महंत नरेंद्र गिरी की वो अपील, और सिंहस्थ श्रद्धालुओं के लिए खुल गई थीं उज्जैन की 65 मस्जिदें!
2016 में उज्जैन सिंहस्थ मेला आयोजन के दौरान अचानक आई तेज आंधी और बारिश ने आफत खड़ी कर दी थी. महंत नरेंद्र गिरिजी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्थानीय मुस्लिम समुदाय से एक अपील की. उसके बाद जो हुआ वो मिसाल बन गया.
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अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि जी के आकस्मिक निधन से सभी आहत हैं. सनातम हिंदू धर्म की रक्षार्थ किए गए उनके कामों को याद किया जा रहा है. लगभग सभी राजनीतिक दल से जुड़े नेता तथा विशिष्टजन महंत जी को श्रद्धांजलि देते हूए उनके साथ अपनी स्मृतियां बयां रहे हैं. लेकिन, मैं अपनी स्मृतियों पर भरोसा करते हुए कह सकता हूं कि महंत जी सनातम हिंदू धर्म के अलावा सर्वधर्म समभाव के विचार को भी आगे बढ़ाते रहे हैं.
बात 2016 की है. उज्जैन में हर 12 साल के बाद सिंहस्थ का आयोजन होता है. मध्यप्रदेश सरकार के अलावा उज्जैन के नागरिक देश-विदेश से आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के मेजबान बनते हैं. शुभ कार्यों में विघ्न पड़ने की जैसी आशंका रहती है, ऐसा 2016 के सिंहस्थ में भी हुआ. 5 मई 2016 को अचानक तेज आंधी और बारिश ने आफत खड़ी कर दी. हजारों श्रद्धालुओं को शरण देने के लिए सुरक्षित स्थान ढूंढे जाने लगे.
महंत नरेंद्र गिरी की असमय मौत से सारा देश स्तब्ध है
महंत नरेंद्र गिरि जी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मोर्चा संभाला. उज्जैन के शहर काजी साहब और मुस्लिम समाज के जिम्मेदार लोगों से संपर्क किया गया. सिंहस्थ भले हिंदू धर्मालुओं का आयोजन हो, लेकिन उज्जैन के मुस्लिम समुदाय के लिए भी ये खास रहा है. वे हमेशा श्रद्धालुओं की सेवा और शासन-प्रशासन को सहयोग देने में आगे रहे हैं.
सिंहस्थ पर आई आपदा के बाद महंत जी और मुख्यमंत्री का इशारा पाते ही उज्जैन की 65 मस्जिदों और जमातखानों के दरवाजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए. उनके लिए जरूरी सामान के अलावा खाने-पीने का इंतजाम किया गया. चूंकि सारे इंतजामों का मैं भी हिस्सा था, इसलिए उस समय की भागमभाग का हर दृश्य मेरी आंखों के सामने है. धीरे धीरे मौसम समान्य होने पर सिंहस्थ की गतिविधियां सुचारू की गईं. और इस तरह प्रकृति के कोप का मुकाबला महंत जी की मंशा के अनुसार उज्जैन के मुस्लिम समुदाय ने किया.
आज जब महंत जी इस दुनिया में नहीं हैं, तो उनका आचरण हमें धार्मिक भेदभाव को पीछे छोड़कर समभाव पर चलने की प्रेरणा देता है. सिंहस्थ के दौरान प्रकृति के गुस्से से मुकाबला उज्जैन के सभी धर्म के मानने वालों ने मिलकर किया. आज पांच साल बाद मैं सोचता हूं कि ऐसा सामान्य दैनंदिनी में करके ही महंत जी को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते है!
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