बीजेपी विरोधी मोर्चे में राहुल गांधी के मुकाबले ममता बनर्जी बीस पड़ रही हैं - against bjp opposition leaders look ready to prefer mamata banerjee over rahul gandhi
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Updated: 15 जून, 2018 09:25 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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कैराना के नतीजे ने ये तो बता दिया कि कर्नाटक में विपक्ष की वायरल तस्वीरें फर्जी नहीं थीं. राहुल गांधी के इफ्तार पार्टी के बाद बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता पर फिर से संदेह पैदा होने लगा है. ये संदेह शुरू हुआ है कि राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी से विपक्ष के कद्दावर नेताओं के दूरी बना लेने से.

कांग्रेस की इफ्तार पार्टी से इतना तो पता चल ही गया है कि बतौर नेता विपक्ष राहुल गांधी को खारिज कर रहा है. विशेष बात ये है कि विपक्षी एकजुटता में सबसे बड़ा सवाल एक ही रहा है - नेता कौन होगा? नेता से मतलब प्रधानमंत्री कौन बनेगा?

जो भी विपक्ष के प्रधानमंत्री का चेहरा होगा वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले 2019 के मैदान में उतरेगा. राहुल की इफ्तार पार्टी से विपक्षी नेताओं परहेज में ममता बनर्जी का नाम आने से एक बार फिर लगने लगा है कि मोदी के खिलाफ विपक्ष के दो धड़े तो नहीं खड़े होने जा रहे?

विपक्ष बंटा तो बीजेपी को सीधा फायदा होगा

यूपी में सरकारी बंगलों पर जो आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है उसमें भी सियासत देखी जा रही है. लखनऊ के सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी की हर कोशिश समाजवादी पार्टी और बीएसपी का गठबंधन नहीं बनने देना है. कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी को बंगले के मामले में मायावती के प्रति नरम और अखिलेश यादव के प्रति ज्यादा सख्त देखा जा रहा है. देखा जाय तो बंगले में तोड़ फोड़ को लेकर अखिलेश यादव खुद भी फंसे नजर आ रहे हैं. कांग्रेस के साथ अखिलेश की दूरियां अब भी साफ साफ दिख रही हैं. अखिलेश यादव बीएसपी के साथ गठबंधन को लेकर तत्पर तो हैं लेकिन कांग्रेस को उससे बाहर ही रखना चाहते हैं.

rahul gandhi, mamata banerjee2019 का नेता कौन?

बीजेपी विपक्ष की इस स्थिति का पूरा फायदा उठाने की कोशिश करेगी. कैराना को बीजेपी अपने खिलाफ ताबूत की आखिरी कील बनाना चाहती है. हालांकि, अखिलेश और मायावती की कांग्रेस से इफ्तार से दूरी के पीछे बीजेपी नहीं बल्कि लीड रोल में ममता बनर्जी बतायी जा रही हैं.

अगर ममता बनर्जी के साथ विपक्ष में अलग गुट तैयार हो जाता है तो बीजेपी वैसे भी फायदे में रहेगी. अब भी विपक्ष का एक धड़ा ऐसा है जो गैर कांग्रेस और गैर बीजेपी मोर्चा खड़ा करना चाहता है. सिर्फ तेजस्वी यादव और शरद यादव जैसे कांग्रेस के बाहर के नेता हैं जो राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताते रहते हैं. जाने को तो तेजस्वी भी राहुल गांधी के इफ्तार में नहीं गये थे.

ममता को भी जाना था, लेकिन...

राहुल गांधी के इफ्तार से अखिलेश यादव के पूरी तरह दूर रहने और मायावती के प्रतिनिधि भेजने के पीछे भी अब ममता बनर्जी का रोल सामने आ रहा है. राहुल गांधी के इफ्तार को लेकर जब अखिलेश यादव से पूछा गया तो बड़े बेमन से जवाब दिया - पार्टी से कोई गया होगा. मायावती की ओर से बीएसपी महासचिव सतीशचंद्र मिश्रा ने इफ्तार में शिरकत की थी.

rahul gandhi, mamata banerjeeअभी तो ममता बीस पड़ रही हैं

अपने दिल्ली दौरे के वक्त ममता बनर्जी ने सबसे मुलाकात की, लेकिन राहुल गांधी से नहीं मिली थीं. सोनिया गांधी से तो उनके घर जाकर भी मिल आयी थीं. ऐसा नहीं था कि ममता बनर्जी ने शुरू से ही राहुल की इफ्तार पार्टी में नहीं जाने का फैसला कर लिया था. कर्नाटक की जमघट के बाद ममता बनर्जी के रुख में राहुल गांधी के प्रति थोड़ा बदलाव जरूर आया था.

इकनॉमिक टाइम्स ने ममता के एक करीबी के हवाले से खबर दी है कि पहले उन्होंने इफ्तार में शामिल होने की खुद हामी भरी थी. न जाने का फैसला ममता बनर्जी ने बाद में किया. रिपोर्ट के मुताबिक ममता को जब मालूम हुआ कि विपक्ष के दो बड़े किरदारों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव को न्योता नहीं मिला है तो उनका भी मन बदल गया.

ऐसे तो विपक्ष एकजुट होने से रहा

खबर के मुताबिक अखिलेश यादव और मायावती ने भी इफ्तार में न जाने का फैसला ममता बनर्जी की देखादेखी लिया. विपक्षी खेमे में केजरीवाल की बड़ी पैरोकार ममता ही हैं और जिस जोश खरोश के साथ केसीआर ने ममता से हाल में मुलाकात की थी उसे भी भुलाना फिलहाल उनके लिए मुश्किल है.

ममता बनर्जी ने दिल्ली के उप राज्यपाल के दफ्तर में केजरीवाल के धरने का भी सपोर्ट किया है. वैसे योग दिवस को लेकर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से भी ममता बनर्जी की ठनी हुई है. राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी द्वारा पश्चिम बंगाल के सभी विश्वविद्यालयों में 21 जून को योग दिवस मनाये जाने को लेकर चिट्ठी लिखी गयी है. ममता के ये बात नागवार गुजरी है. ममता ने इस राज्य सरकार की अनदेखी और एकतरफा फैसला बताया है. अब तक हुए घटनाक्रम तो यही बता रहे हैं

1. राहुल के नेतृत्व में विपक्ष का बिलकुल भरोसा नहीं है. विपक्ष राहुल गांधी का नेतृत्व सोनिया गांधी की तरह स्वीकार करने का मन अब तक नहीं बना पाया है.

2. अरविंद केजरीवाल को लेकर राहुल गांधी का रिजर्वेशन खत्म नहीं हुआ है. ममता इस बात को मानने वाली नहीं और फिर केजरीवाल कांग्रेस वाले खेमे का हिस्सा बनने से रहे.

3. विपक्षी दलों के ज्यादातर नेता ममता बनर्जी के साथ खड़े होने को तैयार दिख रहे हैं.

कांग्रेस की किस्मत देखिये कि कर्नाटक में विपक्षी जमावड़े के बाद दोनों उपचुनाव जीत चुकी है. पहले मुकाबले में तो उसे सत्ता में साझीदार जेडीएस से भी चुनौती मिली. बावजूद इसके विपक्ष की पसंद के मामले में ममता बनर्जी एक बार फिर राहुल गांधी पर बीस पड़ती नजर आ रही हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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