कांग्रेस में हार के बाद शशि थरूर का मालिक अब अल्लाह ही क्यों है?
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे से मुंह की खाने के बाद शशि थरूर पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. सवाल ये है कि, क्या नतीजों के बाद पार्टी में थरूर उसी स्थिति में रहेंगे जो चुनावों से पहले थी?
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मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच हुए चुनाव के बाद आखिरकार कांग्रेस को अपना नया अध्यक्ष मिल ही गया. थरूर से हुए मुकाबले में खड़गे को 7,897 वोट मिले ऐतिहासिक जीत दर्ज की. भले ही राहुल गांधी और सोनिया गांधी समेत कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं से मल्लिकार्जुन खड़गे को बधाई मिल रही हो. इस चुनाव को पूर्णतः लोकतांत्रिक बताया जा रहा हो. मगर हार ने थरूर और उनके पूरे खेमे को आहत कर दिया है. नतीजों के बाद थरूर कैम्प कांग्रेस पार्टी पर धोखाधड़ी के आरोप लगा रहा है और चुनाव को फिक्स बताया जा रहा है.
जीत के बाद खड़गे आलाकमान से लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं की नजरों में बाजीगर बन चुके हैं. वहीं थरूर की बात हो तो भले ही कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव में हजार से ऊपर मत हासिल कर शशि थरूर ने कई रिकॉर्ड अपने नाम किये, लेकिन मौजूदा वक़्त का एक बड़ा सच यही है कि इस चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी में एक नेता के रूप में शशि थरूर का कद जरूर प्रभावित हुआ है.
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में हिस्सा लेकर थरूर ने मुसीबत खुद मोल ली थी अब अंजाम से डर कैसा
हार जीत अपनी जगह है, मगर चूंकि थरूर पहले ही उस G-23 केटेगरी में थे जो कांग्रेस पार्टी में अपने बगावती तेवरों के लिए मशहूर थी इसलिए ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि हार के बाद थरूर पार्टी में उस स्थिति में आ गए हैं जहां अब शायद ही उनकी पूछ हो. चुनाव में शशि थरूर पराजय का मुंह देखेंगे ये बात जगजाहिर थी लेकिन उनका जो हाल पार्टी के तमाम छोटे बड़े नेता हार के बाद कर रहे हैं पार्टी की सम्पूर्ण कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाता नजर आ रहा है.
एक पार्टी के रूप में कांग्रेस ने हमेशा ही डंके की चोट पर आंतरिक लोकतंत्र की बात की है. लेकिन जब हम कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव, उसके नतीजों और बाद की बयानबाजी पर नजर डालते हैं और उसका अवलोकन करते हैं तो स्वतः ही महसूस होता है कि कांग्रेस पार्टी में लोकतंत्र तो नहीं, हां तानाशाही भरपूर है. इस बात को जानकर बहुत ज्यादा विचलित होने या सवाल करने की कोई जरूरत नहीं है. बात आगे बढ़े उससे पहले हम राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा कही गयी उस बात का जिक्र जरूर करना चाहेंगे जहां पार्टी की तरफ से उन्होंने एक ही पल में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार शशि थरूर को ख़ारिज कर दिया.
परिणाम के बाद जहां एक तरफ गहलोत ने पार्टी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पुराना कार्यकर्ता घोषित किया तो वहीं थरूर के विषय में गहलोत ये कहते पाए गए कि वो नए हैं. बाहरी हैं और पार्टी में उन्हें कोई जानता भी नहीं है. खड़गे का पक्ष लेते हुए गहलोत ये कहने से भी नहीं चूके कि थरूर को भले ही विदेशों में लोग जानते हों मगर देश में कोई उन्हें नहीं जानता.
खड़गे समर्थक चुनाव नतीजों के बाद से थरूर के प्रति हमलावर हो गए हैं. तमाम अनर्गल तर्क दिए जा रहे हैं और चुनाव को पूर्णतः लोकतांत्रिक बताया जा रहा है. मौजूदा वक़्त में थरूर का जो हाल उनके अपने ही लोग कर रहे हैं वो कहीं न कहीं उनके भविष्य की भी तस्दीख करता नजर आ रहा है. थरूर लाख पढ़े लिखे हों, उनका शुमार न केवल पार्टी बल्कि देश के बुद्दिजीवियों में हो. मगर ये कहना भी गलत न होगा कि इस चुनाव के बाद थरूर की सारी लिखाई पढ़ाई धरी की धरी रह गयी है और अपने बागी तेवरों की बदौलत आज वो उस मुकाम पर पहुंच गए हैं जहां पर एक आम कार्यकर्ता खड़ा है.
बाकी इस चुनाव ने एक पार्टी के रूप में हमें कांग्रेस की संरचना बता दी है जिसमें आज शीर्ष पर राहुल-सोनिया और उनका परिवार हैं. दूसरे पायदान पर पार्टी के नए नए अध्यक्ष बने मल्लिकार्जुन खड़गे हैं फिर इसके बाद कार्यकर्ता हैं. जिक्र चूंकि चुनाव में हार का मुंह देखने वाले शशि थरूर का हुआ है तो ये बता देना भी आवश्यक है कि थरूर भी ठीक इसी जगह हैं जहां कार्यकर्ता हैं.
अंत में बस इतना ही कि ये जानते हुए कि खड़गे के सामने हार सुनिश्चित है थरूर ने बड़ा रिस्क लिया. देखना दिलचस्प रहेगा कि दबाव में रहने के बाद वो पार्टी में आगे कितने दिनों तक बने रहते हैं. कहीं ऐसा न हो कि थरूर दबाव में आकर हथियार डाल दें.
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