चाचा-भतीजे के रिश्तों में उलझी अमरबेल !
यूपी के यादव कुल में सियासी झगड़ा तब और दिलचस्प हो जाता है, जब उसमें एक एक अमरबेल का विश्लेषण किया जाए. अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के तनाव में अमर सिंह की भूमिका समझी जाना चाहिए.
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राजनीति में कई बार जो कहा जाता है, मतलब ठीक उसका उल्टा होता है.
जब मुलायम सिंह यादव सरेआम कहते हैं कि अखिलेश यादव की सरकार में जमीन कब्जा, लूट और भ्रष्टाचार का बोल बाला है, तो उनका मतलब अखिलेश यादव की सरकार की आलोचना नहीं, विपक्ष के हमले की धार को कमजोर करना होता है.
अमर सिंह की इस्तीफा देने की धमकी के बाद जब आजम खान कहते हैं की अमर सिंह बात के बिलकुल पक्के हैं और जो कहते हैं वही करते हैं तो उसका मतलब अमर सिंह की तारीफ नहीं बल्कि उन्हें जलील करना होता है और यह बताना होता है की अमर सिंह सिर्फ गीदड़ भभकी दे रहे हैं.
और जब अपने गांव सैफई में बैठकर शिवपाल यादव यह कहते हैं कि कौन सा मंत्रालय किसे देना है, यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है वो नाराज नहीं हैं, तो असल में उनका मतलब होता है कि वह अखिलेश यादव से इतने नाराज हैं अब उनके साथ बिल्कुल काम नहीं कर सकते.
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सड़क पर आ चुका है परिवार के बीच का झगड़ा |
लेकिन हर सवाल के जवाब में नेता जी का नाम जप कर और बेहद नपे तुले शब्दों में जवाब देने के बावजूद शिवपाल यादव इस सच्चाई को छुपा नहीं पाए कि देश के सबसे ताकतवर यादव परिवार का झगड़ा अब सड़क पर सरेआम हो चुका है.
और इस बार इस झगड़े की जड़ में है शक्स जो दुबारा समाजवादी पार्टी में जडें नहीं जमा पाने के कारण अब शिवपाल नाम के दरख्त पर अमरबेल बन कर लिपटना चाहते हैं. बात जब तक चाचा-भतीजे के बीच थी तब तक रूठना मनाना और मुलायम सिंह की डांट से सब कुछ ठीक हो जाया करता था. लेकिन यदुवंशियों के घर में घुसे अमरबेल ने वो कहर ढाया है कि पार्टी के कार्यकर्ता मायूस और निराश हैं.
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खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ-साफ ये कहा है कि सरकार के कामकाज में बाहर वाले हस्तक्षेप करें, उन्हें यह कतई बर्दाश्त नहीं. जब कौमी एकता दल को लेकर शिवपाल यादव की नहीं चली और वो रूठ गए तब अमर सिंह ने चुपचाप शिवपाल के जख्मों पर मरहम लगाने के बहाने उनसे करीबी बढ़ा ली. अखिलेश यादव ने शिवपाल और अमर सिंह की जुगलबंदी देखी, लेकिन चुप रहे.
अमर सिंह ने शिवपाल के जख्मों पर मरहम लगाने के बहाने उनसे करीबी बढ़ाई |
दीपक सिंघल को अखिलेश यादव कभी मुख्य सचिव बनाना ही नहीं चाहते थे. लेकिन अपने चहेते ऑफिसर के लिए अमर सिंह ने मुलायम से मिन्नत की और अखिलेश के नहीं चाहने के बावजूद मुख्य सचिव के रूप में दीपक सिंघल जैसे चालाक ऑफिसर को मुख्य सचिव बनवाकर अखिलेश यादव को यह बता दिया कि उनकी पहुंच मुख्यमंत्री से ऊपर, मुख्यमंत्री के बाप तक है. एक बार फिर अखिलेश यादव कसमसा कर रह गए क्योंकि दीपक सिंघल ने मुलायम सिंह के दरबार में भी खूब माथा टेका था. अखिलेश यादव अच्छी तरह जानते थे कि दीपक सिंघल शिवपाल के बेहद करीबी हैं लेकिन वह चुप रहे.
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जब जयाप्रदा को उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट का दर्जा दिलाने के लिए तमाम कोशिशों के बावजूद अमर सिंह की दाल नहीं गली तो उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अखिलेश पर हमला बोल दिया. यहां तक कह डाला अखिलेश यादव उनके फोन पर नहीं आते, वो पार्टी में महज गूंगे बहरे बनकर बैठे हैं. इस सार्वजनिक हमले से तिलमिला कर अखिलेश यादव ने आखिरकार जयाप्रदा को कैबिनेट का दर्जा दे दिया ताकि बात खत्म हो. लेकिन बात उन्हें बहुत चुभ गई.
जब शिवपाल यादव ने सरेआम सार्वजनिक मंच से यह कह दिया की सरकार में उनकी बात नहीं सुनी जा रही है और वह इस्तीफा तक देने की सोच चुके हैं तो अखिलेश यादव खासे नाराज हुए. लेकिन एक बार फिर से मुलायम सिंह के कहने पर बात वहीं खत्म करनी पड़ी.
अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव के सभी महत्वपूर्ण मंत्रालय उनसे छीन लिए |
अखिलेश यादव तब हैरान रह गए जब उन्होंने देखा कि उनके मुख्य सचिव दीपक सिंघल दिल्ली में उसी अमर सिंह की पार्टी में शिवपाल यादव के साथ ठहाके लगा रहे हैं जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर अखिलेश यादव की बुराई की थी. अखिलेश यादव का पारा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था. अखिलेश यादव ने मुलायम-शिवपाल के करीबी समझे जाने वाले दो मंत्रियों सहित दीपक सिंघल का विकेट भी एक झटके में गिरा दिया. इस बात पर शिवपाल यादव भड़क गए और मुलायम सिंह से शिकायत की.
डैमेज कंट्रोल करने के लिए और शिवपाल यादव को शांत करने के लिए मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश अध्यक्ष का पद, बेटे अखिलेश से लेकर भाई शिवपाल यादव को सौंप दिया. लेकिन पहले से ही खार खाए बैठे अखिलेश यादव ने इस बार फौरन ही पलटवार कर दिया और शिवपाल यादव के सभी महत्वपूर्ण मंत्रालय उनसे छीन लिए. परिवार के भीतर की लड़ाई अचानक गली चौराहों पर आ गई.
एक बार फिर से मुलायम सिंह यादव सुलह सफाई में लग गए हैं और माना जा रहा है कि वो कोई रास्ता निकाल भी लेंगे. लेकिन चुनाव के मौके पर परिवार के भीतर की इस महाभारत से पार्टी के छोटे बड़े नेता और कार्यकर्ता सहमे हुए हैं. सबकी जुबान पर एक ही सवाल है कि क्या मुलायम सिंह के बाद इस परिवार और पार्टी का भी वही होगा जो भगवान श्रीकृष्ण के बाद यदुवंश का हुआ था?
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