पहले मोदी, फिर सुखबीर - केजरीवाल को अगला खतरा रुपानी से या...
अगर मौजूदा खतरे की पीरियड पता चले तो ये भी पता लगाना होगा कि अगला थ्रेट क्या है? वो कौन कौन से शख्स हैं जो केजरीवाल के लिए खतरनाक हो सकते हैं?
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मालूम हुआ है कि अरविंद केजरीवाल को अब नया खतरा सुखबीर बादल से है. सुखबीर बादल पंजाब के डिप्टी सीएम हैं जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. आम आदमी पार्टी का आरोप है कि सुखबीर, केजरीवाल की हत्या करा कर उसका इल्जाम आईएसआई पर थोप सकते हैं.
तो क्या केजरीवाल को प्रधानमंत्री मोदी से संभावित खतरा सुखबीर की तरफ शिफ्ट हो गया है - अभी तक तो केजरीवाल का यही कहना रहा है कि मोदी उनकी हत्या करा सकते हैं.
खतरे का निशान
भई राजनीति अपनी जगह है लेकिन केजरीवाल या उनकी पार्टी की ओर से किसी तरह का खतरा महससूस किया गया है तो ये बहुत गंभीर मामला है. अब ये सुरक्षा एजेंसियों की जिम्मेदारी बनती है कि केजरीवाल पर खतरे का सही सही आकलन करें - और उसके बाद समुचित कदम उठायें.
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सबसे पहले तो सुरक्षा एजेंसियों को इसके लिए खतरे का एक निशान बनाना होगा. ठीक वैसे ही जैसे गंगा में होता है, यमुना में होता है - या किसी भी नदी में होता है. जैसे वहां खतरे का निशान बताता है कि बाढ़ कितनी खतरनाक स्थिति में है, उसी तरह इस मामले में भी कोई इंतजाम जरूर होना चाहिये.
वाह रे सियासत, जिसका रखवाला भगवान हो उसे इंसान से खतरा... |
निशान तय करने के बाद अब इस बात की पैमाइश हो कि सुखबीर को कठघरे में लाने के बाद खतरा बढ़ा है या घटा है. वैसे तो डिप्टी सीएम के मुकाबले प्रधानमंत्री से डेंजर लेवल ज्यादा होना चाहिए - उसके पास पूरे मुल्क की ताकत है, जबकि एक डिप्टी सीएम के पास सिर्फ स्थानीय ताकत होती है. इसे भी उसी तरह समझना होगा जैसे लोग समझाते हैं कि पुलिस कप्तान से ज्यादा ताकतवर थानेदार होता है. कोई पुलिस कप्तान यानी एसपी अगर किसी को लॉकअप में डालना चाहे तो उसे अपने किसी मातहत को इसके लिए हुक्म देना पड़ेगा. थानेदार तो खुद कॉलर या बांह पकड़ कर हवालात में डाल देगा और पीछे पीछे से पहरे पर तैनात संतरी उस पर ताले के तौर इस्तेमाल होने वाली हथकड़ी तपाक से जड़ देगा.
इस हिसाब से देखें तो एक डिप्टी सीएम प्रधानमंत्री पर भारी पड़ता है. वैसे भी किसी बड़े माफिया से ज्यादा खतरनाक लोकल गुंडा माना जाता है. शायद इसीलिए समय रहते आम आदमी पार्टी ने आशंका भरी चेतावनी जारी कर दी है. चुनाव में अभी इतना वक्त तो है कि इसे ठीक से भुनाया जा सके, बशर्ते लोग इस खतरे को गंभीरता पूर्वक महसूस करने लगें. अगर लोग महसूस कर लिये तो सुरक्षा एजेंसियां करें या न करें क्या फर्क पड़ता है.
लेकिन सुरक्षा एजेंसियों को भला लोगों को इसके अहसास होने तक इंतजार थोड़े ही करना चाहिये. उन्हें तो पता करना ही होगा कि क्या सुखबीर थ्रेट के चलते मोदी थ्रेट न्यूट्रलाइज हो गया है - या दोनों मिल कर ज्वाइंट थ्रेट खड़ा कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो ये तो बेहद खतरनाक है.
एजेंसियों का काम खतरे के पीरियड का आकलन भी होता है. मतलब ये कि मौजूदा खतरे का पीरियड क्या है? ये खतरा कितने दिन बना रहेगा? क्या मोदी थ्रेट पीरियड एक्सपायर कर गया है?
अगला खतरा
अगर मौजूदा खतरे की पीरियड पता चले तो ये भी पता लगाना होगा कि अगला थ्रेट क्या है? वो कौन कौन से शख्स हैं जो केजरीवाल के लिए खतरनाक हो सकते हैं?
कहीं अगला थ्रेट विजय रुपानी तो नहीं हैं. पंजाब के बाद चुनाव तो गुजरात में ही होने वाले हैं. या, रुपानी के बाद अगर कोई और गुजरात का संभावित सीएम है तो कहीं वो तो केजरीवाल के लिए खतरा नहीं है? क्योंकि केजरीवाल की पार्टी गुजरात में भी 128 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली है. ऐसे में खतरे की आशंका तो है ही.
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मामला गुजरात सिर्फ गुजरात तक तो है नहीं. गुजरात के बाद गोवा के सीएम या किसी मिनिस्टर से खतरा हो सकता है. मनोहर पर्रिकर भी तो गोवा के ही हैं. गुजरात के बाद खतरे की आशंका तो उनसे भी हो सकती है.
इंटरनल जांच
अगर केजरीवाल को लगे कि एजेंसियां सत्ता पक्ष के इशारे पर काम कर रही हों तो वो अपने इंटरनल एजेंसियों को काम पर लगा सकते हैं. जिस तरह आप का आतंरिक लोकपाल काम करता है वैसी इंटरनल एजेंसी तो होगी ही. ये तो हर किसी को मान कर चलना चाहिये.
केजरीवाल तो खुद ही बुलेट पॉलिटिक्स में यकीन रखते हैं. 'खुदी को कर बुलंद इतना...' केजरीवाल की लाइन भी कुछ ऐसी ही है. खुद ही इतने खतरनाक बन जाओ कि हर खतरा भी खुद पर खतरा महसूस करे - बाकियों को खतरा तो लगे ही...
वैसे तो ये जांच का विषय है, लेकिन मुमकिन है सुखबीर के बाद रुपानी और उसके बाद पर्रिकर या कोई और हो.
2019 आते आते इस तरह फिर से मोदी से खतरा हो सकता है, अगर मोदी से नया खतरा बरकरार रहा तो फिर 2020 में भी खतरा बना रहेगा - जब दिल्ली में अगली सरकार बनने की बारी आएगी.
क्या पता जिस राहुल गांधी को वो अपने ट्वीट में पप्पू की तरह ट्रीट करते हैं - कहीं उन्हीं से केजरीवाल को खतरा महसूस होने लगे.
अगर 2019 में किस्मत ने किसी और का साथ दे दिया फिर तो खतरे का सोर्स अपनेआप बदल जाएगा. क्या पता अपने ही दगाबाज न निकल जाएं. कहीं ऐसा तो नहीं कि 2019 के बाद केजरीवाल को नीतीश कुमार, ममता बनर्जी से ही खतरा महसूस होने लगे, जिन्हें अभी वो अपना मान कर चल रहे हैं.
मन की बात और है, वाकर्ई सियासत बड़ी गंदी चीज है - अब इरोम शर्मिला को कौन समझाए. कभी कभी केजरीवाल के मन में ऐसे ख्याल भी तो आते ही होंगे - आखिर वो भी तो आम आदमी ही हैं, हम सब की तरह.
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