चुनाव का मौसम आते ही बीजेपी के एजेंडे से विकास पीछे क्यों छूट जाता है?
चुनाव तो पहले त्रिपुरा में होने हैं, लेकिन बीजेपी का ज्यादा जोर कर्नाटक (Karnataka Election 2023) पर दिखा है - बस ये नहीं समझ में आ रहा कि अमित शाह (Amit Shah) कर्नाटक के लोगों को डबल इंजन सरकार (Double Engine Sarkar) के फायदे की जगह मंदिर और टीपू सुल्तान का फर्क क्यों समझा रहे हैं?
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कर्नाटक में चुनावी तैयारियां (Karnataka Election 2023) तो गुजरात और हिमाचल प्रदेश के पहले से ही शुरू हो गयी थीं. सिर्फ बीजेपी, कांग्रेस या जेडीएस ही नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल भी कर्नाटक के लोगों को कामकाज का दिल्ली मॉडल कई बार समझा चुके हैं.
राहुल गांधी भी कर्नाटक की राजनीति में चर्चित रहे '40 फीसदी कमीशन' का मुद्दा चुनावी माहौल में पहले ही घोलने की कोशिश कर चुके हैं - और अरविंद केजरीवाल सरेआम दावा कर चुके हैं कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को केंद्र की मोदी सरकार की तरफ से सबसे ईमानदार सरकार का सर्टिफिकेट भी मिल चुका है. अरविंद केजरीवाल ये दावा इस आधार पर करते हैं कि बार बार की छापेमारी के बावजूद केंद्रीय जांच एजेंसियों को उनके दफ्तर और साथियों के पास से अब तक कुछ भी नहीं मिला है.
और जब अमित शाह (Amit Shah) भी कर्नाटक पहुंचते हैं तो बीजेपी के अलावा सारे ही राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार का एटीएम करार देते हैं. कहते हैं - जब कांग्रेस आएगी तो कर्नाटक, दिल्ली का एटीएम बनेगा और जब जेडीएस की सरकार बनती है तो ये परिवार के लिए एटीएम बन जाता है. दोनों ही दलों ने बार-बार भ्रष्टाचार के जरिये कर्नाटक की प्रगति को रोका है.
बाकी सब तो ठीक है, लेकिन अमित शाह की एक बात समझ में नहीं आती, 'वंशवादी राजनीति और भ्रष्टाचार से मुक्त होने का समय आ गया है.' कर्नाटक में तो पहले से ही बीजेपी की सरकार है - और वो तो 2018 के विधानसभा चुनाव के जरिये सत्ता में आयी सरकार भी नहीं है. वो तो सत्ता हासिल करने के बीजेपी के ब्रह्मास्त्र ऑपरेशन लोटस का नतीजा है. देश में ऑपरेशन लोटस के जनक माने जाने वाली बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने ही सवा साल में ही तख्ता पलट दिया था.
कर्नाटक में बीजेपी कार्यकर्ताओं से मुखातिब अमित शाह ने कर्नाटक के लोगों को समझाया कि किसी भी सूरत में 'अधूरी सरकार' मत बनाइये, कम से कम दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाइये. ये तो अच्छी बात है, सरकार तो मजबूत होनी ही चाहिये जो आसानी से फैसले ले सके - लेकिन कर्नाटक के लोगों को ये भी नहीं भूलना चाहिये कि मजबूत विपक्ष भी लोकतंत्र की महती जरूरत है.
बीजेपी नेता ने अपनी तरफ से लोगों को आगाह करने की कोशिश भी की, जेडीएस से जुड़े लोग अफवाह फैला रहे हैं कि बीजेपी उनके साथ गठबंधन करेगी - और बोले, 'मैं कर्नाटक में स्पष्ट रूप से बताना चाहता हूं... बीजेपी अकेले चुनाव लड़ेगी और राज्य में सरकार भी बनाएगी.'
अमित शाह का कहना था, 'स्पष्ट रूप से दो पक्ष हैं... और इस बार सीधी लड़ाई है... पत्रकार कहते हैं कि त्रिकोणीय लड़ाई है... मैं कहता हूं... नहीं, ये सीधी लड़ाई है, क्योंकि जेडीएस को वोट देने का मतलब कांग्रेस को वोट देना है... ये सीधी लड़ाई है या नहीं?' वैसे कर्नाटक के लोगों को भी ये खबर तो होगी ही कि पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी जेडीएस का कांग्रेस के साथ नहीं बल्कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस के साथ चुनावी गठबंधन कर रहे हैं. हाल ही में बीआरएस के दफ्तर के उद्घाटन के मौके पर दिल्ली पहुंच कर वो ये सब पक्का भी कर चुके हैं.
तमाम बातों के बीच अमित शाह का सबसे ज्यादा जोर उसी एजेंडे पर सामने आता है, जो बीजपी की चुनावी राजनीति की खास लाइन होती है. मंदिर मुद्दा और राष्ट्रवाद. अमित शाह की बातें जरा ध्यान से सुनिये, 'स्पष्ट रूप से दो पक्ष हैं... एक तरफ, बीजेपी के रूप में देशभक्तों का संगठन है... और दूसरी तरफ, कांग्रेस के नेतृत्व में टुकड़े-टुकड़े गिरोह एक साथ आ गये हैं... ये कर्नाटक के लोगों को तय करना है कि वे देशभक्तों के साथ हैं या उन लोगों के साथ जो देश को बांटना चाहते हैं?'
कर्नाटक के लोग सोच लें... और समझ भी लें!
बीजेपी की चुनावी तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने आने वाले चुनावों के लिए कर्नाटक के लोगों के सामने दो विकल्प रखा है. कहते हैं कि वे दोनों में से कोई एक चुन लें. लोग फैसला कर लें कि उनको कौन सी राजनीति पसंद है. पहले ही तय कर लें कि किसके साथ जाना है?
अमित शाह की बातों से तो लगता है जैसे बीजेपी कर्नाटक को लेकर काफी डरी हुई है.
अमित शाह ये समझा रहे हैं कि लोगों के सामने एक विकल्प बीजेपी है, जो मंदिर बनवाती है - और दूसरा विकल्प कांग्रेस और जेडीएस जैसी राजनीतिक पार्टियों का भी है जो टीपू सुल्तान का महिमामंडन करते हैं. कहते हैं, एक तरफ बीजेपी है जिसके साथ देशभक्त हैं, और दूसरी तरफ वे लोग हैं जो टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ रहते हैं.
बीजेपी नेता शाह कह रहे हैं, 'एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जो अयोध्या, काशी, केदारनाथ और बद्रीनाथ का विकास करते हैं, दूसरी तरफ वे लोग हैं जो टीपू सुल्तान का महिमामंडन किया करते हैं - अब कर्नाटक के लोगों को ही दोनों में से किसी एक को चुनना है.'
बेहतर तो ये होता कि अमित शाह कर्नाटक के लोगों से डबल इंजन की सरकार (Double Engine Sarkar) के नाम पर वोट मांगते. लोगों के बीच ताल ठोक कर विस्तार से बताते कि डबल इंजन की सरकार में कर्नाटक में क्या क्या काम हुए? कर्नाटक के लोगों को क्या क्या फायदा मिला?
लगे हाथ ये भी समझा देते कि 2019 में ऑपरेशन लोटस के सफल प्रयोग के बाद से उनकी जिंदगी में क्या क्या बदलाव आया? पांच साल के भीतर कर्नाटक में बनी दो राजनीतिक दलों की सरकारों में लोगों से पूछते कि उनको कैसा फर्क महसूस हुआ?
लेकिन वो तो कर्नाटक जाकर भी सिर्फ यही बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर बनवा दिये. क्या प्रधानमंत्री मोदी चुनाव जीतने के लिए सिर्फ मंदिर ही बनवाते हैं? क्या मोदी सरकार दौरान होने वाले बाकी किसी काम का कोई मोल नहीं है?
आखिर जो काम साल के बारह महीने बताये जाते हैं, वे चुनाव काल में सबसे पीछे क्यों छूट जाते हैं?
अमित शाह ने विकास की बात जरूर की है, लेकिन अयोध्या, काशी, केदारनाथ और बद्रीनाथ पर ही ज्यादा जोर रहता है - क्या मोदी सरकार का फोकस सिर्फ धार्मिक महत्व वाले इलाकों के विकास पर ही है? देश के बाकी इलाके क्या बीजेपी के लिए कोई मायने नहीं रखते?
2023 में प्रधानमंत्री मोदी की कैबिनेट ने देश भर के गरीबों को मुफ्त राशन देने का जो फैसला किया है, क्या वे चुनावों के लिए मायने नहीं रखते? फिर अमित शाह को इधर उधर की बातें करने की जरूरत क्यों पड़ रही है? बूथ जीतने की बात और है.
बूथ जीतने के लिए वो बीजेपी कार्यकर्ताओं को जो भी टारगेट दें, लेकिन लोगों से मोदी सरकार को कर्नाटक की बोम्मई सरकार के कामकाज की बात क्यों नहीं हो रही है?
भला अब कर्नाटक के लोगों को डराने की क्या जरूरत है कि जेडीएस और कांग्रेस सत्ता में आएंगे तो क्या होगा? जैसे 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी और कांग्रेस नेता शोर मचाते रहे कि 'चौकीदार चोर है', लेकिन लोगों ने मोदी के नाम पर आंख मूंद कर बीजेपी को वोट दे दिया. पांच साल पहले के मुकाबले भी ज्यादा दिल खोल कर दे दिया.
जैसे गुजरात में अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस, मोदी सरकार और बीजेपी की खामियां बताते रहे लेकिन लोगों ने बीजेपी को रिकॉर्डतोड़ वोट दे दिया - क्या कर्नाटक के लोगों पर अमित शाह को वैसा भरोसा नहीं रह गया है?
कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार के बाद सत्ता में आयी बीजेपी की येदियुरप्पा और बाद में बोम्मई सरकार के कामकाज से कर्नाटक के लोग खुश हैं, तो वे क्यों बीजेपी को छोड़ कर किसी और को आजमाने की कोशिश करेंगे?
लेकिन सच तो ये है कि अगर लोग बीजेपी की डबल इंजन की सरकार से नाखुश हैं, फिर तो कुछ भी नहीं हो सकता - हिमाचल प्रदेश चुनाव के नतीजे इस बात के ताजातरीन उदाहरण हैं. हिमाचल प्रदेश में भी बीजेपी सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही थी, और आगे कर्नाटक में भी ऐसी ही कोशिश होगी.
रही बात मंदिर के नाम पर वोट मांगने की, तो याद रहे जब 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था, उसके आस-पास ही झारखंड में चुनाव हुए थे - वहां बीजेपी पहले से सत्ता में थी और रघुबर दास मुख्यमंत्री थे.
पूरे चुनाव के दौरान अमित शाह रैली कर के झारखंड के लोगों को समझाते रहे कि बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास से अयोध्या में भव्य मंदिर बनने जा रहा है, लेकिन लोगों ने जरा भी ध्यान नहीं दिया - और जिस जेएमएम और कांग्रेस को बीजेपी की तरफ से भ्रष्ट साबित करने की कोशिश की जा रही थी, लोगों ने बड़े आराम से सूबे की सत्ता सौंप दी.
और झारखंड ही नहीं, उसके ठीक बाद दिल्ली में चुनाव हुए जहां बीजेपी ने राष्ट्रवाद के ऐजेंडा पर काफी जोर दिया था - वहां भी बीजेपी की दाल नहीं गली. अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा जैसे बीजेपी नेताओं ने अपने जोशीले भाषण से माहौल बनाने की खूब कोशिश की, लेकिन खामोशी के साथ कैंपने करते हुए अरविंद केजरीवाल ने फिर से सरकार बना ली.
क्या कर्नाटक को लेकर भी बीजेपी को वैसी ही आशंका होने लगी है? ऐसी आशंकाओं का आधार भी मजबूत है. 2021 के उपचुनाव के नतीजे कर्नाटक में भी हिमाचल प्रदेश जैसे ही आये थे - जब मुख्यमंत्री बोम्मई के इलाके में ही बीजेपी हार गयी थी और कांग्रेस ने सीट हथिया ली थी.
एक बार फिर अमित शाह कर्नाटक में लोगों को ऑप्शन दे रहे हैं कि वे मोदी और बाकियों में से एक को चुन लें. एक है जो मंदिर बनवाता है और दूसरे वे लोग हैं जो टीपू सुल्तान का महिमा मंडन करते हैं - क्या अमित शाह के पास लोगों को बताने के लिए वास्तव में मोदी सरकार के काम नहीं हैं? या वे काम चुनाव जीतने के लिए कम पड़ जा रहे हैं - अमित शाह को ये नहीं भूलना चाहिये कि यूपी और गुजरात बीजेपी के लिए चुनावी जीत का मॉडल नहीं, अपवाद है.
दूध पर कर्नाटक और गुजरात!
रिपोर्ट के मुताबिक अमित शाह कर्नाटक के मांड्या में एक बड़ी डेयरी का उद्घाटन करने गये थे, जहां केंद्रीय मंत्री की एक सलाह पर जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई है. सोशल मीडिया पर लोग अमित शाह की सलाह को बीजेपी के नेक इरादे के तौर पर देखने लगे हैं.
अमित शाह ने सुझाव दिया है कि अगर अमूल और नंदिनी मिलकर काम करें तो तीन साल में हर गांव में डेयरियां होंगी - और ऐसा होने पर किसानों को भी फायदा होगा. यहां किसान से आशय निश्चित तौर पर दूध उत्पादन में लगे लोगों से ही है. नंदिनी जहां कर्नाटक मे डेयरी का बड़ा ब्रांड है, गुजरात में अमूल का वैसा ही रुतबा है.
केंद्रीय मंत्री ने अपनी तरफ से कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को भी अमूल की तरफ से पूरा सहयोग मिलने का भरोसा दिलाने की कोशिश की, लेकिन सोशल मीडिया पर लोगों के रिएक्शन से मालूम होता है कि वे बीजेपी नेता की सलाहियत में नंदिनी को हड़पने की मंशा भांपने लगे हैं - और सोशल मीडिया पर इसे लेकर कैंपेन शुरू हो गया है.
मसलन, एक ट्विटर यूजर का कहना है - 'पहले हिंदी थोपी... फिर मैसूरु बैंक का विलय कर लिया... और अब वे नंदिनी मिल्क के लिए आये हैं.' कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो नंदिनी को महज एक डेयरी नहीं बल्कि कन्नड़ लोगों के भावनाओं से जुड़ा हुआ बता रहे हैं.
Nandini isn’t just a dairy ?……. It’s an emotion for we Kannadigas #SaveNandini pic.twitter.com/NRmpONFKC6
— Arjun (@arjundsage1) December 31, 2022
कर्नाटक से पहले तो त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं, लेकिन कर्नाटक में अभी से चुनावी दूध उबाल लेने लगा है. कर्नाटक में जो कुछ चल रहा है, और जो कुछ भी आने वाले दिनों में होने वाला है - ये तो कर्नाटक के लोग ही हैं जिनको दूध का दूध और पानी का पानी करना है.
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