Prashant Kishor दिल्ली चुनाव को लेकर चली चाल में खुद ही उलझ गए!
नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की लड़ाई (Nitish Kumar and Prashant Kishor fight) दिल्ली चुनाव (Delhi Election 2020) के काउंटडाउन के साथ तेज होती गयी - और वोटिंग से पहले ही अंजाम तक पहुंच गयी - अमित शाह (Amit Shah) का नाम लिये बगैर प्रशांत किशोर ने फिर हमला बोला है.
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नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की लड़ाई (Nitish Kumar and Prashant Kishor fight) का तात्कालिक अंत हो चुका है. नागरिकता संशोधन कानून, NRC और NPR को लेकर शुरू हुई ये बहस अलग अलग मोड़ से गुजरते हुए झगड़े का रूप लेती गयी - और दिल्ली चुनाव (Delhi Election 2020) में वोटिंग से पहले ही ये अंजाम तक भी पहुंच गयी. पहले प्रशांत किशोर वे मुद्दे ही उठाते रहे जिनका वो विरोध कर रहे, लेकिन विवाद निजी हमले का रूप लेने लगा था. फिर प्रशांत किशोर खुल कर कहने लगे कि नीतीश कुमार सफेद झूठ बोल रहे हैं - मुद्दा जेडीयू ज्वाइन करने के मामले में अमित शाह (Amit Shah) के नाम लेने का रहा.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दावा है कि वो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के कहने पर ही प्रशांत किशोर को JDU ज्वाइन कराये थे - और अब पार्टी में बने रहना या छोड़ कर चले जाना उनकी मर्जी पर निर्भर करता है. फिर भी नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर की मर्जी का इंतजार नहीं किया.
प्रशांत किशोर ने पार्टी में बने रहने या छोड़ कर चले जाने की जगह उस बात पर रिएक्ट किया जिसमें नीतीश कुमार जेडीयू में प्रशांत किशोर को लाने के मामले में अमित शाह का नाम लिया करते हैं. प्रशांत किशोर इसे झूठ बताया था - सवाल बस ये है कि सच क्या है? और ये सच सामने कैसे आएगा?
झगड़ा बिग बॉस के घर जैसा लगा, लेकिन...
नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की सामने से नजर आ रही लड़ाई में भी कई ऐसे तत्व मौजूद रहे जो सारी बातें आंख मूंद कर मान लेने को तैयार होने ही नहीं देते. पहली बात तो प्रशांत किशोर का ऐसे मुद्दे का विरोध करना जिस पर नीतीश कुमार भी सहमत लगते हैं, लेकिन बोलते नहीं या फिर थोड़ा बहुत बोलते भी हैं तो उसमें बात कम होती है और सब समझने के लिए छोड़ दिया जाता है.
नीतीश कुमार ने पहली बार पार्टीलाइन की बात करते हुए प्रशांत किशोर को हदें भी समझायी. 14 दिसंबर पर पटना में नीतीश कुमार से मुलाकात से पहले और उसके बाद प्रशांत किशोर के रवैये में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला. मुलाकात के बाद भी वो नागरिकता कानून और इससे जुड़ी चीजों का उतनी ही शिद्दत से विरोध करते रहे. कांग्रेस और गैर-बीजेपी दलों के मुख्यमंत्रियों को भी खुले विरोध के लिए उकसाते रहे और कांग्रेस के औपचारिक विरोध के लिए राहुल गांधी और सोनिया गांधी को शुक्रिया भी कहे थे. पूरे मामले में नीतीश कुमार की चुप्पी प्रशांत किशोर के विरोध के एजेंडे को मंजूरी जैसी ही लग रही थी.
देखा जाये तो नीतीश कुमार, प्रशांत किशोर के बारे में वही बात कहे जो जेडीयू नेता आरसीपी सिंह के मुंह से सुनने को मिलता रहा. वैसे आरसीपी सिंह को नीतीश कुमार का बेहद करीबी और जो कुछ वो बोलते हैं उसे नीतीश कुमार की ही जबान समझा जाता रहा है - चूंकि दूसरी तरफ प्रशांत किशोर रहे और वो भी उतने ही करीबी रहे, इसलिए बात आई गई जैसी हो जाती रही. बाद में तो नीतीश कुमार ने भी साफ साफ कह दिया था - जिसे रहना है पार्टी में रहे, जो जाना चाहता है पार्टी छोड़ कर जा सकता है.
प्रशांत किशोर के अलावा नीतीश कुमार पार्टी के राज्यसभा सांसद पवन के. वर्मा के निशाने पर भी रहे. पवन वर्मा ने नीतीश कुमार को पत्र लिख कर कई बातों पर ऐतराज जताया था और सवाल भी पूछे थे. नीतीश कुमार एक ही तीर से दोनों को टारगेट करते हुए हिदायत भी देते रहे और आगाह भी कर रहे थे - और फिर एक ही साथ दोनों को पार्टी से बाहर भी कर दिया.
ये कह कर कि जनता दल - यूनाइटेड, में बड़े ही साधारण लोग हैं, कोई इंटैलेक्चुअल नहीं है - नीतीश कुमार पूर्व नौकरशाह और राजनयिक पवन वर्मा और जाने माने चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को जेडीयू नेताओं के स्तर और पार्टीलाइन की ओर ध्यान दिला रहे थे, कहा भी - 'हमारी पार्टी बड़े लोगों की पार्टी नहीं है जहां किसी भी मुद्दे पर ट्वीट और ईमेल कर दिया. अपनी राय रखने के लिए सभी आजाद हैं - एक पत्र लिखते हैं, तो दूसरे ट्वीट करते हैं. हम सभी को इज्जत देते हैं.'
बात जब प्रशांत किशोर पर फोकस होती तो बोल पड़ते, 'किसी को हम थोड़े ही पार्टी में लाए थे. अमित शाह के कहने पर मैंने प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल कराया था. अमित शाह ने मुझे कहा था कि प्रशांत को पार्टी में शामिल कर लीजिए.
प्रशांत किशोर जिसे झूठ बता रहे हैं, उसका सच कौन बताएगा?
प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार का ये कहना कि पार्टी में रहें या जायें जितना नागवार नहीं गुजरा, उससे ज्यादा बुरा अमित शाह का नाम लेना लगा. प्रशांत किशोर ने इस बात पर कड़ी प्रतिक्रिया जतायी थी कि जेडीयू में उनकी सिफारिशी एंट्री हुई थी - और वो भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के कहने पर. दरअसल, अमित शाह से प्रशांत किशोर काफी खफा रहते हैं क्योंकि 2014 के बाद बीजेपी का काम उनके ही चलते छूट गया और जो चाहते थे उस पर भी पानी फिर गया. 2014 के आम चुनाव के बाद 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान मीडिया में इस बात की काफी चर्चा हुई. जब प्रशांत किशोर जेडीयू ज्वाइन किये तब भी ये बातें हुईं - लेकिन तभी नीतीश कुमार का अमित शाह की सिफारिश वाला बयान आया और बहस की दिशा ही मुड़ गयी.
रियल्टी शो बिग बॉस में जाने वाले प्रतियोगियों को हरदम ही झगड़ते देखने को मिलता है. चूंकि नामीगिरामी हस्तियों की ये लड़ाइयां लोगों को मजेदार लगती हैं, इसलिए कम ही लोग इस बारे में सोच विचार करते हैं कि लड़ाई हकीकत है या सिर्फ फसाना? नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की ताजा लड़ाई भी करीब करीब वैसी ही दिलचस्प लग रही थी - जैसे तीन साल पहले यूपी में मुलायम सिंह यादव की पार्टी और परिवार में देखने को मिली थी. बहस तो तब भी खूब हुई लेकिन कहानी में इतने टर्न और ट्विस्ट आते गये कि समझना मुश्किल रहा कि किरदार कौन था और स्क्रिप्ट किसने लिखी थी.
प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के साथ अपनी लड़ाई को भी बिग बॉस के घर जैसा रंग देने की कोशिश की, लेकिन जेडीयू नेता ने बहुत लंबा नहीं खिंचने दिया. नीतीश कुमार ने भी लोगों को लुत्फ उठाने का काफी मौका दिया - तभी तो प्रशांत कुमार ने नीतीश कुमार को 'झूठा' तक बता डाला था.
क्या नीतीश कुमार ने कुर्सी बचायी है?
नीतीश कुमार से बेहतर ये तो कोई नहीं जान सकता कि प्रशांत किशोर को जेडीयू में शामिल करने के फैसले का आधार क्या रहा होगा? प्रशांत किशोर जैसे पेशेवर व्यक्ति की नीतीश कुमार को सख्त जरूरत रही ही होगी. प्रशांत किशोर हर तरीके से नीतीश कुमार के सभी खांचों में पूरी तरह फिट बैठते थे - लेकिन जब वो चुनाव प्रचार से दूर रहते हुए ट्वीट करते रहे तो काफी अजीब भी लगता. जब प्रशांत किशोर बताते कि जेडीयू के चुनाव प्रचार की कमान सीनियर नेता संभाल रहे हैं और वो उनसे सीख रहे हैं तो ये सुनने में भी अजीब लगता. अगर इतने ही सिखाने वाले काबिल नेता जेडीयू के पास थे तो 2015 में नीतीश कुमार को चुनावी मुहिम प्रशांत किशोर को क्यों सौंपनी पड़ी?
नीतीश कुमार कह रहे थे कि अमित शाह के कहने पर प्रशांत किशोर को जेडीयू में रखा - क्या अमित शाह की इतनी बातें मानते हैं नीतीश कुमार? अगर ऐसा ही है तो केंद्रीय मंत्रिमंडल में जेडीयू ने शामिल होने से इंकार क्यों कर दिया था? अगर अमित शाह की इतनी ही बातें मानते हैं तो नीतीश कुमार ने मोदी कैबिनेट 2.0 के बाद जब बिहार मंत्रिमंडल का पुनर्गठन किया तो बीजेपी को तवज्जो न देने की बातें क्यों उठीं?
प्रशांत किशोर के मामले में अमित शाह का नाम नीतीश कुमार ने पहले भी लिया था और अब उसे दोहरा रहे थे - फिर सवाल तो ये भी है कि नीतीश कुमार आखिर अमित शाह का नाम यूं ही तो ले नहीं सकते!
जेडीयू में उपाध्यक्ष बनाये जाने को लेकर प्रशांत किशोर का कहना रहा कि नीतीश कुमार 'झूठ' बोल रहे हैं - लेकिन ऐसा क्यों है?
प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार को झूठा क्यों बताया?
प्रशांत किशोर ने ट्विटर पर पूछा कि जेडीयू में लाने को लेकर नीतीश कुमार झूठ क्यों बोल रहे हैं? प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार से ये भी पूछा है कि वो आखिर अपने रंग में घोलने के प्रयास क्यों कर रहे हैं?
.@NitishKumar what a fall for you to lie about how and why you made me join JDU!! Poor attempt on your part to try and make my colour same as yours!
And if you are telling the truth who would believe that you still have courage not to listen to someone recommended by @AmitShah?
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) January 28, 2020
असल बात तो ये है कि प्रशांत किशोर जब किसी के लिए काम करते हैं तो उसके मजबूत पक्ष की जबरदस्त मार्केटिंग कर वोटों में तब्दील कर देते हैं - लेकिन कमजोरियों अपने पास रखे रहते हैं. याद कीजिये जब तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी प्रशांत किशोर पर खूब हमले कर रहे थे - तो पीके ने एक ही ट्वीट में सबके मुंह पर ताला लगा दिया. प्रशांत किशोर ने बस इतना ही समझाया था - अब ज्यादा मुंह मत खुलवाओ. ज्यादा बोला तो समझ लेना - और वे चुप हो गये.
प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार को भी लालू परिवार की तरह आगाह करने की पूरी कोशिश की. प्रशांत किशोर का ताजा लहजा भी कुछ कुछ वैसा ही रहा - लेकिन दलील थोड़ी अलग थी? प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार पर अमित शाह को लेकर जो दलील दी, वो बड़ी दमदार रही - इतनी हिम्मत है किसी में?
प्रशांत किशोर बाल की खाल ही नहीं उधेड़ रहे थे, वो सबसे कमजोर नस पकड़ कर भी पलटवार कर रहे थे - भला ये कौन मान लेगा कि अमित शाह के आदमी की बात आप न सुनें? सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि नीतीश कुमार आखिर प्रशांत किशोर को अमित शाह के साथ लपेटने की कोशिश क्यों की?
मुश्किल ये है कि ये सच तो तभी सामने आएगा जब अमित शाह स्थिति स्पष्ट करेंगे - वैसे नीतीश कुमार भला अमित शाह का नाम लेकर ऐसी बात क्यों कहेंगे - कुछ तो केमिकल लोचा है?
नीतीश का बयान आने के बाद प्रशांत किशोर ने कहा था कि वो बिहार जाकर ही अपनी बात कहेंगे और जवाब भी देंगे, 'नीतीश जी बोल चुके हैं, अब मेरे जवाब का इंतजार कीजिए. मैं उन्हें जवाब देने के लिए बिहार जाऊंगा.'
प्रशांत किशोर अभी दिल्ली में ही रहे और उनके पटना पहुंचने से पहले ही नीतीश कुमार ने पत्ता साफ कर दिया.
दरअसल, प्रशांत किशोर की टीम दिल्ली चुनाव में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी की चुनावी मुहिम चला रही है और ऐसे में उनका दिल्ली में रहना भी जरूरी ही समझा जाना चाहिये.
सवाल यही है कि जेडीयू में बिग बॉस के घर जैसा झगड़ा क्या दिल्ली में चुनावों के चलते ही शुरू हुआ और ये खतरनाक शक्ल अख्तियार कर लिया? लगता तो ऐसा ही है कि CAA-NRC-NPR का मसला बीजेपी के विरोध के लिए मजबूत हथियार है और ये विरोध की ऐसी फसल है जो दो-दो बार काटी जा सकती है - एक बार दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल और दूसरी बार पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए. प्रशांत किशोर यही कर रहे थे, लेकिन अब नीतीश कुमार ने बाजी पलट दी है. प्रशांत किशोर ने भी नीतीश कुमार पर तंज भरा पलटवार किया है - 'कुर्सी बचा ली...'
Thank you @NitishKumar. My best wishes to you to retain the chair of Chief Minister of Bihar. God bless you.????????
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) January 29, 2020
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