Amnesty India: मानवाधिकार की आड़ में भारत सरकार के विरुद्ध क्या है प्लान?
एमनेस्टी इंडिया (Amnesty India) नामक विदेशी संस्था ने भारत में अपना काम रोक दिया है और भारत सरकार (Government Of India) पर गंभीर आरोप लगाए हैं. सवाल ये है कि इन बेबुनियाद आरोपों को आधार बनाकर भारत सरकार को घेरना किस हद तक जायज है. कोई भी राय तब बनाई जाए जब हम दोनों पक्षों की बात सुनें.
-
Total Shares
एमनेस्टी इंडिया (Amnesty India) की घटना जानने से पहले इस संस्था के बारे में जान लेना ज़रूरी है. दरअसल यह एक गैर सरकारी संस्था है जिसकी स्थापना सन 1961 में हुयी थी. इसकी स्थापना पीटर बेन्सन ने लंदन में की थी. इनका मकसद था उन लोगों को इंसाफ (Justice) दिलाना जो बिना किसी गलती के सज़ा भुगत रहे हों. उन लोगों के साथ राजनीतिक, धार्मिक या फिर किसी अन्य उद्देश्यों से अत्याचार हो रहा हो. इस संस्था का लक्ष्य है कि एक ऐसी दुनिया का निर्माण हो जहां प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों के साथ जीवित रह सके. मूलतः यह संगठन इसी मानवाधिकार (Human Rights) के कार्य के लिए जाना जाता है. वर्ष 1977 में इस संस्था को इसी कार्य के चलते नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Prize) से भी नवाज़ा गया है और वर्ष 1978 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार पुरस्कार भी इसी संस्था को दिया गया था. इसी संस्था की एक ब्रांच भारत में भी है जो एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के नाम से जानी जाती है. इसका पंजीकृत कार्यालय कर्नाटक राज्य के बैंगलोर में स्थित है.
एमनेस्टी इंडिया ने भारत में अपना काम रोकते हुए देश की सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं
यह संस्था जितना अपने कार्य के लिए जानी जाती है उतना ही इसका नाता एक खास तबके के लिए भी दिखता है. इस संस्था पर कई बार आरोप लगे हैं कि यह पश्चिमी देशों के हित में कार्य करती है. भारत में 25 अक्टूबर को इस संस्था के निदेशक आकार पटेल के घर ईडी ने छापा मारा था जबसे ही यह संस्था चर्चा में है. हालिया दिल्ली दंगे के बाद इस संस्था ने दिल्ली पुलिस पर सवालिया निशान खड़े किए थे और आरोप लगाया था कि पुलिस ने अपने कर्तव्य का सही से पालन ही नहीं किया.
अब चूंकि इस संस्था ने भारत में अपना कार्य बंद कर दिया है और सरकार पर आरोप लगाया है कि वह मानवाधिकार पर उठाने जाने वाली आवाज़ को दबाना चाहती है इसलिए भारत सरकार उनको काम करने में बाधा डाल रही है. हालांकि भारत सरकार ने अभी इस पर कोई बयान नहीं दिया है लेकिन सरकार ने पहले ही इस संस्था के विदेशी चंदे पर सवाल खड़े किए थे और उसी की जांच कर रही थी जिसपर अब सरकारी एजेंसियों ने एक्शन ले लिया है जिसकी वजह से यह संस्था तिलमिला गई है और कामकाज को रोक दिया है.
The continuing crackdown on @AIIndia over the last two years and the complete freezing of bank accounts is not accidental. This is not the end of Amnesty India's commitment to human rights, we will not be silenced by the attacks of the government. pic.twitter.com/pgZprkfIfe
— Amnesty International (@amnesty) September 29, 2020
जैसे ही इस संस्था ने अपने कामकाज बंद करने की खबर दी तो भारत सरकार के खिलाफ एक क्रांति शुरू हो गई हालांकि इस मामले में संस्था कितनी इमानदार थी इसपर किसी ने सोचना बेहतर नहीं समझा. भारत सरकार ने विदेशी चंदे पर साल दर साल पहरा ही लगाया है.
ऐसी कई घटनाएं हुयी हैं जहां विदेशी चंदे का भारत के खिलाफ ही इस्तेमाल हुआ है. भारत सरकार विदेशी चंदे के नियम को इसी लिए सख्त करती जा रही है. इस संस्था के पास भी लगभग 36 करोड़ रूपये के विदेशी चंदे को लेकर नियम पूरा न करने का आरोप है जिसके चलते सीबीआई और ईडी लगभग दो साल से जांच कर रही थी.
अब इस संस्था ने आरोप लगाए हैं कि भारत सरकार ने उनके बैंक एकांउट को फ्रीज़ कर दिया है जिसके चलते अब कर्मचारियों को सैलरी देने के पैसे नहीं है इसलिए यह संस्था भारत में अपने काम को रोक रही है. अब इसी मुद्दे को पकड़कर सोशल मीडिया पर एक गंध फैल चुकी है जिसमें भारत सरकार को घेरा जा रहा है.
जबकि पहले तो हमें हमारी सरकारी एजेंसियों पर भरोसा करना चाहिए जो बारीकी से जांच करते हैं ताकि किसी भी विदेशी चंदे का इस्तेमाल कहां और किस रूप में हो रहा है इस बात की जानकारी जुटाई जा सके. इस पूरे मामले पर जल्दबाजी सही नहीं है पहले दोनों पक्षों का बयान सुन लेना चाहिए तब ही कोई राय बनानी चाहिए लेकिन इस संस्था से जुड़े मामले पर एकतरफा बयान सुनकर भारत सरकार को दोषी ठहराया जाना किसी भी सूरत में सही नहीं है.
विरोध करने वालों को कम से कम इस मामले में तो एकता बनानी चाहिए जब किसी इंटरनेशनल संस्था या फिर विदेशी फंड का मामला हो.
ये भी पढ़ें-
किसानों का विरोध हल्के में लेने की भूल कर रही है मोदी सरकार
देवेंद्र फडणवीस और संजय राउत की गुपचुप मुलाकात के मायने क्या हैं?
आपकी राय