केजरीवाल बिलकुल सच बोल रहे हैं मोदी उन्हें फिनिश कर देंगे
क्या केजरीवाल को ये नहीं समझ में आता कि वो ऐसे मोदी से भिड़ रहे हैं जिन्हें राजनीतिक विरोधी संजय जोशी क्या, अपने मेंटोर लालकृष्ण आडवाणी को मार्गदर्शक मंडल तक पहुंचाने में न तो देर लगी न कोई संकोच हुआ.
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दिल्ली पर किसका हुक्म चलेगा, इसे लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला आने से काफी पहले अरविंद केजरीवाल विपश्यना पर चले गये. केजरीवाल फिलहाल धर्मशाला में विपश्यना कर रहे हैं जहां न तो वो टीवी देख सकते हैं, न अखबार और न ही सोशल मीडिया का कुछ पता कर सकते हैं.
विपश्यना के क्या फायदे हैं ये भी लगता है सबसे बेहतर केजरीवाल ही समझते हैं. विपश्यना के लिए ये बिलकुल माकूल वक्त होगा केजरीवाल को जरूर पता होगा. पहले भी जब योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के आम आदमी पार्टी से निकाले जाने का फैसला होने वाला था - केजरीवाल दिल्ली से दूर निकल चुके थे.
विपश्यना जरूरी है
विपश्यना के चलते अभी न तो उनका कोई ट्वीट आ सकता है न कोई वीडियो मैसेज. केजरीवाल की गैरमौजूदगी में लोग मजे लेने शुरू कर दिये हैं - जिनमें उनके पुराने साथी भी हैं और राजनीतिक विरोधी भी.
जैसे ही हाई कोर्ट ने दिल्ली के असली एडमिनिस्ट्रेटर के तौर उप राज्यपाल के नाम पर मुहर लगाया, योगेंद्र यादव ने ट्वीट कर कहा - "जिसका डर था वही हुआ."
जिसका डर था वही हुआ।बचकाना हरकतों ने दिल्ली सरकार के अधिकार के सही मुद्दे का मजाक बना दिया,दिल्ली राज्य और दिल्ली की जनता को पीछे धकेल दिया
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) August 4, 2016
2 अक्टूबर को अपनी नई पार्टी का एलान करने जा रहे योगेंद्र यादव ने एक और ट्वीट कर बताया कि फैसले का असली मतलब क्या है?
कहानी का सबक: संवैधानिक सरकार धीरज, समझदारी और संजीदगी से चलती है, बचकाना हरकतों और नौटंकी से नहीं
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) August 4, 2016
फिर तो मौके का फायदा उठाने से भला संबित पात्रा कैसे चूकते. पात्रा ने भी केजरीवाल के अंदाज में ही उन पर कटाक्ष किया - अब ये मत बोल देना...
After the verdict by the HC, hopefully Mr Kejriwal doesn't resort to his usual self & say "Modi ji ki High Court kam karne nahi de rahi hai"
— Sambit Patra (@sambitswaraj) August 4, 2016
मोदी की पॉलिटिक्स में उलझे केजरीवाल
केजरीवाल राजनीति की प्रैक्टिस करते हैं. ऐसी राजनीति कि प्रैक्टिस जो काफी हद तक फ्री-स्टाइल कुश्ती जैसी नजर आती है. कई बार तो ऐसा लगता है टीवी पर प्रियंका चोपड़ा नहीं, बल्कि केजरीवाल पूछ रहे हों कि आपके टूथपेस्ट में नमक है - नींबू है - नीम है? "आपने मोदी जी को देखा - वो बौखला गये हैं - वो साजिश रच रहे हैं - हमारी हत्या करवा सकते हैं?"
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प्रधानमंत्री मोदी को अब तक वो कायर से लेकर मनोरोगी बता चुके हैं. देश के इतिहास में अब तक ऐसा कभी देखने को नहीं मिला है कि किसी प्रधानमंत्री ने किसी मुख्यमंत्री के बारे में ऐसी कोई साजिश रची हो. अगर ऐसा होता तो कभी न कभी विकीलीक्स वगैरह बता चुके होते.
निश्चित तौर पर केजरीवाल की फ्री-स्टाइल राजनीति ने उन्हें इतनी कामयाबी दिलाई है - ये राजनीति बिकाऊ तो है लेकिन क्या टिकाऊ भी है? शायद केजरीवाल के पास इस बारे में सोचने की फुरसत न हो - लेकिन उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि वो जिस मोदी को टारगेट कर रहे हैं वो राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी हैं.
क्या केजरीवाल को ये नहीं समझ में आता कि वो ऐसे मोदी से भिड़ रहे हैं जिन्हें राजनीतिक विरोधी संजय जोशी क्या, अपने मेंटोर लालकृष्ण आडवाणी को मार्गदर्शक मंडल तक पहुंचाने में न तो देर लगी न कोई संकोच हुआ - फिर बाकी किस खेत की मूली कहलाते हैं?
सही बोल रहे हैं केजरीवाल!
अगर केजरीवाल के बयान में शब्दों की बजाए भावनाओं को समझने की कोशिश करें तो उनकी आशंका काफी हद तक सही नजर आती है.
याद कीजिए जिस झाडू के बूते केजरीवाल दिल्ली की कुर्सी पर कब्जा जमाने में कामयाब हुए, मोदी ने आते ही एक झटके में झाडू को अपने स्वच्छता अभियान के साथ जोड़ कर हाइजैक कर लिया. उसके बाद से शायद ही कभी 'अब चलेगी झाडू' जैसे नारे सुनने को मिले हों.
ये गुजरे जमाने की राजनीति है जरा फासले से चला करो... |
एक बार मोदी ने केजरीवाल को सिटी लेवल का नेता बताया था - और उसके बाद से वो केजरीवाल को अपनी राजनीतिक चालों से उनका कद कतरते हुए छोटा करते जा रहे हैं. मोदी की चालों में उलझे केजरीवाल एक के बाद एक गलतियां करते जा रहे हैं - और इस तरह उनकी कमियां लोगों के सामने आ रही हैं.
केजरीवाल के एक दर्जन विधायक जेल जा चुके हैं. सबके सब ऐसे अपराधों में जेल गये हैं कि पुलिस पर इससे ज्यादा आरोप नहीं बनता कि उसने कोई परहेज नहीं किया - बस मौका मिलते ही एक्शन ले लिया.
जिन 21 विधायकों की सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है उसके लिए भी केजरीवाल किसी और जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते. ये सब उनकी राजनीतिक अनुभवहीनता के चलते हुआ है. सलाहकारों के नाम पर उन्होंने नौसिखियों की जो फौज जुटाई है उनसे उन्हें इससे ज्यादा उम्मीद भी नहीं करनी चाहिये. अब केजरीवाल के जो भी बयान आ रहे हैं उसमें उनकी झुंझलाहट ही नजर आ रही है - उनके कई बयान तो ऐसे हैं कि अगर किसी ने कभी उन्हें गंभीर समझा हो तो वो भी उसकी नासमझी साबित होने जा रही है.
जिस तरह केजरीवाल मोदी से अपनी जान का खतरा बता रहे हैं - उसी तरह उन्हीं की पार्टी के विधायक आसिम अहमद खान भी हत्या की आशंका जता रहे हैं. खान का कहना है कि 9-10 महीने से उन्हें और उनके परिवार को जान का खतरा महसूस हो रहा है. खान का ताजा आरोप है कि केजरीवाल उनके पिता को छेड़छाड़ के किसी फर्जी मामले में फंसा सकते हैं.
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ये कहते तो केजरीवाल हैं कि मोदी जी बौखला गये हैं, लेकिन खुद उन्हीं में कहीं ज्यादा बौखलाहट नजर आ रही है. क्या केजरीवाल को ये समझ में नहीं आ रहा कि मोदी यही तो चाहते हैं कि वो बौखलाहट में गलतियां करें. 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाना इन्हीं गलतियों में से एक है.
शायद केजरीवाल को नहीं समझ आ रहा कि वो दिनों दिन मोदी के जाल में उलझते जा रहे हैं. मोदी यही तो चाहते हैं कि धीरे धीरे ही सही केजरीवाल एक दिन पूरी तरह एक्सपोज हो जाएं. आखिर अच्छे दिन ऐसे ही तो आते हैं.
क्या केजरीवाल को इतनी सी बात समझ में नहीं आ रही कि न तो मोदी आखिरी नसीबवाला हैं - और न ही केजरीवाल. कब कोई नया नसीबवाला वाइल्ड कार्ड एंट्री मार दे कौन बता सकता है?
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