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Updated: 28 नवम्बर, 2019 10:36 PM
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अमित शाह (Amit Shah) हफ्ते भर के अंतराल पर फिर झारखंड (Jharkhand) के दौरे पर पहुंचे. ट्विटर पर तो अमित शाह ने लिखा है, 'चतरा (झारखंड) में उमड़े जनसैलाब को संबोधित किया,' लेकिन अपने भाषण में भीड़ को लेकर जो बात कही वो बिलकुल अलग है.

अक्सर देखने को मिलता है कि नेता रैली में पहुंचने से पहले भीड़ के बारे में पूछते हैं और उसके हिसाब से फैसला करते हैं. कई बार तो कम भीड़ के चलते रैलियां रद्द भी हो जाया करती हैं. अमित शाह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र की तरह कई मामलों में अलग तरीके से सोचते हैं.

झारखंड की रैली (Amit Shah rally in Chatra) में बीजेपी अध्यक्ष शाह ने लोगों से स्थाई सरकार (Vote for Stable Government) देने की भी अपील की है. आम चुनाव में तो ऐसी अपील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से भी अक्सर होती रही, लेकिन विधानसभा चुनावों में ऐसा कम ही देखने को मिला है.

क्या ऐसा महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में बीजेपी के हिस्से में पड़े वोटों के चलते हो रहा है?

भीड़ को वोट क्यों मान रहे हैं अमित शाह?

महाराष्ट्र की राजनीति फिलहाल कर्नाटक और झारखंड के बीच की कड़ी बनी हुई है. एक तरफ महाराष्ट्र की राजनीति पर कर्नाटक का साया नजर आ रहा है, तो दूसरी तरफ झारखंड में बीजेपी नेतृत्व फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रहा है. बल्कि, झारखंड में तो बीजेपी हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों के अनुभव से हर आशंकित अनहोनी को टालने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है.

एक बात तो माननी ही पड़ेगी, भीड़ कम होने के बावजूद अमित शाह ने रैली रद्द नहीं की - और रैली में मौजूद लोगों को नया टास्क दे डाला. झारखंड में लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटने की कोशिश में लगी बीजेपी नेतृत्व को क्या महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के नतीजों ने नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है?

अमित शाह ने रैली में मौजूद लोगों को सलाह दी कि हर व्यक्ति कम से कम 25 लोगों को फोन कर बीजेपी को वोट देने की गुजारिश करे ताकि बीजेपी के मुख्यमंत्री रघुवर दास  सत्ता में वापसी सुनिश्चित हो सके.

अमित शाह ने कहा, 'ये 10-15 हजार लोगों से हम जीत लेंगे क्या, मुझे भी गणित आता है. मैं भी बनिया हूं. बेवकूफ मत बनाओ - आपको एक रास्ता बताता हूं. आप करेंगे क्या? सब लोग हाथ में मोबाइल उठाकर अपने 25-25 परिजनों को फोन करो और कमल के निशान पर वोट डालने की अपील करो.'

अब तक यही देखा गया है कि नेताओं की सभाओं में जुटने वाली भारी भीड़ वोट में तब्दील नहीं होती. मायावती की चुनावी रैलियां तो सबसे सटीक मिसाल हैं, लेकिन अमित शाह को ऐसा क्यों लगता है?

amit shah jharkhand poll campaignअमित शाह की अपील - झारखंड के लोग स्थिर सरकार के लिए वोट दें.

दरअसल, महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों ही चुनावों में बीजेपी को मिले कम वोट ही पार्टी की हालिया मुसीबतों का सबब बने हैं. हरियाणा में भी कम सीटें जीतने के कारण बीजेपी को दुष्यंत चौटाला की पार्टी JJP का सपोर्ट लेना पड़ा. वो भी काफी तत्पर होने पर, वरना पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा भी जाट एकता के नाम पर कांग्रेस की सरकार बनाने की कोशिश में थे. वो तो दुष्यंत चौटाला की कमजोर कड़ी बीजेपी नेतृत्व ने खोज ली और बात बन गयी. महाराष्ट्र में भी अगर बीजेपी को कुछ ज्यादा सीटें मिली होतीं तो शिवसेना के लिए गठबंधन तोड़ना आसान नहीं होता - यही वजह है कि बीजेपी नेतृत्व की कोशिश किसी भी सूरत में सूबे की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की हो रही हैं.

साथ ही, अमित शाह ने लोगों से झारखंड में स्थिर सरकार देने की भी अपील की. हालांकि, विधानसभा चुनावों में ऐसी बातें कम ही सुनने को मिलती हैं.

अस्थिर सरकार का जिक्र क्यों?

आखिर झारखंड की चुनावी रैली में अमित शाह ने लोगों को अस्थिर सरकार को लेकर आगाह क्यों किया?

तात्कालिक तौर पर तो यही लग रहा है कि बीजेपी नेतृत्व को महाराष्ट्र जैसी आशंका टालने की हर संभव कोशिश कर रहा है. वैसे महाराष्ट्र के लोगों ने तो स्थिर सरकार और मजबूत विपक्ष के पक्ष में जनादेश दिया था. अब निजी स्वार्थ के लिए राजनीतिक दल जनादेश को नामंजूर कर दें तो क्या कहा जाये. महाराष्ट्र के लोगों ने बीजेपी और शिवसेना के चुनावी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत और एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन को इतनी सीटें दे डाली कि वे डंके की चोट पर जनहित के मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा कर सवाल कर सके.

जनादेश की भी कुछ सीमाएं होती हैं. अब अगर राजनीतिक दल जनादेशी की सीमाएं पार कर नया खेल खेलने लगें तो जनता भला क्या कर सकती है. कोई गठबंधन तोड़ कर नये साथियों के साथ सरकार बना ले रहा है - तो कोई रातोंरात ऊपर से नीचे तक तैयारी कर लोगों की आंख खुलने से पहले ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ले रहा है - और जब सुप्रीम कोर्ट फ्लोर टेस्ट की समय सीमा तय कर देता है तो वो भाग खड़ा होता है.

झारखंड के मामले में एक केस ऐसा जरूर रहा है जब जोड़-तोड़ से बनी सरकार का मुखिया कोई निर्दलीय विधायक रह जाता है - मधु कोड़ा इस बात के उदाहरण हैं. मधु कोड़ा का शासन भी भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गया है.

चतरा की रैली में अमित शाह ने साफ साफ कहा - 'जब भी आप वोट देने जाएं तो अस्थिर सरकार मत बनाइएगा. कभी कोई निर्दलीय मुख्‍यमंत्री बना... कभी लंगड़ी सरकार बनी... सबने मिलकर झारखंड को लूट लिया.'

साफ है मधु कोड़ा ही अमित शाह के निशाने पर थे. बीजेपी की फिक्र भले ही पार्टी के फायदे में लगे, लेकिन लोगों के हित में भी वाजिब है. भला देश या किसी भी राज्य में कोई अस्थिर सरकार क्यों बननी चाहिये?

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