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Updated: 30 जनवरी, 2020 11:42 AM
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प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) को नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने JDU का भूतपूर्व उपाध्यक्ष तो बना ही दिया, पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया है. जब तक कहीं और ऐसा कोई मौका नहीं मिलता प्रशांत किशोर पूरी तरह अपने मूल बिजनेस चुनावी रणनीति तैयार करने पर फोकस कर सकते हैं.

प्रशांत किशोर, दरअसल, नागरिकता संशोधन कानून, NRC और NPR पर विपक्षी नेताओं का मोर्चा खड़ा करने की कोशिश में नीतीश के खिलाफ आक्रामक रूख अख्तियार कर चुके थे. जब बिहार के मुख्यमंत्री ने प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल करने को लेकर अमित शाह का नाम लिया तो वो नीतीश कुमार को ही झूठा बताने लगे. नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर और बगावत पर उतर आये पवन वर्मा दोनों को पार्टीलाइन की हदों की याद दिलायी, लेकिन वे नहीं माने तो फैसला भी सुना दिया. प्रशांत किशोर और पवन वर्मा दोनों ही जेडीयू से बाहर किये जा चुके हैं.

प्रशांत किशोर फिलहाल दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की चुनावी मुहिम संभाल रहे हैं और उससे पहले से वो ममता बनर्जी के लिए भी काम कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि जेडीयू से निकाले जाने के बाद प्रशांत किशोर के पास क्या विकल्प बचे हैं - RJD भी ज्वाइन कर सकते हैं क्या?

प्रशांत किशोर के लिए RJD में कितनी संभावना?

नीतीश कुमार से दोस्ती टूटने के बाद प्रशांत किशोर के पास बहुत सारे विकल्प तो नहीं, लेकिन कम भी नहीं हैं. बीजेपी नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से सियासी दुश्मनी तो ताजा ताजा है ही, CAA-NRC-NPR के विरोध को लेकर - कांग्रेस की तरह तो पहले से ही नो एंट्री का संकेत है. जिस पार्टी में चुनाव प्रचार की खुली छूट न मिलती हो, वहां बाकी संभावनाएं तलाशना तो बेमानी ही है.

उद्धव ठाकरे और जगनमोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने का क्रेडिट ले चुके प्रशांत किशोर चाहें तो दोनों दलों को टटोल सकते हैं. अपने मौजूदा क्लाइंट अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के यहां भी गुंजाइश हो तो बात बढ़ा सकते हैं - खास बात ये है कि ऐसे सभी दलों को प्रशांत किशोर की सख्त जरूरत है. ये बात अलग है कि जरूरत के बदले ऐसे राजनीतिक दल प्रशांत किशोर को कितनी हिस्सेदारी देने के बारे में सोच सकते हैं.

भले ही एक दायरे में सीमित रही हो, लेकिन अब तक प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में हिस्सेदार हुआ करते थे. वो रहने वाले भी बिहार के बक्सर के हैं और ब्राह्मण परिवार से आते हैं. जेडीयू में उनके अधिकारों के पर कतरे हुए जरूर रहे लेकिन वो नीतीश कुमार की बगल में बैठते रहे. उनके लिए खास तौर पर पार्टी में उपाध्यक्ष का पद बनाया गया था - और युवाओं के बीच पार्टी को पैठ बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी.

राष्ट्रीय राजनीति की बात और है, लेकिन जो भी उनके क्लाइंट हैं उनका जनाधार तो अपने अपने राज्यों में ही है. ऐसे में क्या प्रशांत किशोर को बिहार से बाहर की राजनीति में वैसी ही दिलचस्पी हो पाएगी?

फिर तो सबसे अच्छा यही है कि प्रशांत किशोर थोड़ी कोशिश करके लालू प्रसाद से संपर्क करें और RJD ज्वाइन कर लें. वैसे तो आरजेडी को भी प्रशांत किशोर जैसे किसी पेशेवर चुनाव कैंपेनर की शिद्दत से जरूरत है, लेकिन एक्सचेंज ऑफर क्या होगा ये बात आगे बढ़ने पर ही मालूम हो सकेगा.

tejashwi yadav, prashant kishor, nitish kumarप्रशांत किशोर के पास पांच साल बाद बदला लेने का फिर मौका

प्रशांत किशोर और आरजेडी को करीब लाने में 'दुश्मन का दुश्मन दोस्त' वाला फॉर्मूला काम आ सकता है. ये तो सच है कि फिलहाल जो भी नीतीश कुमार और बीजेपी के खिलाफ आरजेडी को सपोर्ट करेगा लालू परिवार उसके साथ मजबूती से खड़ा हो जाएगा.

फर्ज कीजिये तेजस्वी यादव एक बार प्रशांत किशोर को आरजेडी में लेने को तैयार भी हो जाते हैं तो ये तो साफ है कि वो 'चाचा' तो बनने से रहे - हां, ये हो सकता है कि तेजस्वी यादव अपनी पुरानी कुर्सी मौका मिलने पर प्रशांत किशोर के हवाले कर दें. डिप्टी CM. जब तक ये मौका न मिले तब तक आरजेडी में तेजस्वी और तेज प्रताप के बाद वाली कुर्सी पर भी बैठने का मौका मिल सकता है.

मुश्किल ये है कि प्रशांत किशोर आरजेडी के भीतर फिट कहां होंगे?

अब तक आरजेडी में सवर्ण तबके से कुछ ही चेहरे प्रमुख रूप से नजर आते रहे हैं - लेकिन वे भी महज शो-पीस की ही तरह देखे और महसूस किये जाते रहे हैं. ये हैं - जगदानंद सिंह, शिवानंद तिवारी और हाल फिलहाल बेहद सक्रिय मनोज झा. जगदानंद सिंह फिलहाल आरजेडी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष हैं.

राष्ट्रीय जनता दल जिस तरह की जातीय राजनीति करता है उसमें सवर्णों के लिए कोई स्कोप नहीं है. ऐसे में प्रशांत किशोर के लिए हमेशा खुद को प्रासंगिक बनाये रखने की चुनौती होगी. दूसरा रास्ता वही है जो बाकी नेता अपनाये रहे, नुमाइश बने रहने का.

बिहार में बदला लेने का मौका मिलेगा दोबारा!

PK यानी प्रशांत किशोर जो बिजनेस मॉडल लेकर आये हैं उसमें बदला लेने का भी पूरा का पूरा स्कोप है - जैसे साल भर बाद ही बीजेपी से बिहार में बदला ले लिया था. 2014 में जब केंद्र में बीजेपी की सरकार बन गयी तो प्रशांत किशोर पार्टी में कोई बड़ा ओहदा चाह रहे थे. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी में कुछेक लोगों ने इसका विरोध किया और जब प्रशांत किशोर को लगा कि कुछ नहीं होने वाला है तो वो चलते बने. तभी नीतीश कुमार से संपर्क हुआ और लालू प्रसाद के साथ गठबंधन कर बीजेपी को चुनौती देने के आइडिया पर विचार हुआ. 2014 के आम चुनाव से पहले से ही मोदी से खफा नीतीश कुमार को तो बस ऐसे ही मौके की तलाश रही.

तब प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के साथ लालू प्रसाद की मदद से कॉमन सियासी दुश्मन मोदी-शाह से बदला लेने की योजना बनायी और फिर 'DNA टेस्ट' के साथ ही अंजाम तक पहुंचा दिया. एक बार फिर प्रशांत किशोर को ऐसा ही मौका मिला है. पांच साल बाद ही सही, इरादा तो बदला लेने का ही है. इस बार बदला नीतीश कुमार से ही लेना है और इस मुहिम में फिलहाल लालू परिवार से बेहतरीन पार्टनर कौई और हो भी नहीं सकता. ऐसा पार्टनर जो इस बदले के लिए सब कुछ न्योछावर करने को तैयार बैठा हो.

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