Gujarat election 2017 : मुसीबत में बीजेपी, क्या मदद करेंगे 'राम' !
अब तक का इतिहास रहा है कि बीजेपी जब भी ग्राउण्ड ज़ीरो पर फंसती दिखी है, उसने राम मंदिर का सहारा लिया है. ऐसे में बीजेपी के लिये गुजरात में राम मंदिर का मुद्दा डूबते को तिनके का सहारा जैसा है.
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गुजरात में दो दिन बाद पहले चरण की वोटिंग होनी है. जिसमें सबसे अहम् है सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के लिये वोटिंग. बीजेपी, लम्बे समय से नाराज पाटीदारों को मनाने का हर संभव प्रयास कर रही है. लेकिन उसका हर दांव उल्टा पड़ रहा है. ऐसे में अब बीजेपी ने अपने ट्रम्प कार्ड राम मंदिर का मुद्दा अपनाया है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राम मंदिर की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को लेकर कांग्रेस पर प्रहार किया. उन्होंने कहा, "एक ओर गुजरात में राहुल गांधी मंदिरों के चुनावी दौरे कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर श्री राम जन्मभूमि केस पर सुनवाई को टालने के लिए कपिल सिब्बल का उपयोग किया जा रहा है."
बीजेपी के लिये हिन्दुत्व की प्रयोगशाला माने जाने वाले गुजरात में इस बार बीजेपी का एक भी हिन्दू कार्ड काम नहीं आ रहा है. चुनाव की धोषणा के साथ ही बीजेपी ने दो आतंकी के पकड़े जाने के बाद अहमद पटेल पर सवाल खड़े कर दिये. क्योंकि पकड़े गये आतंकियों में से एक, उस अस्पताल में काम करता था, जिसके ट्रस्टी 2014 में कांग्रेस नेता अहमद पटेल हुआ करते थे. अहमद पटेल का अस्पताल से पहले ही इस्तीफा दे देने के कारण हिन्दु मुस्लिम भावना को भड़काने का बीजेपी का ये प्रयास भी असफल रहा.
वहीं हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर ओर जिग्नेश मेवानी की जातिवादी राजनीति के सामने प्रधानमंत्री जब गुजरात में चुनावी रैली करने पहुंचे, तो सालों पहले गुजरात में हुए क्षत्रिय और पाटीदारों के बीच हुए मानगढ़ हादसे को याद कराया. उम्मीद थी की पाटीदार तो नाराज चल रहे हैं. लेकिन क्षत्रिय मान जायेंगे. हालांकि ये दांव भी बीजेपी को काम नहीं आया. उल्टे ये मैसेज गया कि बीजेपी, पाटीदार और क्षत्रियों के बीच आपस में फूट डालने का प्रयास कर रही है.
चुनाव में गुजरात का ट्रम्प कार्ड काम करेगा?
चाहे विकास का मुद्दा हो या जातिवादी राजनीति का, नोटबंदी या जीएसटी का, गुजरात में बीजेपी बैकफुट पर आ गई है. बीजेपी के लिये अब हिन्दुत्व का एजेंडा ही आखरी रास्ता बचा है. इसे बीजेपी छोड़ना नहीं चाहती है. सांप्रदायिकता के नाम पर बीजेपी लोगों को सोशल मीडिया पर 22 साल पहले की कांग्रेस सरकार को याद करा रही है. लेकिन इस बार ये दांव भी काम नहीं आ रहा है. ऐसे में बीजेपी अध्यक्ष एक बार फिर राम मंदिर के मुद्दे को लेकर आ गये हैं.
गुजरात की राजनीति में राम मंदिर मुद्दा इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 1993 में राम मंदिर के मुद्दे के साथ आडवानी ने गुजरात से ही सोमनाथ से अयोध्या तक की यात्रा निकाली थी. उस वक़्त गुजरात ही पूरे बाबरी मस्जिद विध्वंस का केंद्र रहा था. दिलचस्प बात तो ये है कि उस वक़्त बीजेपी के साथ साथ वीएचपी भी काफ़ी सक्रिय भुमिका में थी. इतने साल बात गुजरात चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने वापस राम मंदिर का राग अलापा है. हालांकि इस बार वीएचपी, बीजेपी के इस मिशन में उनका साथ नहीं दे रही है. वीएचपी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया का कहना है कि बीजेपी को संसद में कानुन बनाकर राम मंदिर का निर्माण करा देना चाहिए. अब तो संसद में भी बीजेपी को ही बहुमत है. इस तरह वीएचपी का स्टैंन्ड काफ़ी हद तक क्लियर है कि वो इसबार राम मंदिर के मुद्दे पर खुलकर राजनीति में नहीं कूदेंगे.
अबतक का इतिहास रहा है कि बीजेपी जब भी ग्राउण्ड ज़ीरो पर फंसती दिखी है, उसने राम मंदिर का सहारा लिया है. ऐसे में बीजेपी के लिये गुजरात में राम मंदिर का मुद्दा डूबते को तिनके का सहारा जैसा है.
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