'कांग्रेस मुक्त', 'विपक्ष मुक्त' भारत के बाद BJP की 'सहयोगी दल मुक्त' NDA मुहिम
अमित शाह के सपनों के स्वर्णिम काल का मतलब पंचायत से पार्लियामेंट तक 'मोदी-मोदी' की जयकार है. सहयोगी दलों की मदद से शाह मंजिल के काफी करीब पहुंच भी चुके हैं - लेकिन लगता है अब सहयोगियों की किचकिच से भी वो निजात पाना चाहते हैं.
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2014 से मुक्ति पद पर अग्रसर बीजेपी लगातार कदम बढ़ाये जा रही है. बीजेपी ने सार्वजनिक ऐलान तो सिर्फ 'कांग्रेस मुक्त भारत' का किया था, लेकिन साथ ही साथ 'विपक्ष मुक्त भारत' अभियान भी चलता रहा. चार साल बाद बीजेपी को लगने लगा है कि अब वो वक्त भी आ चुका है जब एनडीए के भीतर भी 'सहयोगी दल मुक्त, मुहिम शुरू होनी चाहिये.
NDA में होने की कीमत अब समझ में आएगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी तो वैसे भी गठबंधन की राजनीति में खास दिलचस्पी नहीं रखती. 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में अकाली दल के प्रति बीजेपी का रवैया साफ देखा जा चुका है. प्रकाश सिंह बादल के समर्थन में प्रधानमंत्री मोदी की रैली भी रस्मअदायगी भर से ज्यादा नहीं लगी. शिवसेना की धमकियों के बीच बीजेपी को बिहार के नेताओं की ओर से भी लगातार चेतावनी दी जा रही है. हाल की कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में 300 सीटें जीतने के फॉर्मूला पर गंभीर चर्चा हुई थी. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह तो उससे पहले से ही साढ़े तीन सौ से ज्यादा सीटें लाने की कोशिश में एड़ी चोटी का जोर लगाये हुए हैं. सवाल है कि इतनी सीटें आएंगी कैसे? जब लक्ष्य इतना बड़ा है तो उम्मीदवारों की तादाद भी उसी हिसाब से चाहिये होगी.
स्वर्णिम काल का मतलब सिर्फ बीजेपी, एनडीए नहीं!
एक बात और सामने आयी थी कि बीजेपी जिन लोगों से संपर्क फॉर समर्थन अभियान के तहत मुलाकात कर रही है, वैसे लोगों को 2019 में चुनाव मैदान में भी लाने की तैयारी कर रही है. जाहिर है बीजेपी को खुद के लिए ज्यादा सीटों की जरूरत होगी. फिर तो मान कर चलना चाहिये कि बीजेपी के सहयोगियों को ही इसकी कीमत चुकानी होगी. वैसे दैनिक भास्कर के जरिये जो खबर आयी है वो भी यही बता रही है - बीजेपी खुद 450 से 480 लोक सभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. समझा जा सकता है बाकियों के हिस्से के लिए कितनी सीटें बचेंगी.
संपर्क फॉर समर्थन के बाद
ऐसे में जबकि उद्धव ठाकरे अयोध्या-काशी की यात्रा पर निकल रहे हैं, नीतीश कुमार NDA में बने रहने की बात और छोड़ने के मौके की तलाश में घात लगाये बैठे हैं - अमित शाह 2019 के लिए कौन सी रणनीति अख्तियार किये हुए हैं जान कर सहयोगी दलों की चिंता बढ़नी तय है. अमित शाह के बिहार दौरे से पहले जेडीयू के तमाम नेता बारी बारी से बिहार में नीतीश कुमार को एनडीए का चेहरा बताने पर तुले हुए थे. आज कल चिराग पासवान भी दलित राजनीति के नाम पर बीजेपी को खूब भाव दिखा रहे हैं.
संपर्क फॉर समर्थन के बाद बीजेपी ने एनडीए के सहयोगी दलों को झटका देने की तैयारी पूरी कर ली है. इस मुहिम के तहत अमित शाह सहयोगी दलों में सबसे पहले शिवसेना से मिलने मातोश्री ही पहुंचे थे - उसके बाद पंजाब. फिर मिर्जापुर में अपना दल नेता और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल से अमित शाह घर जाकर तो मिले ही - बिहार पहुंच कर नीतीश कुमार से भी समर्थन बनाये रखने के लिए संपर्क किया.
महाराष्ट्र में शिवसेना को खत्म करने और नीतीश कुमार को पाले में मिलाने के बाद बीजेपी अब अकाली दल के साथ भी वैसा ही सलूक करने वाली है.
2014 से कितना अलग होगा 2019 का NDA
2019 में बीजेपी 2014 के मुकाबले करीब 50 उम्मीदवार ज्यादा उतारने वाली है. कुछ उम्मीदवार के टिकट कटेंगे ये तो तय है. 'देख लूंगा,' प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी सांसदों को ऐसे ही सख्त लहजे में एक बार कहा भी था. खुद अमित शाह ने भी स्क्रूटनी के लिए कड़े पैमाने तय कर रखे हैं. 2014 में बीजेपी ने पहली बार सबसे ज्यादा 428 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे - और मोदी लहर में उसने अपने बूते 282 सीटों पर जीत भी हासिल की थी. चार साल बाद ये संख्या 273 हो चुकी है.
चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी के गठबंधन छोड़ने का असर कम से कम हो इस बात के भी पूरे ख्याल रखे जा रहे हैं. अविश्वास प्रस्ताव पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस बात का पूरा ख्याल रखा. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से हुई बातचीत के जिक्र के बहाने मोदी ने राज्य के लोगों को भरोसा दिलाने की कोशिश की कि बीजेपी उनका ख्याल रखने में कोई कंजूसी नहीं बरतने वाली.
बीजेपी ने वैसे तो नॉर्थ ईस्ट सहित देश के बहुत सारे राज्यों में कई पार्टियों के साथ गठबंधन कर रखा है, लेकिन मुख्य तौर पर महाराष्ट्र, बिहार, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पंजाब ही उसके लिए ज्यादा मायने रखते हैं.
महाराष्ट्र : अब तक तो शिवसेना ही बीजेपी से अलग होकर 2019 के मैदान में उतरने की घोषणा करती रही, लेकिन अब अमित शाह ने भी 'शठे शाठ्यम् समाचरेत' का मंत्र अपनाने की बात साफ कर दी है. महाराष्ट्र बीजेपी के कार्यकर्ताओं को अमित शाह का साफ संदेश मिल चुका है कि बीजेपी को राज्य की सभी 48 सीटों पर चुनाव लड़ने के हिसाब से तैयारी करनी है.
अमित शाह ने ये कदम मोदी सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव को लेकर शिवसेना के रुख के बाद ये फैसला किया है. अविश्वास प्रस्ताव पर शिवसेना ने आखिरी वक्त में वोटिंग से दूर रहने का फैसला किया था.
बिहार : बिहार में नीतीश कुमार दोबारा एनडीए छोड़ने के कई संकेत दे चुके हैं, फिर भी लगता है किसी बड़े और बेहतरीन ऑफर का इंतजार कर रहे हैं. नीतीश कुमार की न्यूनतम जरूरत मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाये रखना और अधिकतम प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाना है. महागठबंधन में वापसी की हालत में भी यही बातें लागू होंगी.
बिहार में बीजेपी की बहार आने वाली है...
बीजेपी के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा तो आरजेडी नेताओं के साथ मानव श्रृंखला तक बना चुके हैं. राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान इन दिनों दलित राजनीति की आवाज बुलंद किये हुए हैं. जिस हिसाब से बीजेपी के सारे सहयोगी अपने लिए सीटें मांगते आ रहे हैं, उसके हिसाब से तो बीजेपी के हिस्से में सीटें नहीं के बराबर ही बचेंगी.
ये जेडीयू नेता ही रहे जो शोर मचाये हुए थे कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए के फेस होंगे - बीजेपी ने जेडीयू नेताओं के साथ साथ बाकियों को भी मैसेज देने की कोशिश की है. ज्यादातर सीटें अपने हिस्से में रखने का मतलब ही हुआ कि एनडीए में सहयोगियों के लिए डील आसान नहीं होगी.
आंध्र प्रदेश : आंध्र प्रदेश में टीडीपी ने स्पेशल स्टेटस के मुद्दे पर एनडीए छोड़ दिया है. फिर तो बीजेपी का अकेले चुनाव लड़ना तय है. आंध्र प्रदेश में गठबंधन टूटने से स्वाभाविक तौर पर बीजेपी की सीटें बढ़ जाएंगी.
आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस भी स्पेशल स्टेटस की ही राजनीति कर रही है - और लोक सभा से सांसदों का इस्तीफा दिलवाने के मामले में भी जगनमोहन रेड्डी सबसे आगे रहे. चंद्रबाबू नायडू के छोड़ने के बाद कयास लगाये जा रहे हैं कि बीजेपी जगनमोहन के साथ चुनावी गठबंधन कर सकती है. देखा जाये तो बीजेपी और जगनमोहन दोनों को ही एक दूसरे की बड़ी शिद्दत से जरूरत है.
उत्तर प्रदेश : यूपी दौरे पर हाल ही में गये अमित शाह ने जो अहमियत अनुप्रिया पटेल को दी, उससे संकेत साफ रहे कि 2019 में अपना दल की हिस्सेदारी बढ़ने वाली है. दूसरी तरफ, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता और योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर को मुलाकात का मौका तक नहीं दिया. ओम प्रकाश राजभर के लिए भी इशारा काफी था कि बीजेपी के खिलाफ जो मोर्चा खोल रखा है उसकी कीमत भी उन्हीं को चुकानी पड़ेगी.
एनडीए में अनुप्रिया को मिल सकता है सबसे ज्यादा फायदा
पंजाब : जहां तक पंजाब का सवाल है, बीजेपी पहले से ही मन बना चुकी है, ऐसा लगता है. हरसिमरत कौर केंद्र की मोदी कैबिनेट में मंत्री जरूर हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों के वक्त से ही अकाली दल के प्रति बीजेपी का व्यवहार लोक लाज के डर से निभाने वाला नजर आ रहा है.
2014 में बीजेपी पंजाब की 13 में से 3 सीटों पर चुनाव लड़ी थी - अमृतसर, होशियारपुर, गुरदासपुर. अमृतसर सीट से अरुण जेटली तो हार गये लेकिन गुरदासपुर से विनोद खन्ना और होशियारपुर से विजय साम्पला ने सीटें बीजेपी की झोली में डाल दी. मुख्यमंत्री बन जाने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में भी अमृतसर पर कांग्रेस का ही कब्जा बरकरार रहा. विनोद खन्ना के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने बीजेपी को आउट कर दिया.
अब गुरदासपुर सीट से अक्षय कुमार ने चुनाव लड़ने की बात सुनी जा रही है - साथ ही, 2019 में बीजेपी आनंदपुर साहिब, जालंधर और लुधियाना पर भी दावा जताने वाली है.
अमित शाह के मुताबिक बीजेपी के स्वर्णिम काल का मतलब पंचायत से पार्लियामेंट तक अपने शासन से है. अब तक बीजेपी एनडीए के शासन के नाम पर कांग्रेस मुक्त भारत का दंभ भरती रही है - लगता है जल्द ही एनडीए की ये जगह भी बीजेपी खुद अपने नाम लिखने वाली है. मतलब, बीजेपी के स्वर्णिम काल में भारत NDA मुक्त भी हो चुका होगा.
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