सीट तो सहयोगी अनुप्रिया पटेल वाले अपना दल के हिस्से में आई थी लेकिन वहां भी विभूति नारायण सिंह ने बीजेपी छोड़ कर निर्दल चुनाव लड़ा. फिर भी अपना दल के नील रतन सिंह पटेल ने समाजवादी पार्टी के सुरेंद्र पटेल को 49 हजार वोटों से हराया.
बीजेपी में परिवारवाद की बड़ी मिसाल बने सौरभ श्रीवास्तव जिन्हें बीजेपी ने कैंट सीट से टिकट दिया जो कभी उनके पिता हरिश्चंद्र श्रीवास्तव की सीट हुआ करती थी और मौजूदा विधायक तो मां ज्योत्सना श्रीवास्तव ही थीं. सौरभ के खिलाफ तो पोस्टर लगा कर मतदाताओं के मन की बात भी लिखी गई - कब तक इन्हें झेलना पड़ेगा? मोदी लहर में सौरभ ने तो परिवार की इज्जत कायम रखते हुए प्रतिद्वंद्वी को बनारस में सबसे ज्यादा 60 हजार वोटों के अंतर से हराया है.
शिवपुर से अनिल राजभर और अजगरा से बीजेपी के कैलास नाथ सोनकर तो जीते ही पिंडरा में बीजेपी के अवधेश सिंह ने बीएसपी उम्मीदवार को 36 हजार वोटों से हराया और कांग्रेस के अजय राय तीसरे स्थान पर लुढ़क गये.
बनारस में मोदी की आखिरी रैली रोहनिया में हुई थी जहां सुरेंद्र नारायण सिंह ने 57 हजार वोटों से जीत हासिल की.
2004 को छोड़ दिया जाये तो अयोध्या आंदोलन के बाद 1991 से बनारस बीजेपी का गढ़ रहा है. 1991 में बीजेपी ने बनारस लोक सभा सीट से श्रीशचंद्र दीक्षित और उसके बाद शंकर प्रसाद जायसवाल तीन बार चुनाव जीते. 2004 ये सीट कांग्रेस के राजेश मिश्रा ने झटक लिया जिन्हें इस बार नीलकंठ तिवारी से शहर दक्षिणी में मात खानी पड़ी. 2009 में बतौर बीएसपी उम्मीदवार मुख्तार अंसारी ने भी मुरली मनोहर जोशी को चुनौती दी थी लेकिन बीजेपी का कब्जा बरकरार रहा. फिर 2014 में तो गंगा मैया के बुलावे पर मोदी भी पहुंच गये - और अब तो लोगों ने पूरा बनारस ही उनके नाम कर दिया.
काशी के सांसद के रूप में काशी की जनता का अटूट विश्वास और अपार प्रेम पाकर मैं आज अभिभूत हूं। काशी के लोगों को शत-शत नमन।
— Narendra Modi (@narendramodi) March 11, 2017
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