Delhi में Amit Shah-Nitish Kumar की साझा रैली तय करेगी बिहार चुनाव का एजेंडा
राम विलास पासवान भले ही राजनीति के मौसम विज्ञानी माने जाते हों, लेकिन नीतीश कुमार (Nitish Kumar with BJP agenda) सियासत की नब्ज पहचानते हैं - अपना सेक्युलर चोला खूंटी पर टांगने के बाद वो भगवा भले न धारण करें लेकिन अमित शाह (Amit Shah ) के साथ कदमताल जरूर करने जा रहे हैं.
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दिल्ली चुनाव (Delhi Election 2020) में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह (Amit Shah) से ही भिड़ना होता था - आगे से मोर्चे पर नीतीश कुमार से भी दो-दो हाथ करने होंगे. अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार के बीच अच्छी दोस्ती रही है, लेकिन बदले समीकरणों में इसका चुनावी दुश्मनी में बदलना तय हो चुका है. नीतीश कुमार दिल्ली में अमित शाह के साथ पहली बार मंच शेयर करने जा रहे हैं - और बुराड़ी में दोनों नेता JDU उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार करने वाले हैं. दिल्ली में इस बार बीजेपी और नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के बीच चुनावी गठबंधन हुआ है, जिसका दायरा पहले सिर्फ बिहार तक सीमित हुआ करता था.
अमित शाह और नीतीश कुमार की साझा रैली (Amit Shah and Nitish Kumar joint rally) के दिल्ली तो सिर्फ मौका मुहैया करा रही है, असल बात तो ये है कि ये देश में आगे की राजनीति का एजेंडा तय करने जा रही है.
दिल्ली में शाह-नीतीश की साझा रैली
अमित शाह और नीतीश कुमार की साझा रैली दिल्ली के बुराड़ी में 2 फरवरी को होने जा रही है - इसे बिहार गठबंधन का रिहर्सल भी कह सकते हैं. इतना तो तय है कि रैली के बाद नीतीश कुमार की नयी राजनीतिक छवि देखने को मिल सकती है - और आगे चल कर वो उसी रास्ते पर बिहार में भी बीजेपी के साथ कदमताल करने वाले हैं.
दिल्ली में चुनावी गठबंधन के तहत बीजेपी ने जेडीयू को दो सीटें दी है - बुराड़ी और संगम विहार. बुराड़ी सीट पर जेडीयू कोटे से शैलेंद्र कुमार गठबंधन के उम्मीदवार हैं तो संगम विहार में पूर्व विधायक डॉ. सीएल गुप्ता जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
नीतीश कुमार दोपहर में बुराड़ी रैली अमित शाह के साथ और शाम को संगम विहार में बीजेपी के नये अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ भी एक रैली करेंगे.
अमित शाह और नीतीश कुमार की प्रस्तावित रैली बीजेपी और जेडीयू दोनों के नयी राह पर चलने का संकेत दे रही है. ऐसा लगता है जैसे अमित शाह और नीतीश कुमार दोनों ही जिद छोड़ कर रिश्तों को मजबूत करने के लिए आगे बढ़ने को तैयार हो गये हों.
गठबंधन साथियों के साथ अमित शाह के व्यवहार को देखें तो हाल के दो विधानसभा चुनावों में आम चुनाव के मुकाबले काफी बदला हुआ नजर आया. आम चुनाव में तो अमित शाह गठबंधन के हर साथी नेता से घर जाकर मिलते रहे, लेकिन जब महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे मातोश्री में इंतजार करते रहे और शाह ने गठबंधन की परवाह तक न की. झारखंड में भी चुनाव हार जाना मंजूर कर लिया लेकिन AJSU नेता सुदेश महतो की परवाह तक न की. अगला पड़ाव आने से पहले अमित शाह ने बड़ी संजीदगी से भूल सुधार का फैसला कर लिया और बिहार से भी पहले दिल्ली में ही NDA साथी नीतीश कुमार से एक छोटा सा गठबंधन कर लिया.
दिल्ली में अमित शाह के साथ नीतीश कुमार की पहली रैली का असर कहां तक होने वाला है?
झारखंड में जेडीयू ने बीजेपी के खिलाफ भी चुनाव मैदान में प्रत्याशी उतारे थे और जमशेदपुर सीट पर सरयू राय की बगावत को भी नीतीश कुमार का समर्थन हासिल था. ये बात अलग है कि जब सरयू राय के चुनाव प्रचार की बात आयी तो नीतीश कुमार ने जमशेदपुर जाने से परहेज कर लिया.
नीतीश कुमार ने भी अमित शाह का रास्ता ही अख्तियार किया है. नीतीश कुमार ने संसद में धारा 370 का सीधे सीधे सपोर्ट नहीं किया था, बल्कि सदन का बहिष्कार किया था. वैसे ऐसे बहिष्कार का मतलब भी परोक्ष सपोर्ट ही होता है. जब धारा 370 खत्म हो गया और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित क्षेत्र बन गये तो, एक जेडीयू नेता की टिप्पणी रही जब संसद से कानून बन ही गया तो अब विरोध करने से क्या फायदा!
जेडीयू ने नागरिकता संशोधन कानून का संसद में सपोर्ट तो कर दिया था, लेकिन NRC और NPR पर नीतीश कुमार की हिचकिचाहट महसूस की जा रही थी. मान कर चला जाना चाहिये ऐसा आगे से नहीं होने वाला है.
नये अवतार में नजर आएंगे नीतीश कुमार
अब तो वो दृश्य भी भूल जाना होगा जब बिहार की एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी नेता वंदे मातरम् और भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे और वहीं मंच पर बैठे नीतीश कुमार मंद मंद मुस्कुराते देखे गये थे. नीतीश कुमार का वो वीडियो भी वायरल हो गया था. नये नीतीश कुमार वो सब अब काफी पीछे छोड़ चुके हैं.
नीतीश कुमार अब अपना सेक्युलर चोला खूंटी पर टांग चुके हैं. बदले माहौल में नीतीश कुमार और बीजेपी नेताओं में बस इतना फर्क बचा है कि वो भगवा नहीं ओढे़ हैं, लेकिन राजनीति के उसी रास्ते पर निकल पड़े हैं जो 2013 में उनके एनडीए छोड़ने का सबसे बड़ा कारण बना था.
CAA, NRC और NPR का विरोध कर रहे अपने दो साथियों प्रशांत किशोर और पवन वर्मा को जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा कर नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि वो बीजेपी के एजेंडे के साथ आगे की राजनीति करने जा रहे हैं.
हैरानी की बात नहीं होगी अगर दिल्ली की रैली में नीतीश कुमार भी कहें कि वोट देने वालों की दो ही कैटेगरी है, एक वे जो शाहीन बाग के सपोर्टर हैं और दूसरे वे जो उसके खिलाफ. फिर अरविंद केजरीवाल के मुंह से भी ये सुनने को मिल सकता है कि अगर दिल्ली के लोग उन्हें 'आतंकवादी' समझते हैं तो नीतीश कुमार के पक्ष में वोट दे दें - और कपड़ों की तरह नीतीश कुमार भी खास लोगों की खास पहचान का कोई तरीका सुझाते दिखें.
नीतीश कुमार की राजनीति भी पूरी तरह हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के रंग में रंग चुकी है, मान कर चलना होगा - तीन तलाक, धारा 370 और फिर CAA का सपोर्ट कर नीतीश ने पहले सिर्फ संकेत दिये थे - अब तो वो हिंदुत्व के चेहरे भी बनने जा रहे हैं. आगे से वो नारे लगाते वक्त मुस्कुराना छोड़ कर सुर में सुर मिला रहे होंगे.
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