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Updated: 17 नवम्बर, 2019 06:25 PM
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हर फैसला सही हो जरूरी नहीं. गलत फैसला लेना खतरनाक नहीं होता. सबसे खतरनाक होता है बार बार गलत फैसले लेना. बीजेपी महाराष्ट्र की गलती शिद्दत से महसूस करने लगी है. अब महाराष्ट्र में तत्काल भूल सुधार का कोई मौका तो है नहीं, इसलिए बीजेपी झारखंड में इसे अंजाम देने जा रही है.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का एक तबका मान कर चल रहा था कि बगैर शिवसेना के साथ गये भी चुनाव जीता जा सकता है. आखिर 2014 में तो ऐसा ही हुआ था. फिर भी अमित शाह ने शिवसेना के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का फैसला किया. एक तो ये जीरो जोखिम प्रयोग था, दूसरे राष्ट्रीय NDA के सहयोगी दलों को साथ रखने की भलमनसाहत भी दिखाने की बात पूरी हो रही थी. प्रयोग सफल भी रहा. गठबंधन को स्पष्ट बहुमत भी मिला - अब आगे चल कर पार्टनर का मन बदल गया वो बात अलग है. ये तो रिश्ते की बात हुई. वैसे भी ऐसी बातों से भला कौन सा रिश्ता अछूता रहा है या रहता है.

चुनाव बाद शिवसेना का बदला रंग देखने के बाद बीजेपी नेतृत्व ने झारखंड में पहले से ही ऐसा ताना-बाना बुना कि चीजें मनमाफिक हों. नतीजा ये हुआ कि झारखंड सरकार में पांच साल से गठबंधन पार्टनर सुदेश महतो की पार्टी आजसू यानी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) अब अलग होकर चुनाव लड़ रही है. देखा जाये तो झारखंड में NDA एक तरीके से टूट गया है - और बीजेपी नेतृत्व यही तो चाहता था.

ये सब हुआ कैसे

झारखंड में बीजेपी और AJSU के गठबंधन टूटने की खबर पक्की तभी हो गयी जब बीजेपी ने उन दो सीटों पर भी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी जिन पर गठबंधन साथी को 2014 में जीत हासिल हुई थी. इसके साथ ही साफ हो गया कि बीजेपी झारखंड की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी.

पिछले चुनाव में जुगसलाई और तमाड़ सीटें आजसू के हिस्से में रहीं और उसे जीत भी मिली थी. इस बार बीजेपी ने आजसू उम्मीदवारों के खिलाफ मोतीराम बाउड़ी और रीता देवी मुंडा को टिकट देकर इरादे चुनाव से पहले ही साफ कर दिये.

बीजेपी और आजसू (All Jharkhand Students Union) में पहले तो लोहरदगा और चंदनकियारी को लेकर टकराव शुरू हुआ. फिर आजसू ने बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा के खिलाफ भी उम्मीदवार को चुनाव मैदान में खड़ा है. चक्रधरपुर में आजसू ने बीजेपी के लक्ष्मण गिलुवा के खिलाफ रामलाल मुंडा को टिकट दे दिया.

बीजेपी उम्मीदवारों की पहली सूची आयी तो पार्टी ने वे सीटें छोड़ दी थीं जिन पर विवाद की स्थिति बन पड़ी थी. जब आजसू ने धड़ाधड़ा उम्मीदवार उतारने शुरू कर दिये फिर तो बीजेपी ने भी साफ कर दिया कि वो झारखंड की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी. ऐसी ही एक और सीट थी जिसे बीजेपी ने आजसू के लिए छोड़ा था वहां एक निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन देने का फैसला किया है.

2014 में बीजेपी ने अपने हिस्से में 72 सीटें रखते हुए आजसू को 8 सीटें चुनाव लड़ने के लिए छोड़ दी थी. इस बार भी बीजेपी आजसू को सीटें तो उतनी ही देने जा रही थी लेकिन पिछली बार वाली ही सारी सीटें देने को राजी नहीं थी. बीजेपी एक मजबूरी भी रही, मिसाल के तौर पर लोहरदगा सीट से बीजेपी को तब तक कोई मतलब नहीं रहा जब तक सुखदेव भगत कांग्रेस में थे. जब सुखदेव भगत कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में आये तो बीजेपी को लोहरदगा सीट की जरूरत महसूस हुई. आजसू ने बीजेपी की एक न सुनी और अपने उम्मीदवार उतार दिये.

sudesh mahto, amit shah, uddhav thackerayमहाराष्ट्र के बाद झारखंड में भी टूटा NDA...

टकराव यहीं तक होता तो कोई खास बात नहीं होती, आजसू की ओर से इस बार 12 से 15 सीटों की मांग रखी गयी थी. बाद में सुनने में आया कि ये डिमांड 17 सीटों तक पहुंच गयी है और कुछ सीटों पर फ्रेंडली मैच की बात मान कर आगे बढ़ने की कोशिश रही - लेकिन अब तो साफ है कि गठबंधन टूट चुका है.

वैसे सुदेश महतो के साथ ऐसा भी कह रहे थे कि आजसू इस बार चुनाव बाद गठबंधन चाह रहा है. चुनाव पूर्व गठबंधन खत्म होने की बड़ी वजह तो यही रही कि दोनों पक्ष अपनी अपनी जिद पर अड़े रहे. न बीजेपी झुकने को तैयार हुई और न ही आजसू. न मुख्यमंत्री रघुबर दास ने थोड़ा बड़ा दिल दिखाया, न सुदेश महतो ने रिश्ता बनाये रखने की कोई कोशिश की.

बीजेपी भी महाराष्ट्र के बुरे अनुभव को आगे बढ़ाने के मूड में नहीं रही. वैसे भी चुनाव से पहले की दावेदारी मान लेने पर कोई गारंटी तो नहीं कि नतीजे आने के बाद सुदेश महतो वैसे रंग नहीं दिखाएंगे जो उद्धव ठाकरे दिखाने लगे.

हो सकता है बीजेपी ने पहले से ही खास रणनीति के तहत आगे बढ़ रही हो. झारखंड में भी महाराष्ट्र की तरह पापड़ न बेलना पड़े उसी हिसाब से सीटों को लेकर शर्त रखी हो - और ऐसी पॉलिटिक्स की कि मैसेज ये जाये कि गठबंधन बीजेपी ने नहीं आजसू ने तोड़ा है - ठीक वैसे ही जैसे महाराष्ट्र में भी देखने को तो यही मिला कि गठबंधन बीजेपी ने नहीं शिवसेना ने तोड़ा है.

आखिर शिवसेना के ही मंत्री ने तो इस्तीफा दिया. शिवसेना ही खुल कर एनसीपी और कांग्रेस से सरकार बनाने की डील करने लगी. बीजेपी तो आखिर तक यही कहती रही कि वो सरकार बनाएगी तो शिवसेना के साथ ही, वरना नहीं बनाएगी. अब जबकि शिवसेना और एनसीपी-कांग्रेस की संभावित सरकार का कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का ड्राफ्ट भी सामने आ गया है, तब कहीं जाकर बीजेपी फिर से कहने लगी है कि महाराष्ट्र में सरकार तो उसके बगैर बनने से रही - सरकार तो बीजेपी की ही बनेगी. हालांकि, अभी बीजेपी 119 विधायकों के समर्थन का ही दावा कर रही है.

जमशेदपुर में बड़ा घमासान

बीजेपी उम्मीवारों की अंतिम लिस्ट तो अभी नहीं आयी है, लेकिन तीन सूचियों में अपना नाम न देखने के बाद सरयू राय आपे से बाहर हो गये हैं. सरयू राय का अपना तो जो कद है वो है ही, ज्यादातर वक्त तो वो मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ अपने तल्ख रिश्तों के लिए ही चर्चा में रहते हैं. बीजेपी ने रघुवर दास को तो जमशेदपुर पूर्व से टिकट दे दिया है, लेकिन जमशेदपुर पश्चिम से सरयू राय को होल्ड पर रखा है.

अब तो नौबत ये आ पड़ी लगती है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कैबिनेट साथी चुनाव मैदान में आमने सामने भी हो सकते हैं. एक बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार और दूसरे बीजेपी के बागी.

जमशेदपुर में वोटिंग 7 दिसंबर को होनी है और नामांकन भरने की आखिरी तारीख 18 नवंबर है. मालूम हुआ है कि सरयू राय ने जमशेपुर पूर्व और पश्चिम दोनों सीटों के लिए नामांकन की तैयारी कर रखी है.

सरयू राय बागी बन कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं या नहीं ये तो बाद की बात है, फिलहाल तो कांग्रेस उम्मीदवार प्रोफेसर गौरव वल्लभ के मैदान में उतर जाने से लड़ाई दिलचस्प होती लग रही है. बीजेपी उम्मीदवार और मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ कांग्रेस ने गौरव वल्लभ को टिकट दे दिया है. गौरव वल्लभ का नाम राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में तब आया जब एक लाइव डिबेट में संबित पात्रा से एक सवाल पूछ डाला - ट्रिलियन में कितने शून्य होते हैं? डिबेट वाला वीडियो वायरल हो गया और गौरव वल्लभ को हर कोई पहचानने लगा.

वैसे तो झारखंड में जेडीयू और LJP यानी लोक जनशक्ति पार्टी भी अलग अलग चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उनके मैदान में होने से बीजेपी को कोई फिलहाल खास फर्क नहीं पड़ता. इस चुनावी लड़ाई की समीक्षा तो साल भर बाद होनी है जब बिहार में 2020 में विधानसभा के चुनाव होंगे.

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