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Updated: 03 फरवरी, 2018 05:21 PM
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कासगंज हिंसा पर न तो सियासत थम रही है, न सोशल मीडिया पर अफसरों के मन की बात. बरेली के डीएम के बाद सहारनपुर में एक महिला अफसर ने भी कासगंज हिंसा पर अपनी फेसबुक पोस्ट में टिप्पणी की है.

सबसे चौंकाने वाला बयान योगी सरकार के एक मंत्री का आया है. योगी के कैबिनेट साथी, स्वामी प्रसाद मौर्या कासगंज हिंसा के लिए स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदार बता रहे हैं.

अयोध्या में राम मंदिर को लेकर यूपी के तीसरे सबसे सीनियर पुलिस अफसर सूर्य कुमार शुक्ला का वीडियो तो और ही कहानी कह रहा है. तो क्या सच में यूपी में अपराधियों के एनकाउंटर और रोमियो स्क्वॉड के आंकड़ों के बीच कासगंज जैसी कड़वाहट आने वाले चुनावों तक बनी रहेगी? बीजेपी के विरोधी तो ऐसे ही आरोप लगा रहे हैं!

अफसरों के 'मन की बात'

बरेली के जिलाधिकारी राघवेंद्र विक्रम सिंह के बाद सहारनपुर की डिप्टी डायरेक्टर (सांख्यिकी) रश्मि वरुण की फेसबुक पोस्ट का टॉपिक भी कासगंज हिंसा ही है. बरेली के डीएम ने मुद्दे को जिस तरीके से उठाया है, रश्मि वरुण के निशाने पर भी वही है - बल्कि ज्यादा सीधी और सपाट. राघवेंद्र विक्रम सिंह ने लिखा था, "अजब रिवाज बन गया है. मुस्लिम मोहल्लों में जबरदस्ती जुलूस ले जाओ और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाओ. क्यों भाई वे पाकिस्तानी हैं क्या? यही यहां बरेली के खेलम में हुआ था. फिर पथराव हुआ, मुकदमे लिखे गए...'

kasganj violenceसाजिश, सच्चाई और सियासत!

हालांकि, बाद में बरेली के डीएम ने अपनी पोस्ट को एडिट कर कंटेंट बदल दिया था - 26 जनवरी की ऐतिहासिकता की बात करने लगे. वजह तो एक ही हो सकती है, लखनऊ से जवाब तलब जो किया गया था.

बरेली के डीएम से एक कदम आगे बढ़ते हुए रश्मि वरुण ने भगवा को लेकर सख्त टिप्पणी की है. डिप्टी डायरेक्टर रश्मि वरुण ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है - "तो ये थी कासगंज की तिरंगा रैली... कोई खास बात नहीं है ये. अंबेडकर जयंती पर सहारनपुर सड़क दुधली में भी ऐसी ही रैली निकाली गई थी जिसमें अंबेडकर गायब थे, या ये कहिये भगवा रंग में विलीन हो गये थे... कासगंज में भी यही हुआ..."

रश्मि वरुण ने लिखा है कि जो लड़का मारा गया उसे किसी दूसरे या तीसरे समुदाय ने नहीं मारा, उसे केसरी, सफेद और हरे रंग की आड़ लेकर भगवा ने खुद मारा..."

...और सियासत!

समाजवादी पार्टी यूपी में सत्ताधारी बीजेपी पर कासगंज हिंसा को लेकर सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप लगा रही है. राज्य सभा में भी पार्टी इसे लेकर हंगामा किया जिसके चलते सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी.

फिर समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता रामगोपाल यादव का विवादित बयान भी सुर्खियों में छाया रहा - 'कासगंज में हिंदू ने ही हिंदू को मारा और मुस्लिम को फंसा दिया गया.'

बीजेपी नेता विनय कटियार और गिरिराज सिंह तो कासगंज हिंसा में भी पाकिस्तान कनेक्शन खोज ही निकाले हैं. समाजवादी पार्टी का तो यहां तक कहना है कि संघ और बीजेपी कासगंज हिंसा जैसे मामले को 2019 तक चर्चाओं में जिंदा रखना चाहते हैं. देखें तो कासगंज की चर्चा भी वैसे ही होने लगी है जैसे हाल तक मुजफ्फर नगर दंगों की हुआ करती थी. अब तक मुजफ्फर नगर को लेकर बीजेपी विरोधी दलों की सरकार पर हमलावर रहती रही - अब विरोधियों को ये मौका मिल गया है.

कासगंज हिंसा में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला बयान आया है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ही मंत्रिमंडलीय सहयोगी स्वामी प्रसाद मौर्य की ओर से. मौर्य ने कासगंज हिंसा के लिए सारी तोहमत स्थानीय प्रशासन पर मढ़ दी है. मौर्य के बयान को समझें तो योगी सरकार ही कठघरे में खड़ी हो जा रही है. मौर्य यूपी चुनावों से ठीक पहले बीएसपी छोड़ कर बीजेपी में आये और चुनाव जीतने के बाद उन्हें कैबिनेट में जगह भी मिल गयी. मौर्य लंबे समय तक बीएसपी नेता मायावती के करीबी रहे हैं और बीजेपी में आने से पहले पार्टी का चुनाव मैनेजमेंट वहीं संभालते रहे.

कासगंज हिंसा को लेकर मौर्य का बयान भी मुजफ्फरनगर दंगों के हालात से जोड़ता नजर आ रहा है. तब समाजवादी सरकार में मंत्री आजम खान सवालों के घेरे में थे. जिस तरीके से मौर्य प्रशासन को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं उससे लगता है कि उनका इशारा ऊपर की ओर भी किसी न किसी शख्स की भूमिका पर है.

वैसे मौर्य के बयान के बाद उनकी घर वापसी यानी बीएसपी में लौटने की भी चर्चा शुरू हो चुकी है. वैसे भी मायावती को फिलहाल मौर्य की महती जरूरत है. गिले-शिकवे दूर होते लगते कितनी देर हैं भला सियासत में!

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