कासगंज हिंसा : एक हफ्ते बाद घर से निकले कुछ बुनियादी सवालों के जवाब
उत्तर प्रदेश का कासगंज हिंसा की आग में जल चुका है. हालांकि अब भी स्थिति तनावपूर्ण है मगर पूर्व की अपेक्षा आज हालात पहले की तरह पटरी पर आते नजर आ रहे हैं.
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26 जनवरी को TV पर गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर होने वाली शानदार परेड देख रहा था. कुछ ही देर में खबर सामने आई कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे कासगंज में तिरंगा यात्रा को लेकर खूनी झड़प हुई जिसमें चंदन गुप्ता नामक एक शख्स की मौत हो गई. हिंसा के अगले दिन ही मैं कासगंज पहुंचा. फिर याद आया कि यह वही कासगंज है जिसका जिक्र अमीर खुसरो और तुलसीदास से जुड़े साहित्य में पाया जाता है. कासगंज की हिंसा के कई किस्से और कई कड़ियों को समझने की कोशिश की. हिंसा का सच एक न एक दिन सामने जरूर आएगा. पुलिस की तफ्तीश जारी है. कासगंज में इस घटना से जुड़े हर छोटे-बड़े इवेंट को कवर करते 1 सप्ताह बीत गया. इस सप्ताह के शुक्रवार को कासगंज की तस्वीर बिल्कुल उसके उलट है जो तस्वीर पिछले सप्ताह के शुक्रवार से लेकर मंगलवार तक बनी रही. कैलेंडर में बदलती तारीखों के साथ हालात धीरे-धीरे बदल रहे हैं.
कासगंज के हालात धीरे धीरे पहले की तरह होते नजर आ रहे हैं
शुक्रवार को कासगंज में जिंदगी फिर उसी रफ्तार से दौड़ती नजर आई जैसे कभी दौड़ा करती थी. भले ही कासगंज हिंसा का सियासी संग्राम संसद तक पहुंच गया हो, इस शहर में रहने वाले लोगों को जमीनी हकीकत से अलग होने का वक्त नहीं मिल पाता है. हिंसा को एक सप्ताह बीत चुका है और कासगंज शहर रोजमर्रा की तरह जिंदगी से जूझते हुए फिर से अपनी उसी रफ्तार में लौट आया है. सहमी सहमी रही इन सडकों पर चहल पहल लौट आई है. दुकानें पहले की तरह खुलने लगी हैं तो हिंसा से फैले तनाव के बाद स्थिति सामान्य होने से स्कूल कॉलेज भी खुल चुके हैं.
कासगंज अब फिर से वही पुराना कासगंज दिखने लगा है जैसा वो 26 जनवरी के पहले दिखता था. कॉलेज जाने वाले लड़के अपील करते हैं कि शहर में दोबारा अशांति ना फैले. नवीन कुमार अपनी मोटरसाइकिल पर घर से निकले हैं और अपने शहर को दोबारा पहले की तरह देखकर खुश हैं. बस इतनी दुआ करते हैं कि इस शहर को अब दुबारा किसी की नजर ना लगे. बीते सप्ताह उपद्रवियों ने काफी उत्पात मचाने की कोशिश की लेकिन फिलहाल प्रशासन यहां सतर्क है. शहर दिखाई भले ना दे लेकिन तनाव और डर हर किसी की आंखों में दिखाई देता है.
कासगंज की उन गलियों में घूमते हुए यह सवाल बार-बार उठ रहा था कि क्या बीतते वक्त के साथ दो समुदायों के रिश्तों के बीच अचानक आई दरार खत्म हो जाएगी?
क्या कासगंज फिर से अमीर खुसरो और तुलसीदास का कासगंज बन पाएगा?
उत्तर प्रदेश के कासगंज में तिरंगा यात्रा को लेकर मौत हुई थी
कासगंज की बाराद्वारी इलाके से ही 26 जनवरी को चंदन गुप्ता तिरंगा यात्रा लेकर वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए अपने दोस्तों के साथ निकला था. हिंसा के बाद इस सड़क पर कुछ दिनों के लिए सन्नाटा पसर गया था. न सड़कों पर चहल पहल थी ना घर और दुकानों में रौनक. गली में दुकान चलाने वाले नवल कुमार कहते हैं कि वह एक वक्त था जो बीत गया, कभी इस शहर में फसाद नहीं हुआ आगे भी नहीं होगा. इसी गली में बताशे की दुकान चलाने वाले रघुनाथ को उम्मीद है कि 1 दिन कासगंज का हिंदू मुसलमान अपने दोस्तों के बीच उन के बताशे की तरह मिठास वापस ले आएगा.
बाराद्वारी से तिरंगा यात्रा बडू नगर गई थी जहां हिंसा का पहला दौर शुरू हुआ था. कल इस गली में डर और सन्नाटे का पहरा था. आज पुलिस का पहरा है और लोगों की चहल कदमी डर और सन्नाटे को चीर चुकी है. मुस्लिम बाहुल्य बडू नगर में लोग घरों से नमाज पढ़ने के लिए भी निकले तो बच्चे स्कूलों और मदरसों के लिए भी निकले. दुकानें यहां भी खुली हैं और मकानों में जिंदगी के हंसने रोने की आवाजें यहां भी आ रही हैं. इस जगह को देखकर ऐसा नहीं लगता कि 1 सप्ताह पहले यहां नारों को लेकर इतना बड़ा फसाद खड़ा हो गया होगा. चहल पहल करते लोगों का कहना है कि हालात अब पहले से ठीक हो गए हैं और शहर में अमन सुकून लौट चुका है.
कुछ लड़कों ने बताया कि पुलिस ने उनके कस्बे में छापेमारी की थी और कई शरारती तत्वों की धरपकड़ भी की है. लगे हाथ मुस्लिम समुदाय के लोगों से मैंने वह सवाल भी पूछ लिया कि आखिर वंदे मातरम के नारों से उन्हें ऐतराज़ क्यों है? मेरे सवालों का जवाब देने सामने आए सरफराज का दो टूक जवाब था - "हम अल्लाह के सिवा किसी और की पूजा नहीं कर सकते. वंदे मातरम का मतलब धरती के आगे झुकना है इसलिए हम धरती के आगे नहीं झुक सकते. लेकिन हम हिंदुस्तान जिंदाबाद कहते हैं और जय हिंद भी कहते हैं. सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा. और यह बात हम पाकिस्तान की छाती पर चढ़कर बोलेंगे. हजार दफा बोलेंगे पाकिस्तान मुर्दाबाद."
हालात बेकाबू होने से कासगंज का पूरा माहौल बुरी तरह प्रभावित हुआ था
आरोप यह भी है कि इस गली में जब तिरंगा यात्रा आई तो पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगे. बेखौफ होकर मैंने इन आरोपों पर सीधा सीधा सवाल दाग दिया. आसिफ ने सवालों के जवाब में कहा कि, "यह बिल्कुल गलत है यहां कोई पाकिस्तान के नारे नहीं लगे थे. अगर हम पर यह आरोप है तो हमें फौज में नौकरी दी जाए. हमें वहां रोटी भी मिलेगी और फिर हम दिखाते हैं कि हिंदुस्तान हमारा है या पाकिस्तान. बडूनगर से हर इंसान फौज में भर्ती होने के लिए जाना चाहता है और बताना चाहता है कि उसे हिंदुस्तान से प्यार है या पाकिस्तान से प्यार. यहां रहने वाले गरीब मजदूर पल्लेदार क्या दंगे फसाद करेंगे?"
मेरा अगला सवाल था कि आखिर उन्हें तिरंगा यात्रा से परहेज क्यों? जवाब देने आए अकरम, और कहा कि, "हम पहल करना चाहते हैं. अगर हिंदू भाई 15 अगस्त को तिरंगा यात्रा निकालना चाहते हैं तो हम उनके साथ हैं. हम चाहते हैं कि वह मुसलमानों को भी अपने साथ लें. जब वो पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाएं तो हमें भी अपने साथ लें. हम उनसे पहले और उनसे आगे जाकर पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाएंगे. पाकिस्तान मुर्दाबाद था है और हमेशा रहेगा."
कहा जा सकता है कि इस हिंसा के बाद कासगंज विकास की दौड़ में पिछड़ गया है
अल्लाह रखा जैसे कई बुजुर्ग मुस्लिम समुदाय के लोग भी हमें बडूनगर में मिले. 72 साल के अल्लाहरखा का कहना है कि, "पाकिस्तान से हमारा कोई वास्ता नहीं, हिंदुस्तान में पैदा हुए यही हमारी प्रगति हुई, आज़ादी में हमने अंग्रेजो को भगाया, सारी मुसीबते भी उठाई. लड़ाई में हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सारे मरे. हमारा देश है ये. जब विभाजन हुआ तो बहुत सारे मुसलमान वापस लौट आए क्योंकि यह देखा कि हमारे देश से बढ़िया तो कोई देश ही नहीं है. वहां के लोग काट रहे हैं पीट रहे हैं, हमारे देश में बहुत सुकून है.
आसिफ कहता है कि अगर हिंदू और मुसलमान दोनों चाहे तो आपस की कड़वाहट खत्म हो जाएगी. मसला यह नहीं है कि हमें वंदे मातरम से ऐतराज है मसला यह है कि किसी के घर आकर जबरदस्ती कहलवाना. आप हमारे साथ रहिए, मोहब्बत से रहिए और देखिए हम प्यार से कहेंगे वंदे मातरम.
अमन और चैन का यही संदेश कासगंज के सूत मंडी के लोग भी देते हैं जहां झड़प हिंसक और खूनी हो गई थी. गोली चली और चंदन गुप्ता की मौत हो गई. घटना की तस्वीरें कई लोगों के जहन में जिंदा है. लेकिन उम्मीदों के साथ अरमान हैं कि उनका शहर फिर से उसी गंगा जमुनी तहजीब वाला हो जाए जिसके लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह छोटा सा कस्बा कासगंज जाना जाता रहा है.
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