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Updated: 08 अप्रिल, 2019 09:39 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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2019 का चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक चुनाव है. कांग्रेस की कमान युवा हाथों में 48 साल के राहुल गांधी के पास है. बीजेपी में सभी महत्वपूर्ण निर्णय या तो पीएम मोदी लेते हैं या फिर अमित शाह. बात सीधी है. देश के दो प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा में उपरोक्त तीन नाम सर्वेसर्वा की भूमिका में हैं. भाजपा ने अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया है और 48 पन्नों के इस मेनिफेस्टो में तमाम अहम मुद्दों पर बात की है. पार्टी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं के बीच यह घोषणापत्र जब जारी हुआ तो पीएम मोदी, अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली सहित तमाम बड़े नेता मौजूद थे.

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बात मेनिफेस्टो की चल रही है. तो बताना जरूरी है कि अभी बीते दिनों ही कांग्रेस ने भी अपना मेनिफेस्टो जारी किया और जनता से कई अहम वादे किये. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रमुख दलों के मेनिफेस्टो पर यदि नजर डालें तो मिलता है कि वैसे तो दोनों ही पार्टियों के मेनिफेस्टो अलग हैं. मगर एक मामले में दोनों एक दूसरे से मिलते जुलते हैं. दोनों ही दलों ने अपने बुजुर्गों को सिरे से खारिज कर दिया है.

बात की शुरुआत भाजपा से. 2014 के आम चुनावों का शुमार देश के सबसे ऐतिहासिक चुनावों में होता है. माना जाता है कि तब उठी मोदी लहर ही वो कारण था जिसके चलते भाजपा ने एक ऐसी जीत रची जिसपर शायद भविष्य में शोध हो सकता है. 2014 के उस चुनाव में मोदी-शाह की जोड़ी के अलावा जोशी अडवाणी का भी अहम योगदान था. दोनों ही वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के झंडाबरदारों की भूमिका बखूबी निभाई थी. मजेदार बात ये है कि तब पार्टी ने जो घोषणापत्र जारी किया, वो इन्हीं दोनों नेताओं की अगुवाई में बना.

भाजपा, घोषणापत्र, कांग्रेस, लोकसभा चुनाव 2019, लाल कृष्ण अडवाणी, मुरली महोनर जोशी2014 और 2019 का भाजपा का मेनिफेस्टो

2014 के चुनाव से 19 के चुनाव तक, बीते हुए पांच सालों में कई किस्से आज बीती बातें बनकर रह गए हैं. पूर्व की तरह आज भी भाजपा देश की जनता को अपने घोषणापत्र से अवगत करा रही थी. मगर सबसे दुर्भाग्यपूर्ण था आज इस अहम मौके पर पार्टी के दोनों ही बड़े नेताओं को अनुपस्थित देखना. आज लाल कृष्ण अडवाणी और मुरली मनोहर जोशी दोनों ही पार्टी के मंच से नदारद थे. राजनाथ सिंह से लेकर अमित शाह और स्वयं पीएम मोदी तक, किसी ने ये जरूरी नहीं समझा कि दोनों ही नेताओं और उपलब्धियों का जिक्र किया जाए.

हालांकि पहले खबर आई थी कि घोषणापत्र जारी होने से पहले अमित शाह लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से मिलेंगे लेकिन बाद में तय हुआ कि दोनों बुजुर्ग नेताओं से शाम को मुलाकात होगी. ज्ञात हो कि बीजेपी के इतिहास में यह शायद पहला मौका होगा जब लोकसभा चुनाव के लिए जारी होने वाले घोषणापत्र में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी मौजूद नहीं थे. गौरतलब है कि चाहे जोशी हों या फिर आडवाणी इन लोगों का शुमार उन लोगों में है जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर पार्टी खड़ी की थी.

कह सकते हैं कि यदि आज देश के प्रत्येक नागरिक की जुबां पर पार्टी का नाम है तो इसके पीछे अडवाणी और जोशी का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान है. एक जमाने में पार्टी में अडवाणी और जोशी का क्या लेवल था यदि इसे समझना हो तो हम उस नारे का अवलोकन कर सकते हैं जिसमें कहा गया था कि 'भारत मां के तीन धरोहर, अटल-आडवाणी और मुरली मनोहर'. आज जबकि पार्टी ने अपने आप से इन्हें जुदा कर दिया है तो सवालों का उठाना लाजमी है.

अब आते हैं कांग्रेस पर. ऐसा नहीं है कि सिर्फ भाजपा ही अपने पुराने नेताओं को भूली है. कांग्रेस का भी हाल मिलता जुलता है. फर्क बस ये है कि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस ने अपने पुराने नेताओं को ये मौका दिया कि वो आएं और अपनी पार्टी के अध्यक्ष के साथ मंच साझा करें. बीते दिनों कांग्रेस ने भी अपना मेनिफेस्टो जारी कर जनता से कई अहम वादे किये थे. जिस समय कांग्रेस घोषणापत्र जारी कर रही थी मंच पर राहुल गांधी और पी चिदंबरम के अलावा पार्टी के दो महत्वपूर्ण स्तंभ, सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह मौजूद थे.

भाजपा, घोषणापत्र, कांग्रेस, लोकसभा चुनाव 2019, लाल कृष्ण अडवाणी, मुरली महोनर जोशी कांग्रेस का मेनिफेस्टो जारी करते हुए राहुल गांधी सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह

कांग्रेस मेनिफेस्टो जारी कर चुकी थी. अगले ही दिन खबर आई कि सोनिया नाराज हैं. सोनिया की नाराजगी के कारणों की तहकीकात हुई तो पता चला कि जिस तरह से मेनिफेस्टो पर  राहुल की तस्वीर छपी थी उसने उन्हें बहुत आहत किया. कहा गया कि सोनिया को राहुल की ये तस्वीर एक फूटी आंख भी नहीं सुहाई.

भाजपा, घोषणापत्र, कांग्रेस, लोकसभा चुनाव 2019, लाल कृष्ण अडवाणी, मुरली महोनर जोशीकांग्रेस के मेनिफेस्टो की बदली हुई तस्वीर

सोनिया गांधी के अनुसार मेनिफेस्टो में जो कद राहुल का दिखाया गया है उस कद के मुकाबले पार्टी में राहुल का कद कहीं ज्यादा विशाल है. सोनिया को इससे मतलब नहीं था कि मेनिफेस्टो में उनकी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की तस्वीर छपी है या नहीं. सोनिया चाहती थीं कि मेनिफेस्टो में राहुल की तस्वीर बड़ी और उसकी प्लेसमेंट सही जगह पर होता.

बहरहाल, 2014 के मुकाबले 2019 के आम चुनाव में दोनों ही दलों द्वारा अपने-अपने मेनिफेस्टो में एक नया प्रयोग किया गया है. नए एक्सपेरिमेंट के तहत दोनों ही प्रमुख दलों द्वारा अपने मेनिफेस्टो में जिस तरह पुराने नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया गया साफ हो जाता है कि अब भविष्य में राहुल ही कांग्रेस और मोदी ही भाजपा हैं. बेहतर होगा कि दोनों ही पार्टियों के लोग इस बात का समझ लें ताकि भविष्य में जब कभी भी दिल टूटे उन्हें तकलीफ न हो.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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