अमित शाह ने तो मोदी के लिए 'बाढ़' की मिसाल देकर मुसीबत ही मोल ली
अमित शाह ने बाढ़ में न मालूम कौन सा सकारात्मक पक्ष देखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर मिसाल दे डाली है.क्या बाढ़ को पॉजिटिव रूप में देखा जा सकता है. हर बाढ़ कहर ढाती ही लगती है - कोसी की बाढ़ से लेकर चेन्नई तक.
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वैसे तो अमित शाह ने अपने बयान पर अपनी ओर से सफाई दे दी है, लेकिन विपक्ष बहस बस इतने से खत्म नहीं होने दे रहा. कांग्रेस नेता संजय निरुपम का कहना है कि अमित शाह ठीक ही कह रहे हैं, मोदी 'बाढ़' ही हैं - 'प्राकृतिक आपदा' ही हैं. नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला का भी सवाल कुछ ऐसा ही है.
अमित शाह का कहना है कि उनके कहने का आशय विपक्षी दलों की विचारधारा से है. दरअसल, अमित शाह बीजेपी के अलावा किसी भी पार्टी को विचारधारा वाली नहीं मानते या फिर उसे विचारधारा के लेवल का नहीं समझते. लगता तो ऐसा कि अमित शाह ने मोदी के लिए मिसाल ही गलत चुन ली है.
क्या मोदी 'बाढ़' हैं?
बीजेपी के स्थापना दिवस पर मुंबई में अमित शाह बोले - ''मैंने एक कहावत सुनी थी कि जब कही तेज बाढ़ आती है और सारे पेड़-पौधे पानी में बह जाते हैं. सिर्फ एक पेड़ बचता है... सांप, नेवला, कुत्ता, बिल्ली, शेर और चीता सब जान बचाने के लिए उसी पर चढ़ जाते हैं - क्योंकि नीचे पानी का डर रहता है... इसी तरह मोदी की बाढ़ चल रही है और विपक्ष के नेता साथ आने के लिए कहने लगे हैं.''
क्या राजनीतिक बयान सिर्फ जुमले होते हैं?
क्या बाढ़ को पॉजिटिव रूप में देखा जा सकता है. बरसों पहले खेती के हिसाब से भले ही ठीक माना जाता रहा हो, लेकिन फिलहाल तो हर बाढ़ कहर ढाती ही लगती है - कोसी की बाढ़ से लेकर चेन्नई तक. बाढ़ आने पर खबर जान-माल के नुकसान की ही आती है - और फिर महीनों तक पुनर्वास की कोशिशें चल रही होती हैं. अमित शाह ने बाढ़ में न मालूम कौन सा सकारात्मक पक्ष देखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर मिसाल दे डाली है. अमित शाह के बयान पर रिएक्ट करते हुए, मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष संजय निरुपम कहते हैं, "नरेंद्र मोदी इस देश के लिए प्राकृतिक आपदा ही हैं." निरुपम की ही तरह नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने अपने ट्वीट के जरिये सवाल किया है - 'क्या मोदी कुदरती आफत हैं?'
Did the BJP President liken the Hon PM to a natural disaster?
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) April 6, 2018
बीजेपी की शुरुआती मुहिम 'कांग्रेस मुक्त भारत' तक रही, जो बाद में 'विपक्ष मुक्त भारत' में तब्दील हो गयी - लेकिन अब ये उसका नया स्वरूप सामने आ रहा है. यूपी में जब समाजवादी पार्टी और बीएसपी का गठबंधन हुआ तो योगी आदित्यनाथ का कहना था - 'आंधी तूफान सांप और छछूंदर साथ खड़े हो जाते हैं'.
देखें तो अमित शाह ने उसी थ्योरी को आगे बढ़ा दिया है - यूपी जहां अखिलेश यादव और मायावती साथ रहे, अब राष्ट्रीय स्तर पर ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू भी साथ होने का संकेत दे रहे हैं और इसमें अखिलेश और मायावती को भी संग लेने की कोशिश है. अमित शाह भी इन गतिविधियों पर बारीकी से गौर कर रहे हैं.
सांप-नेवला वाले बयान पर जब अमित शाह से सवाल पूछा गया तो प्रेस कांफ्रेंस में उनका जवाब था, "मेरा कहने का मतलब यही था कि विचारधाराओं से भी जिनका कोई मेल मिलान नहीं है... इस प्रकार के सारे दल इकट्ठा हुए हैं. मगर किसी की भावना अगर आहत हुई है तो मैं नाम ही देता हूं... जैसे सपा और बसपा कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस चंद्रबाबू नायडू और कांग्रेस पार्टी इस प्रकार के लोग कभी इकट्ठा नहीं आते थे. मगर मोदी जी के डर के कारण इकट्ठा हैं."
तो क्या शासन को भी 'जंगलराज' समझें?
मशहूर किताब एनिमल फॉर्म में जॉर्ज ऑरवेल ने जानवरों को ही किरदार बना कर जंगल की राजनीति का स्केच खींचा है. ये ताना बाना उनके दौर की राजनीतिक व्यवस्था पर बहुत बड़ा कटाक्ष माना जाता है. अमित शाह का बयान उन किरदारों से ऑटो-कनेक्ट हो जाता है.
फिर सहज सवाल उठता है कि क्या भारतीय राजनीति भी उसी अवस्था की ओर बढ़ रही है जो गतिविधियां कभी जॉर्ज ऑरवेल को नजर आ रही थीं. क्या जॉर्ज ऑरवेल आज होते तो मौजूदा दौर को जंगलराज करार देते? बात प्रतीकों में हो रही है और अगर प्रतीकों के हिसाब से सोच को समझने की कोशिश हो तो प्रतिक्रिया भी वैसी ही प्रतीकात्मक होगी.
मोदी की मिसाल और शाह की मुश्किल...
स्थापना दिवस पर एक बार फिर अमित शाह ने बीजेपी के स्वर्णिम काल का जिक्र किया. बीजेपी के स्वर्णिम काल की ख्वाहिश अमित शाह के अनुसार तब पूरी होगी जब ओडिशा और पश्चिम बंगाल में भी उनकी सरकार बन जाएगी. मतलब ये समझा जाये कि बीजेपी मान कर चल रही है कि कर्नाटक तो कांग्रेस से जीत ही जाएगी - और राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हारने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. ऐसा हुआ तो विपक्ष का नामोनिशान मिट जाएगा. अगर विपक्ष सांप, नेवला और कुत्ता से बना है और वो नहीं रहा फिर तो इकोसिस्टम ही गड़बड़ हो जाएगा. ये इकोसिस्टम कुछ और नहीं लोकतंत्र ही है.
वैसे जब भी जंगलराज की बात होती है तस्वीर बिहार की उभर आती है. बिहार की भी उस दौर की तस्वीर जब सूबे में लालू प्रसाद का शासन रहा. हालांकि, इस बात पर तेजस्वी यादव का पलटवार होता है कि मध्य प्रदेश में क्या है, जहां व्यापम जैसे स्कैम होते हैं. वैसे ये बात तब की है जब बिहार में अच्छे दिन नहीं पहुंच पाये थे.
राजनीतिक बयानों में अक्सर ऐसे मिसाल सुनने को मिलते हैं जो अजीब लगते हैं - और फिर वो सत्ता पक्ष और विपक्ष बीच तू-तू, मैं-मैं का मसाला बन जाते हैं. जिस तरह दिल्ली के सिख दंगों पर राजीव गांधी ने कहा था, "जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है," उसी तरह मोदी ने भी गुजरात दंगों के बारे में बोला था, "दुख तो होता ही है. अगर कुत्ते का बच्चा भी कार के नीचे आ जाए तो भी दुख होता है."
सियासी बयानों का वैसे भी सिर्फ तात्कालिक महत्व ही होता है. 'काले धन के 15 लाख...' चुनावी जीत का आधार बनता है और बाद में वही जुमला बता दिया जाता है. अमित शाह ने सांप, नेवला और कुत्ता वाली बाद पर भी सफाई देने की कोशिश की है, लेकिन मोदी के लिए गलत मिसाल दे दी है. लगता तो ऐसा है कि अमित शाह ने फुल टॉस गेंद देकर फॉलो थ्रू में कैच लेने की कोशिश की, लेकिन वो नो बॉल था. अब अगर शासक बाढ़ हो, विरोधी सांप, नेवला और कुत्ता हों तो शासन को जंगलराज न समझा जाये तो क्या कहा जाये?
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