अमित शाह की नजर में विपक्ष का व्यवहार पाकिस्तान जैसा, लेकिन क्यों?
भारत-पाक तनाव के बीच सेना के पराक्रम पर पॉलिटिक्स को लेकर भी बहस चल रही है. विपक्ष इस मामले में सत्ताधारी बीजेपी को कठघरे में खड़ा कर रहा है, तो अमित शाह ऐसे सवाल करने वालों की तुलना पाकिस्तान से कर रहे हैं.
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बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भारत और पाकिस्तान के बीच बनी तनावपूर्ण स्थिति के दौरान विपक्ष के व्यवहार पर कड़ी आपत्ति जतायी है. अमित शाह का आरोप है कि विपक्ष की भाषा और व्यवहार बिलकुल पाकिस्तान जैसा नजर आ रहा है.
अमित शाह ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस बयान पर भी आपत्ति जतायी है जिसमें वो दोनों मुल्कों के नेताओं से संयम बरतने की अपील किये हैं. इमरान खान को लेकर अमित शाह का कहना है कि जिसने पुलवामा हमले की निंदा तक नहीं कि उससे भला क्या अपेक्षा की जा सकती है?
सवाल विपक्ष के भी हैं और इस मामले में इस बार ये बीड़ा उठाया है ममता बनर्जी ने. उरी के बाद हुए सर्जिकल स्ट्राइक के बाद ऐसा ही रूख अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी का रहा. दोनों नेताओं का स्टैंड इस बार बदला हुआ है.
विपक्ष को ऐतराज इस बात से है कि देश के गुस्से और सेना के पराक्रम का इस्तेमाल सत्ताधारी बीजेपी चुनावी राजनीति के लिए कर रही है. खास बात ये है कि पाकिस्तानी नेतृत्व विपक्ष के आरोपों का हर मौके पर जोर देकर जिक्र भी कर रहा है. ये बात बहुत खतरनाक है.
अमित शाह का सवाल - विपक्ष का व्यवहार पाकिस्तान जैसा क्यों?
26 फरवरी को भारत ने बालाकोट के आतंकवादी कैंप पर हवाई हमला किया था. उसके अगले दिन पाकिस्तान ने भारत के सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया और नाकाम रहा. 27 फरवरी को ही विपक्ष के 21 राजनीतिक दलों की एक मीटिंग संसद लाइब्रेरी में हुई और उसके बाद संयुक्त बयान जारी किया गया. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संयुक्त बयान मीडिया के सामने पढ़ा, 'राष्ट्रीय सुरक्षा संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर होनी चाहिए.' आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से सर्वदलीय बैठक को स्थापित परंपराओं के तहत नहीं बुलाया गया.
विपक्ष के इस बयान को पाकिस्तान ने फौरन लपक लिया और कहने लगा कि सुरक्षा के मुद्दे पर भारत बंटा हुआ है. पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि विपक्षी दलों ने सत्ताधारी पार्टी के मंसूबों को बेनकाब कर दिया है.
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में अमित शाह ने कहा कि उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा के बाद एयर स्ट्राइक से ये साबित होता है कि ये 2004 से 2014 वाली सरकार नहीं बल्कि 2014 से 2019 वाली सरकार है. अमित शाह बोले, 'हम सख्त हैं आतंक के खिलाफ हैं उसे दृढ़ संकल्प के साथ धरती पर उतार रहे हैं.'
पहले तो ममता बनर्जी पुलवामा हमले के लिए ही मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही थीं कि खुफिया रिपोर्ट पर वक्त रहते एक्शन क्यों नहीं लिया गया. अब ममता बनर्जी बालाकोट की कार्रवाई की बातें सार्वजनिक करने की मांग कर रही हैं.
अमित शाह का कहना है कि भारत के एक्शन के सबूत सेना ने दिए हैं, जो तथ्य सेना ने रखे हैं, उन पर शंका करने की कोई वजह नहीं है - और जो शंका कर रहे हैं, वो पाकिस्तान को खुश करने का काम कर रहे हैं.
देश की सुरक्षा के मामले में राजनीति क्यों?
अमित शाह ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान पर भी कड़ी आपत्ति जतायी है. अमित शाह विपक्ष से पूछते हैं 'उन्हें मनमोहन का वो बयान नहीं दिखाई देता जिसमें वो कहते हैं कि दोनों देशों को संयम बरतना चाहिए. दोनों देशों को एक प्लेटफार्म पर कैसे देख सकते हैं?'
विपक्ष खास कर यूपीए की अगुवाई करने वाली कांग्रेस से भी अमित शाह का सवाल है - 'देश की जनता पूछना चाहती है कि 26/11 हमले का जवाब क्यों नही दिया गया?'
विपक्ष का सवाल - सेना के पराक्रम का राजनीतिकरण क्यों?
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में ही कांग्रेस के पश्चिम यूपी प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि पुलवामा हमले के बाद बीजेपी नेताओं और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा से बयान से साफ है कि बीजेपी जवानों के शौर्य का राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है.
जब अमित शाह से येदियुरप्पा के बयान पर सवाल पूछा गया तो पहले तो उन्होंने उसे 'एनालिसिस' के तौर पर समझाने की कोशिश की, लेकिन फिर माना कि बीजेपी नेता ने जो कहा वो गलत था. फिर शाह ने येदियुरप्पा की सफाई की ओर भी ध्यान दिलाया. वैसे पाकिस्तान और इमरान खान को लेकर नवजोत सिंह सिद्धू के बयानों से भी कांग्रेस दूरी बनाने लगी है. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी सिद्धू के बयानों को उनके निजी विचार करार दिया है.
विपक्षी नेताओं के संयुक्त बयान में भी इसी बात पर ऐतराज जताया गया था. बयान में कहा गया, 'हम सशस्त्र बलों के बलिदान का सत्ताधारी पार्टी द्वारा राजनीतिकरण से चिंतित हैं.' इसके साथ ही सरकार से अपील की गयी थी कि वो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा के लिए अपने हर कदम पर देश को विश्वास में ले.
विपक्ष को ज्यादा ऐतराज बीजेपी के 'मेरा बूथ सबसे मजबूत' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिस्सेदारी को लेकर है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो प्रधानमंत्री मोदी से ऐसा न करने की भी अपील की थी. बाद में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में सवाल उठाया - 'अगर देश नही बचेगा तो बूथ कहा से बचेगा? अगर जवान नही बचेगा तो हिंदुस्तान कहा से बचेगा?'
अगर देश नही बचेगा तो बूथ कहा से बचेगा ? अगर जवान नही बचेगा तो हिंदुस्तान कहा से बचेगा ? : @ArvindKejriwal #MeraJawanSabseMazboot pic.twitter.com/AUHkOGBdFJ
— AAP (@AamAadmiParty) March 1, 2019
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में हिस्सा ले रहे स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि 1977 का चुनाव लोकतंत्र बचाने के लिए था तो 2019 का चुनाव देश बचाने के लिए होगा. योगेंद्र यादव की नजर में चुनावी जीत के लिए युद्ध का इस्तेमाल एक खतरनाक ट्रेंड है.
योगेंद्र यादव चुनाव विश्लेषक रह चुके हैं लेकिन अब उनकी राजनीतिक पहचान अलग बन चुकी है. कॉन्क्लेव के एक सत्र में चुनाव विश्लेषकों ने भी अपना नजरिया पेश किया. सी-वोटर से यशवंत देशमुख की राय में एनडीए-बीजेपी को आज की तारीख में सीधी बढ़त हासिल है. देशमुख ने कहा, 'मेरे हिसाब से ये साफ नतीजा होगा यदि बीजेपी-एनडीए जीते तो 300 सीटें जीतेंगे, डूबे तो 150 सीटें आएंगी - लेकिन बीच की कोई स्थिति नहीं होगी.'
एक्सिस माय इंडिया के प्रदीप गुप्ता भी एनडीए सीटें 300 तक जाने का अनुमान लगाते हैं. सीएसडीएस के संदीप शास्त्री को भी एनडीए बहुमत के नजदीक होने का अंदाजा है.
सभी पक्षों से सवाल - ऐसी नाजुक घड़ी में राजनीति ही क्यों?
लोकतंत्र में सब बराबर हैं लेकिन एक बात तो तय है ही कि विपक्ष में रहने के कुछ नुकसान और सत्ता में रहने के कुछ फायदे होते ही हैं. विपक्ष सिर्फ विरोध जता सकता है या फिर सवाल उठा सकता है. दूसरी तरफ जो सत्ता में उसे संसाधनों का फायदा उठाने की सुविधा अपनेआप मिली होती है. अगर विपक्ष माहौल को देखते हुए अपने कार्यक्रम रद्द कर रहा है तो ये उसके सामने मजबूरी है. प्रधानमंत्री मोदी के साथ प्लस प्वाइंट है कि राजनीतिक कार्यक्रमों में भी कहने के लिए उनके पास वही बातें होती हैं. अब ये तो कोई कह नहीं सकता कि प्रधानमंत्री मोदी सरकारी कामकाज छोड़ कर राजनीतिक कार्यक्रमों में व्यस्त हैं. ऐसा भी नहीं कि ऐसे सवाल उठाने की नौबत नहीं आती, लेकिन ये मौका उसके लिए बिलकुल भी माकूल नहीं है. सबसे बड़ा नुकसान ये हो रहा है कि दुश्मन मुल्क ऐसी बातों का जिक्र अंतर्राष्ट्रीय समुदाय तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा है. ऐसा होने पर भारत को जो कूटनीतिक कामयाबी मिल रही है उसकी धार कुंद पड़ सकती है - और ये बात देश के खिलाफ जाएगी.
ममता बनर्जी ने बीजेपी सरकार पर जवानों की शहादत पर राजनीति करने का आरोप लगाया है. ममता की मांग है कि सरकार विपक्ष को बताये कि बालाकोट में आतंकियों पर कितने बम गिराये गये और वहां मारे जाने वालों की तादाद कितनी है?
तीनों सेनाओं की साझा प्रेस कांफ्रेंस में ये सवाल मीडिया की ओर से भी उठाया गया था. सैन्य अफसरों का कहना रहा कि कितना हुआ ये बताना 'प्री-मैच्योर' होगा लेकिन मिशन सफल रहा और उसके सबूत भी हैं.
2016 के उरी अटैक के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर राहुल गांधी और आप नेता अरविंद केजरीवाल सवाल खड़े कर रहे थे, इस बार ये बीड़ा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उठा रखा है. सारी बातें अपनी जगह हैं लेकिन सवाल तो ममता बनर्जी के लिए भी बनता है - 'क्या वो देश की प्रधानमंत्री होतीं तो ऐसी चीजें सार्वजनिक कर देतीं? अगर नहीं, तो इतनी नाजुक घड़ी में ऐसी राजनीति क्यों?
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