प्रियंका के बाद 'बीजेपी का गांधी' है कांग्रेस की लिस्ट में!
प्रियंका गांधी की कांग्रेस में औपचारिक एंट्री के बाद एक से बढ़कर एक चर्चाओं की एंट्री हो रही है. अभी अमिताभ बच्चन के कांग्रेस में शामिल होने के कयास थमे भी नहीं थे, कि अब गांधी परिवार के बिछड़े सदस्य को बीजेपी से कांग्रेस में लाए जाने की बात शुरू हो गई है.
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राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव बनाने के साथ जिस पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान उन्हें सौंपी है, उसमें अमेठी और रायबरेली के साथ सुल्तानपुर की सीट भी आती है. प्रियंका गांधी ने अपने भाई राहुल की सीट अमेठी और मां सोनिया गांधी की सीट रायबरेली के साथ-साथ सुल्तानपुर के कांग्रेस संगठन पर हमेशा अपनी नजर रखी. अब वही सुल्तानपुर प्रियंका गांधी के टारगेट पर है. कांग्रेस न सिर्फ इस सीट को अपना बनाना चाहती है, बल्कि इसके बीजेपी सांसद को भी. और इस चर्चा की वजह बेबुनियाद नहीं कही जा सकती. क्योंकि इस सीट के बीजेपी सांसद से प्रियंका गांधी का न सिर्फ खून का रिश्ता है, बल्कि आपसी समझ का भी है.
क्या प्रियंका के बाद वरुण का नंबर है?
सोनिया गांधी और मेनका गांधी के रिश्ते खराब कहे जाएंगे. राहुल गांधी और वरुण गांधी का रिश्ता सामान्य समझा जा सकता है, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा और वरुण के संबंध काफी मधुर माने जाते हैं. कभी कभार के राजनीतिक बयानों को छोड़ दें तो दोनों भाई-बहन का रिश्ता अच्छे से निभाते हैं.
प्रियंका गांधी को उनके भाई राहुल गांधी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी है - तो क्या प्रियंका गांधी अपने चचेरे भाई वरुण को भी अपने मिशन का हिस्सा बना सकती हैं.
प्रियंका गांधी की कांग्रेस में औपचारिक पारी के बाद अब वरुण गांधी भी को लेकर भी नयी पारी के कयास लगाये जा रहे हैं. 20 जनवरी को तो एक उर्दू अखबार ने अपने पहले पेज पर प्रश्नवाचक चिह्न के साथ खबर की हेडलाइन भी लगा दी थी - 'बीजेपी लीडर वरुण गांधी कांग्रेस से होंगे उम्मीदवार?'
हालांकि, उसी दिन अंग्रेजी अखबार टेलीग्राफ में वरुण गांधी बीजेपी की तारीफ में कसीदे पढ़ते देखे गये. वरुण गांधी ने बताया कि बीजेपी ने उनकी मां मेनका गांधी और खुद उन्हें भी बहुत सम्मान दिया है और उन्हें किसी तरह की शिकायत नहीं. वरुण गांधी का कहना रहा कि ये बीजेपी ही जिसने उन्हें 29 साल की उम्र में महासचिव और 31 की उम्र में पश्चिम बंगाल और असम का चुनाव प्रभारी बनाया.
देखा जाये तो कांग्रेस के लिए वरुण गांधी से बेहतर योगी की काट नहीं है. सॉफ्ट हिंदुत्व की जगह हार्ड हिंदुत्व के साथ कांग्रेस अपनी आइडियोलॉजी को आगे बढ़ाये. वैसे भी वो टैलेंट बीजेपी में बर्बाद ही हो रहा है.
यूपी चुनावों से पहले बीजेपी की इलाहाबाद कार्यकारिणी में वरुण ने दमखम दिखाया भी था. कोई फर्क नहीं पड़ा. दरअसल, कोलकाता में मोदी की सभा में भीड़ को लेकर उनकी टिप्पणी भारी पड़ी - और उसके बाद वो बीजेपी नेतृत्व की किरकिरी बन गये.
वैसे भी प्रियंका के साथ वरुण की केमिस्ट्री अच्छी बतायी जाती है. जब अखिलेश और माया के साथ मिल कर लड़ने की बात कर रहे हैं, तो वरुण गांधी के भी देर सवेर कांग्रेस ज्वाइन करने की संभावना से इंकार कैसे किया जा सकता है. राजनीति बयानबाजी तो मौके के हिसाब से दस्तूर होती है - जरूरत के हिसाब से कभी भी संशोधन किया जा सकता है और अपनी पुरानी बात को ही नये सिरे से समझाया जा सकता है.
अब सवाल है कि वरुण गांधी को कांग्रेस में लाने की पैरवी प्रियंका गांधी क्यों करेंगी? इसे दो पैमानों पर तौलना होगा - एक पारिवारिक रिश्ता और दूसरा राजनीतिक हैसियत. अगर पारिवारिक रिश्तों की बात करें तो फरवरी, 2011 में वरुण गांधी अपनी शादी का कार्ड लेकर खुद 10, जनपथ गये थे. मार्च में वरुण की शादी हुई तो सोनिया गांधी के परिवार से कोई भी शामिल नहीं हुआ.
क्या अब वरुण गांधी की बारी है?
रही बात वरुण गांधी के राजनीतिक हैसियत की तो उसका बेहतरीन नजारा बीजेपी की इलाहाबाद कार्यकारिणी के दौरान देखने को मिला था. तब राजनाथ सिंह के काफिले के बराबर वरुण गांधी के ही लाव लश्कर की चर्चा रही. वरुण गांधी की कट्टर हिंदुत्व नेता की छवि उस वक्त उभर कर सामने आयी जब उनके एक भाषण का वीडियो सामने आया. वीडियो में वरुण गांधी को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बयान देते देखा गया - लेकिन उस मामले में वो कोर्ट से बरी हो गये. कोर्ट से बरी होना और छवि दोनों दो बातें हैं. नरेंद्र मोदी की एक रैली को लेकर अपने बयान के कारण वरुण गांधी को अमित शाह के आंख की किरकिरी और बीजेपी में हाशिये पर रहना पड़ रहा है. वरना, योगी आदित्यनाथ के बराबर यूपी के मुख्यमंत्री पद के एक दावेदार तो वो हैं ही. देखा जाये तो कांग्रेस के मुस्लिम पार्टी होने का दाग धोने के लिए राहुल गांधी कड़ी मशक्कत के बाद भी सॉफ्ट हिंदुत्व की जो छवि हासिल कर पाये हैं, वरुण गांधी बीस पड़ेंगे.
अगर प्रियंका गांधी को वरुण गांधी को कांग्रेस में आने के लिए राजी कर लेती हैं तो योगी आदित्यनाथ के खिलाफ उससे मजबूत काउंटर अटैक कुछ और नहीं हो सकता. कम से कम फिलहाल तो यही स्थित नजर आ रही है.
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