साथ-साथ लांच हों जीएसटी और 'गुजरात सीएम' अमित शाह!
ये मोदी की मजबूरी है कि ऐसे वक्त में जब देश में सबसे बड़े आर्थिक बदलाव को लाने की तैयारी हो तो उनके मूल राज्य गुजरात में राजनीति और समाज पर उनकी पकड़ मजबूत बनी रहे.
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जीएसटी बिल राज्य सभा में पेश हो चुका है और माना जा रहा है कि मौजूदा सत्र में इस बिल को सदन की मंजूरी दिलाने की पूरी सेटिंग की जा चुकी है. राहुल गांधी संकेत दे चुके हैं कि वह इस सत्र में इस बिल को पारित कराने में सरकार की पूरी मदद करेंगे लिहाजा केन्द्र सरकार को अब देशभर में जीएसटी लागू करने का वह राजनीतिक नमूना रखना है जिसपर कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष तैयार हो.
गौरतलब है कि देश में टैक्स कलेक्शन और उद्योग के हिसाब से गुजरात देश का सबसे अग्रणी राज्य है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात की कमान आनंदीबेन पटेल को सुपुर्द की गई लेकिन उनके दो साल के कार्यकाल के दौरान बीजेपी को राज्य में राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल का सामना करना पड़ा. जाहिर है इसका सीधा असर उस गुजरात मॉडल पर साफ पड़ा होगा जिसका प्रचार-प्रसार कर मोदी ने विकसित भारत का सुनहरा सपना बुना.
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लिहाजा, ये मोदी की मजबूरी है कि ऐसे वक्त में जब देश में सबसे बड़े आर्थिक बदलाव को लाने की तैयारी हो तो उनके मूल राज्य गुजरात में राजनीति और समाज पर उनकी पकड़ मजबूत बनी रहे. इससे वह इस आर्थिक बदलाव से न सिर्फ अपने गुजरात मॉडल को पूरे देश पर लागू करा पाएंगे बल्कि गुजरात जैसा आर्थिक फायदा देश के अन्य पिछड़े राज्यों को भी दिलाने की नींव रख सकेंगे.
नरेंद्र मोदी, अमित शाह और राजनाथ सिंह |
गौरतलब है कि 2014 लोकसभा चुनावों में गुजरात मॉडल का जो सिक्का बीजेपी ने चलाया और केन्द्र की सत्ता पर काबिज हो मोदी को प्रधानमंत्री और अमित शाह को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया. एक तरफ जहां प्रधानमंत्री मोदी 60 साल की कांग्रेसी व्यवस्था और कांग्रेसी संस्था को ध्वस्त करने की जुगत में लग गए वहीं अमित शाह कांग्रेस मुक्त भारत की मोदी स्क्रिप्ट पर काम करने लगे. अपने काम में मोदी को कुछ हद तक सफलता मिलने लगी लेकिन अमित शाह को मोदी स्क्रिप्ट पर ज्यादातर जगह मायूसी ही झेलनी पड़ी.
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शाह के नेतृत्व में पहले बिहार के विधानसभा चुनावों में तथाकथित मोदी लहर की हवा निकल गई. उसके बाद हुए पांच राज्य के चुनावों में असम को छोड़कर बीजेपी को सिर्फ निराशा ही हाथ लगी. बंगाल और तमिलनाडु के नतीजों ने बता दिया कि देश में क्षेत्रीय क्षत्रपों का सूपड़ा अभी साफ नहीं किया जा सकता.
इस बीच मोदी-शाह की कर्मभूमि गुजरात पर राजनीतिक संकट लहराने लगा. पटेल आरक्षण और दलितों पर अत्याचार का दैत्य उठ खड़ा हुआ और आनंदीबेन पटेल पर सवाल खड़ा हो गया. सामान्य राजनीतिक चेतना भी यही कहती है कि मोदी और शाह अगर गुजरात की स्थिति को वापस अपने पक्ष में मजबूत नहीं करते हैं तो 2017 में गुजरात के विधानसभा चुनाव उन्हें पटखनी दे सकते हैं जिससे 2019 के लोकसभा चुनावों में गुजरात मॉडल खुद-ब-खुद विफल हो जाएगा.
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लिहाजा मौजूदा समय में पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस साल के अंत या 2017 की शुरुआत में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नहीं बल्कि 2017 के अंत में गुजरात की अग्निपरीक्षा है. पंजाब के विधानसभा चुनावों को लेकर हो रहे ज्यादातर सर्वेक्षण मान रहे हैं कि आम आदमी पार्टी मजबूत स्थिति में हैं लिहाजा यहां अमित शाह की कांग्रेस मुक्त भारत की स्क्रिप्ट काम करने की गुंजाइश बेहद कम है. वहीं उत्तर प्रदेश में पार्टी खुद आंक रही है कि इस राज्य में राजनीति कुछ अलग है क्योंकि यहां जात-पात का आंकड़ा गुजरात से मेल नहीं खाता. ऐसे में अगले 6 महीने तक अमित शाह को पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनावों में फंसाने के साथ-साथ गुजरात की स्थिति को संभालने का दारोमदार देना दो नांव में पैर रखने जैसा है. उत्तर प्रदेश और पंजाब में सरकार न बना पाने की स्थिति में गुजरात की स्थिति और खराब हो सकती है और गुजरात में हार का मतलब केन्द्रीय राजनीति में अमित शाह की साख पर बट्टा लगाना होगा.
लिहाजा, बीजेपी के लिए सबसे अहम है कि वह गुजरात को मोदी का सबसे ताकतवर पक्ष दे जो गुजरात मॉडल को 2019 के चुनावों तक न सिर्फ जीवित रखे बल्कि उसे और निखार दे. ऐसे में देशभर में जीएसटी लागू करना एक ऐसा सुनहरा मौका है जहां न सिर्फ अमित शाह अपनी राष्ट्रीय राजनीति की नींव रख सकते हैं बल्कि गुजरात में 15 साल के मोदी मॉडल को सबसे बड़े आर्थिक सुधार से जोड़ सकते हैं. देश की अर्थव्यवस्था में गुजरात अग्रणी राज्य है लिहाजा जीएसटी लागू होने पर वह सर्वाधिक फायदे में रहने वाला राज्य भी होगा. गौरतलब है कि देश में कारोबार, व्यापार, मैन्यूफैक्चरिंग जैसे क्षेत्र में गुजरात का कीर्तिमान है लिहाजा यहां कि राजनीति पर मजबूत पकड़ का सिर्फ और सिर्फ यही मतलब है कि देश के कारोबार और व्यापार पर पकड़. ऐसी स्थिति में बीजेपी, मोदी और संघ की दुविधा बस यही है कि वह इस हकीकत को मानें और अमित शाह को गुजरात मॉडल पुख्ता करने की जिम्मेदारी दें.
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