गुजरात के चुनावी माहौल में गुम होता अफ्रीकी समुदाय!
आदिवासी समुदाय से जुड़े सिद्दी परेशान हैं क्योंकि उनके समुदाय के विकास के लिए बहुत कुछ नहीं किया गया है. चुनाव के समय, सरकार से उनकी मांगें हैं- घरों के जीर्णोद्धार का काम पूरा किया जाये और उन्हें रोजगार के ज्यादा अवसर मिलें.
-
Total Shares
गुजरात के सोमनाथ जिले में गिरके घने जंगल की सीमा पर जाम्बुर नामक एक छोटा गांव, अफ्रीकी मूल के लोगों का निवास है. 800 से अधिक वर्षों से इस अफ्रीकी वंश ने भारत को अपना घर कहा है. गुजरात में वे सिद्दी के नाम से जाने जाते हैं.
कौन हैं ये सिद्दी
सिद्दी पूर्व अफ्रीका के बंटू लोगों के वंशज हैं. उन्हें पहली बार अरबों द्वारा गुलामों के रूप में भारत लाया गया था. यहां आने के बाद, सिद्दी जनजाति ने इस्लाम में विश्वास करना शुरू कर दिया. इसलिए, उन्हें सिद्दी बादशाह या सिद्दी मुसलमान भी कहा जाता है.
जंबुर की सिद्दी जनसंख्या 2000 से थोड़ा अधिक है और 1,100 मतदाता हैं. इस क्षेत्र में सिद्दी समुदाय के कुछ और गांव हैं और उनकी कुल जनसंख्या लगभग 10,000 है. इस जनजाति के कुछ लोग धीरे-धीरे अहमदाबाद, वडोदरा, राजकोट, जूनागढ़, ओखा और भावनगर में बस गए हैं. इतने अरसे से भारत में रहने के बावजूद, सिद्दी समुदाय ने अपनी पहचान अपनी संस्कृति, संगीत, और नृत्य के द्वारा बनाये हुए है. सिद्दी लोग अपनी संस्कृति से बहुत अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं और शांति से रहते हैं.
इनको पूछने वाला कोई नहीं
हैरान करने वाली बात ये है कि सिद्दी अपनी पहचान बनाते हुए भी भारतीय संस्कृति में इतनी अच्छी तरह से मिश्रित हो गए हैं कि वे भारतीय नामों को धारण करते हैं. धारदार हिंदी और गुजराती बोलते हैं. महिलाएं साड़ी पहनती हैं और इसके अलावा वे खुद को भारतीय कहते हैं.
उनकी परेशानियां :
आदिवासी समुदाय से जुड़े सिद्दी परेशान हैं क्योंकि उनके समुदाय के विकास के लिए बहुत कुछ नहीं किया गया है. पीढ़ियों से गिर जंगल के नजदीकी क्षेत्र में रहते आ रहे हैं. ये लोग अपनी आजीविका कमाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं. उनके कच्चे घर और उनकी गरीबी, उनके पिछड़ेपन की कहानी बयान करते हैं. गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी है. युवा सुरक्षा गार्ड, ऑटो ड्राइवर या सब्जी विक्रेताओं के रूप में काम करते हैं. लड़कियां साड़ी की कढ़ाई करके अपनी आजीविका चलाती हैं. एक साड़ी की कढ़ाई में चार दिनों की कड़ी मेहनत लगती है. हर साड़ी पर उन्हें भुगतान 100 रुपये से कम होता है.
चुनाव के समय, सरकार से उनकी मांगें हैं- घरों के जीर्णोद्धार का काम पूरा किया जाये और उन्हें रोजगार के ज्यादा अवसर मिलें. गुजरात के चुनावी माहौल में जहां हर पार्टी जाति- जनजाति के कल्याण की बातें कर रही है, वहीं इस समुदाय की सुध लेने वाला कोई भी नहीं है.
त्रासदी तो यह है कि जहां वो अपने को इस देश में भारतीय कहलाने में गर्व महसूस करते हैं, तो वहीं उनके भारतीय होने का किसी भी पार्टी को इल्म तक नहीं है.
ये भी पढ़ें-
Gujarat election 2017 : मुसीबत में बीजेपी, क्या मदद करेंगे 'राम' !
Rahul Gandhi : वो 'कट्टर' हिन्दू, जिसपर सभी भगवानों ने अपनी कृपा बरसा दी
आपकी राय