Agnipath Violence: सबका अपना-अपना 'जुमा'- कोई जमा, कोई नहीं जमा!
17 जून 2022 के इस 'जुमे' को जोड़ लें तो अग्निपथ स्कीम के विरोध के नाम पर हिंसा का तीसरा दिन है. इन तीन दिनों में नौकरी की आड़ लेकर जिस तरह दंगाइयों ने देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है, इस बात की तस्दीख खुद हो जाती है कि समुदाय, वर्ग, धर्म कोई भी हो हर किसी का अपना एक 'जुमा' है.
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तारीख - 17 जून 2022
दिन - जुमा यानी शुक्रवार.
पैगंबर मोहम्मद अभद्र टिप्पणी मामले को लेकर जैसे हालात थे, महसूस यही हुआ था कि, शुक्रवार आरक्षित कर दिया गया है जुमे की नमाज के बाद शुरू होने वाले बवाल के लिए. इसलिए फिर कुछ होगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कुछ पुलिसिया कार्रवाई का खौफ था. कुछ अपनी खुद एवं परिवार की चिंता मुसलमान सड़कों पर नहीं आए. मगर जो वैक्यूम खाली छूट गया था, उसे उन दंगाइयों ने भरा जिन्होंने फ़ौज की नौकरी के लिए देश की सम्पदा को आग लगाने, हिंसा करने और विध्वंस का मार्ग चुना. राज्य चाहे तेलंगाना रहा हो. या फिर पश्चिम बंगाल. बिहार, हरियाणा, राजस्थान या फिर उत्तर प्रदेश अलग-अलग राज्यों की वो पुलिस जो प्रदर्शनकारी मुसलमानों को उनके प्रदर्शन से रोककर खुश थी, अग्निपथ स्कीम के खिलाफ सड़कों पर आए प्रदर्शनकारियों के सामने जूझती हुई नजर आ रही है.
अग्निपथ स्कीम के विरोध में युवाओं ने जो जुमे को किया वो शर्मसार करने वाला है
ट्रेने जल रही हैं. जाम लगाया और यातायात को बाधित किया जा रहा है, बसों और गाड़ियों को आग के हवाले किया जा रहा है. पत्थर चल रहे हैं, पुलिस कभी लाठियां और गोली चला रही है तो कभी आंसू गैस के गोले दाग कर आवारा भीड़ के खतरों से निपटा जा रहा है.
यदि 17 जून 2022 के इस 'जुमे' को जोड़ लें तो विरोध के नाम पर हिंसा का तीसरा दिन है. इन तीन दिनों में नौकरी की आड़ लेकर जिस तरह दंगाइयों ने देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है, इस बात की तस्दीख खुद हो जाती है कि समुदाय, वर्ग, धर्म कोई भी हो हर किसी का अपना एक 'जुमा' है.
उपरोक्त बातें पढ़कर विचलित होने की कोई जरूरत नहीं है. हमें बस इस बात को समझना होगा कि जिसे जैसी सुविधा रहती है, वो अपने जुमे को वैसे डील करता है. यानी यही जुमा वो तत्व है जो शायद व्यक्ति को उसकी नाजायज मांग के लिए हिंसक और अराजक बनाता है. हम फिर इस बात को कहेंगे कि कमी दिनों की मोहताज नहीं है. लेकिन जैसा देश का माहौल है और बीते कुछ दिनों से जैसे हाल हैं. जुमा दंगे और हिंसा को समर्पित कर दिया गया है.
बात चूंकि अग्निपथ स्कीम के खिलाफ प्रोटेस्ट की चल रही है. साथ ही इन बीते तीन दिनों में हिंसा की हुई है. तो जो दृश्य देशभर से आ रहे हैं वो न केवल विचलित करने वाले हैं. बल्कि ये भी बता दे रहे हैं कि जब कोई चीज हमारी मनमर्जी की न हो. तो हम उस सीमा पर पहुंच जा रहे हैं जो एक लोकतंत्र के रूप में देश को शर्मिंदा कर रही हैं.
चाहे वो मुस्लिम धर्म के रहे हों. या फिर फ़ौज में जाने की इच्छुक सामान्य भीड़. वो युवा जो आज शांति का मार्ग छोड़ अशांति पर उतर आए हैं, अपने रवैये से लॉ एंड आर्डर को प्रभावित कर रहे हैं, देश का भविष्य हैं. जैसी करतूतें हैं इस बात में कोई शक नहीं है कि सिर्फ आज के युवाओं की बदौलत देश का भविष्य अधर में है.
सवाल ये है कि देश को नुकसान पहुंचाने के बाद क्या उनको ये ख्याल आया कि उन्होंने जो किया वो बुरा न होकर घिनौना है? जवाब है नही. और शायद यही बेशर्मी की पराकाष्ठा भी है. इन तमाम बातों के अलावाइस बवाल के मद्देनजर हमें जो तर्क नजर आ रहे हैं उन्हें भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. अग्निपथ स्कीम के नामपर दंगाई प्रदर्शनकारियों ने जो तांडव मचाया है, उसे सत्ता पक्ष और पुलिस विपक्ष की साजिश बता रहा है. दिलचस्प ये कि जब हम इसी विपक्ष को राजनीति के गलियारों में खोजते हैं तो वहां ये हमें गैरहाजिर दिखाई देता है.
जरूर इस मामले में विपक्ष की मिलीभगत है. लेकिन ये कह देना कि ये बवाल विपक्ष ने ही कराया है झूठ बोलने की पराकाष्ठा है. जैसा की हम ऊपर ही इस बात को बता चुके हैं कि आज के माहौल में हर किसी का अपना जुमा है. तो ये नियम विपक्ष पर भी उतनी ही शिद्दत से लागू होता है. यूं भी आपदा को अवसर में बदलने की बात खुद देश के प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में की थी.
चूंकि प्रदर्शनकारियों द्वारा सारी जद्दोजेहद फ़ौज में नौकरी के लिए की जा रही है इसलिए जब हम उनके द्वारा की गयी गतिविधि को देखते हैं तो एक बड़ा सवाल जो हमारे सामने खड़ा होता है वो ये कि जिन्हें देश हित की समझ नहीं है क्या वो देश की सेवा कर पाएंगे? इस सवाल का जवाब क्या होगा इसका फैसला देश की उस जनता को करना है जो अपनी आंखों से युवाओं की इस भीड़ को तांडव मचाते देख रही है और जिसके आगे पुलिस, कानून, नेता, राष्ट्रवाद, देशभक्ति सब बेबस और लाचार हैं.
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