मोदी से आगे बढ़कर इमरान खान से मनमोहन को उम्मीद क्यों!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नाजुक घड़ी में देश को यूं ही एकजुट होकर खड़े रहने की अपील की है. मोदी का इशारा खासतौर पर विपक्ष की ओर है जो मोदी की गतिविधियों में राजनीति देख रहा है.
-
Total Shares
भारत और पाकिस्तान की सरहद पर तनावपूर्ण माहौल के बीच युद्ध को लेकर एक गंभीर बहस भी चल रही है. ये बहस आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई और युद्धोन्माद के चलते एक आसन्न जंग की दहशत भरे दौर से होकर गुजर रही है. सलाहियत ये है कि हर सूरत में युद्ध को टाला जाये. बहुत अच्छी बात है, मगर, ताली तो दोनों हाथों से ही बजती है. है कि नहीं?
बालाकोट हवाई हमले के विरोध में भारतीय सैन्य ठिकानों पर एक नाकाम हमले की कोशिश के बाद पाकिस्तान की तरफ से बातचीत का प्रस्ताव आया है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान युद्ध के बाद की विभीषिका का हवाला देते हुए शांति की दुहाई दे रहे हैं - इमरान की इस अपील के पीछे बड़ा मकसद है जिसे समझना भारत के लिए जरूरी है.
इस बीच, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उम्मीद जतायी है कि भारतीय और पाकिस्तानी नेतृत्व सूझबूझ से काम लेगा - और दोनों मुल्क आर्थिक विकास की ओर लौटेंगे.
मनमोहन सिंह की ये अपील भी दुनिया के उन्हीं नेताओं जैसी है जो दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील कर रहे हैं - लेकिन क्या ये वास्तव में मुमकिन है? खासकर सरहद पार फौज के इशारे पर चल रहे इमरान खान से?
विपक्ष सेना और सरकार के साथ, मगर मोदी के?
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये बीजेपी के बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, 'आज भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है. भारत का युवा उत्साह और ऊर्जा से भरा है. किसान से जवान तक हर किसी को विश्वास मिला है कि नामुमकिन अब मुमकिन है.' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत एक है और ऐसे ही आगे बढ़ता रहेगा और इस दौरान हमें ऐसा कुछ भी नहीं करना है जिससे सेना के मनोबल पर आंच आये या दुश्मनों को उंगली उठाने का मौका मिल सके.
प्रधानमंत्री मोदी की इस बात से उनके विरोधी भी इस वक्त इत्तेफाक रखते दिखते हैं, लेकिन विपक्ष को एक ही चीज से आपत्ति है. वो है प्रधानमंत्री का अपनी बात कहने के लिए राजनीतक मंचों का इस्तेमाल करना और ऐसे मंचों से भी राजनीतिक की बात करना जिनसे बचा जा सकता है. विपक्ष को इस बात से ऐतराज है कि पुलवामा हमले के बाद उन्होंने तो अपने कार्यक्रम रद्द कर दिये, लेकिन मोदी हैं कि मानते नहीं. हमले के बाद मोदी ने वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखायी और यूपी-बिहार में रैलियां भी की. सबसे ज्यादा नागवार विपक्ष को तब गुजरा जब मोदी ने वार मेमोरियल के उद्घाटन के मौके को भी राजनीतिक विरोधियों को टारगेट किया.
उरी के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक पर राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल ने मोदी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की, पर इस बार ऐसा नहीं किया. हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने मोदी को बूथ कार्यकर्ताओं से वीडियो कांफ्रेंसिंग का कार्यक्रम टालने की सलाह दी थी.
I wud urge the PM to postpone this. At this moment, we as a nation, need to spend all our energies and time to get the IAF pilot back safely andto sternly deal wid Pak. https://t.co/HKgBeqSe8a
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 28, 2019
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी मोदी को विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी तक राजनीतिक कार्यक्रम स्थगित रखने की सलाह दी थी.
For the record it’s not just unsolicited advice to the PM, I had requested the opposition to postpone the meeting in light of the developments, especially after the news of our pilot being in Pakistani custody but they felt otherwise. I chose not to attend as a result. pic.twitter.com/kxRhSfYdRG
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) February 27, 2019
प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसी बातों को दरकिनार करते हुए हर हाल में सबको एकजुट रहने को कहा है. मोदी का कहना है कि हमारी एकजुटता दुनिया देख रही है - और दुश्मन को भी इस बात का एहसास होना चाहिये.
पाकिस्तान से सूझबूझ की अपेक्षा और उम्मीद...
विपक्ष की मुश्किल ये है कि जल्द ही उसे आम चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी से मुकाबला करना है. पुलवामा हमले के बाद देश में लोगों के गुस्से को देखते हुए विपक्ष मोदी के खिलाफ जो कुछ भी बोलता है वो दबी जबान या नपे तुले शब्दों में कह पाता है. विपक्षी दलों की मीटिंग में भी नेताओं की शिकायत यही रही कि प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष को भरोसे में लेकर नहीं चल रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि विपक्ष इस नाजुक घड़ी में सेना और सरकार के साथ तो डट कर खड़ा है लेकिन मोदी के साथ पूरी तरह नहीं है.
पाकिस्तानी नेतृत्व से संयम की अपेक्षा का आधार क्या है?
वैसे तो भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप का भी बयान आ गया है और उनका मानना है कि जल्द ही तनाव खत्म होंगे और अच्छी खबर मिलेगी. बालाकोट हमले से पहले भी ट्रंप का कहना था कि भारत कुछ बड़ा करने वाला है. फिलहाल तो खबरें सूत्रों के हवाले से ही चल रही हैं, जाहिर है ट्रंप के भी अपने सूत्र होंगे ही.
अमेरिका के अलावा दुनिया के कई नेताओं के बयानों में भारत और पाकिस्तान से संयम बरतने और समझधारी से काम लेने की अपील की गयी है. कुछ ऐसी ही अपेक्षा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी जतायी है. दुनिया के नेताओं की तो कूटनीतिक मजबूरी है, लेकिन दस साल तक प्रधानमंत्री रहने के बाद मनमोहन सिंह की पाकिस्तान से समझदारी की अपेक्षा थोड़ी अजीब लग रही है.
खुद को सम्मानित किये जाने को लेकर आयोजित एक कार्यक्रम में मनमोहन सिंह ने कहा, 'ये मेरे लिए विशेष दिन है. ये ऐसा दिन है जब हमारा देश आपसी आत्म विनाश की सनक के कारण एक अन्य संकट में उलझ गया है. ये दौड़ भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों में चल रही है.' मनमोहन सिंह ने कहा, 'मैं उम्मीद करता हूं कि दोनों मुल्कों का नेतृत्व सूझबूझ से काम लेगा और हम आर्थिक विकास में फिर से जुटेंगे जो भारत और पाकिस्तान दोनों की मूलभूत जरूरत है.'
ये बातें सुनने में तो बहुत अच्छी लगती हैं, लेकिन देश के प्रधानमंत्री रह चुके मनमोहन सिंह को पाकिस्तान से ऐसी अपेक्षा के आधार क्या हो सकते हैं? मान लेते हैं कि मनमोहन सिंह की ये सलाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए है, फिर तो इसमें संजीदगी समझी जा सकती है. मान कर चला जा सकता है कि मनमोहन सिंह समर्थन में खड़े हैं और मोदी को समझदारी से काम लेने की सलाह दे रहे हैं. मगर, ऐन वक्त इमरान खान से वैसी ही समझदारी की अपेक्षा रखना तो हैरान करने वाला है.
जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे तब की तो बात कुछ अलग भी रही. पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व पर फौज का साया और दबाव हमेशा बना रहता रहा, नयी सरकार तो फौज द्वारा गढ़ी गयी परिस्थितियों में ही पैदा हुई है. ऐसी सरकार से भला किस तरह के सूझबूझ की अपेक्षा रखी जा सकती है?
मोदी सरकार आतंकवादियों को खत्म करने की कोशिश कर रही है और इमरान खान भारत के सैन्य संस्थानों पर हमले को अपनी आत्मरक्षा की नुमाइश बता रहे हैं. भारत के विंग कमांडर अभिनंदन को जख्मी हालत में आंखों पर पट्टी बांध कर वीडियो दिखाया जा रहा है - और इमरान खान जता रहे हैं कि वो भारत से शांति वार्ता चाहते हैं युद्ध नहीं. इमरान खान दुनिया के तमाम जंगों की दास्तां सुनाते हैं और 1965 और 1971 से नावाकिफ लगते हैं. पाकिस्तान के विदेश मंत्री दुनिया के नेताओं को फोन कर मदद मांगते हैं लेकिन निराश होना पड़ता है.
पाकिस्तान की बातचीत की पेशकश दुनिया की नजरों में लाज बचाने की कोशिश है - और सिर्फ यही नहीं पाकिस्तान दुनिया को ये समझाने की कोशिश कर रहा है कि भारत में आम चुनाव है इसलिए तनाव पैदा कर मुल्क को युद्ध में झोंकने की कोशिश चल रही है.
पाकिस्तान के खिलाफ अब तक हासिल कूटनीतिक कामयाबी के बाद भारत को पाकिस्तान के किसी भी नये शिगूफे और चाल से संभल कर रहना होगा. ये भी ऐसा मामला है जिसे लेकर मोदी सरकार को अलर्ट रहना होगा.
इमरान खान ने अब तक ऐसी कोई बात नहीं की है जिसमें कुछ नयापन हो. चुनाव जीतने के बाद अपने पहले संबोधन में भी इमरान ने बातचीत की पेशकश की थी - लेकिन क्या हुआ? अब भी इमरान खान पाक फौज की इबारत बांचते हैं - ये बात अलग है कि टेलीप्रॉम्प्टर उनके सामने नहीं बल्कि दिमाग में फिट हो रखा है.
इन्हें भी पढ़ें :
पाकिस्तान, युद्ध, परमाणु बम और हम...
आपकी राय