New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 28 सितम्बर, 2017 03:00 PM
राहुल लाल
राहुल लाल
  @rahul.lal.3110
  • Total Shares

जर्मनी यूरोपीय यूनियन अर्थव्यवस्था का मुख्य इंजन है. तकनीकी क्षमताओं से लैस यह एक ऐसा देश है, जो एजेंला मर्केल के नेतृत्व में यूरोपीय एकीकरण और वैश्वीकरण का समर्थन भी करती है. ताजा चुनावों में जर्मनी में एजेंला मर्केल लगातार चौथी बार जीत के बाद एक बार फिर कमान संभालने के लिए तैयार हैं. अब जब मतगणना खत्म हो चुकी है, तो चांसलर मर्केल की क्रिश्चियन डेमेक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) पार्टी के लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो गया है कि इन चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनने की खुशी मनाए या जर्मन राजनीति में अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन पर पार्टी चिंतन करे. जो समीकरण दिखाई दे रहे हैं, उनमें सत्ता के शीर्ष पर काबिज होने के लिए मर्केल को उन दलों के साथ गठजोड़ करना पड़ेगा जिससे उनकी विचारधारा अलग है.

सीडीयू (क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन) तथा सीएसयू (क्रिश्चियन सोशल यूनियन) के गठबंधन को बेशक इन चुनावों में 32.9 फीसदी मत मिले हैं. लेकिन यह 1949 में पार्टी के गठन के बाद से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. ये नतीजे न सिर्फ मर्केल को प्रभावित करेंगे बल्कि इसका असर फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुअल माक्रो के उस विचार पर भी पड़ेगा जिसका मकसद यूरोप के मौजूदा स्वरुप को बदलना है. सीडीयू-सीएसयू गठबंधन को पिछले बार की तुलना में 8.5 फीसदी कम मत मिले हैं.

एंजेला मर्केल, जर्मनी, जर्मन चांसलरएजेंला मर्केलचुनाव में आप्रवासियों का विरोध करने वाली अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) को 13.1 प्रतिशत वोट मिले हैं. इस दल ने तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सभी को चौंका दिया. नाजियों से गठजोड़ के लिए कुख्यात रहे दल एएफडी के प्रदर्शन से सारे नेता आश्चर्यचकित हैं. उसके तीसरे स्थान पर आने से यूरोप के माथे पर चिंता की लकीरे खिंच गई हैं. एएफडी को देश के पूर्वी प्रांतों में ज्यादा सफलता मिली. पूर्वी प्रांत से समर्थन जुटाने के अतिरिक्त उसने उन लोगों की भावनाओं को भी भड़काया जो शरणार्थियों की बाबत मर्केल की नीति और सत्ता -प्रतिष्ठान से नराज थे. जर्मन संसद में पहुंचने के लिए 5 फीसदी वोट की आवश्यकता होती है. पिछली बार एएफडी को 4.7 प्रतिशत वोट ही मिले थे. इसके कारण वह संसद में प्रवेश नहीं कर पाई थी. यह जर्मन संसद बुंदेशटैग में मात्र 0.3 प्रतिशत से चूक गई थी. लेकिन इस बार 13.1 प्रतिशत मतों के कारण वह संसद में धमाकेदार रूप से प्रवेश कर रही है. अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी के एलेक्जेंडर गॉलैंड ने कहा है कि हम हमारा देश वापस लेंगे. हालांकि अन्य दलों ने एएफडी के साथ मिलकर काम करने की संभावनाओं से इंकार दिया है. एएफडी नेताओं ने मर्केल को देशद्रोही बताया था. मर्केल ने दस लाख शर्णार्थियों को प्रवेश की इजाजत दी थी. इसके बाद से एएफडी नेता मर्केल पर भड़के हुए हैं.

जमैका गठबंधन की संभावनाएं

मुख्य विपक्षी दल सोशल डेमोक्रेटस को महज 20.8 प्रतिशत वोट मिले हैं. जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद से सबसे कम हैं. मर्केल ने गठजोड़ के लिए फ्री डेमोक्रेटस (एफडीपी), ग्रीन्स के साथ एसपीडी के साथ वार्ता प्रारंभ कर दी है. हालांकि एसपीडी नेता मार्टिन शुल्ज ने पहले कहा था कि उनकी पार्टी लोकतंत्र की रक्षा के लिए विपक्ष में बैठना पसंद करेगी. ऐसे में मर्केल के एफडीपी और ग्रीन्स के साथ संभावित गठबंधन को जमैका कहा जा रहा है. जर्मनी में पार्टियों को रंगों से पहचाने जाने के कारण सीडीयू के काले, एफडीपी के पीले और ग्रीन के हरे रंग को जमैका कहा जाता है क्योंकि जमैका के झंडे का रंग यही है. जर्मनी के इतिहास में इन पार्टियों का ये पहला गठबंधन होगा, क्योंकि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से जर्मनी में जितने भी चुनाव हुए, उनमें सीडीयू और एसपीडी यही दोनों पार्टियां छाई हुई है. लेकिन ताजा चुनावों में करीब 46 प्रतिशत लोगों ने अन्य दलों को वोट दिया. निवेशकों में जमैका गठबंधन को लेकर चिंता है. उनका मानना है कि बेमेल दोस्ती मर्केल को कमजोर करने जा रही है, ये टिकाऊ भी नहीं होने वाली. उनका मानना है कि यूरोपीय संघ से अलगाव को लेकर ब्रिटेन से चल रही बातचीत मर्केल के कमजोर होने से प्रभावित होने वाली है, क्योंकि उन्हें पहले खुद को स्थायित्व देना है.

मर्केल को समक्ष तीखे विपक्ष से भी चुनौती मिलेगी

मर्केल के सामने न सिर्फ गठबंधन चलाने की चुनौती होगी बल्कि इस बार उनका सामना तीखे विपक्ष से भी होगा. जो हर कदम पर मर्केल से तीखे सवाल करेगा. पिछले 12 वर्षों में एजेंला मर्केल के लिए विपक्ष कभी भी इतना बड़ा मुद्दा नहीं था. इस बार विपक्ष में महज एक विपक्षी दल नहीं अपितु एक उग्र विचार है. संसद में आने से पहले ही एएफडी पार्टी की नेता एलिस वाइडल ने मर्केल को संसदीय जांच की धमकी दे दी है. किसी भी धुर दक्षिणपंथी पार्टी के लिए बुंदेशटैग (जर्मन संसद का लोकप्रिय सदन) में प्रवेश करना द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहला मौका होगा, इसलिए एएफडी का जोश भी अपने चरम पर होगा.

यूरोपीय सुधारों के लिए चुनौती

फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने जर्मनी के साथ मिलकर यूरोप का पुनर्गठन करने का वायदा किया था ताकि न सिर्फ आर्थिक संकट से उबरा जा सके बल्कि यूरोपीय संघ को ब्रिटेन से बाहर हो जाने के बाद जो नुकसान हुआ है, उसकी भी भरपाई की जा सके. अपने एक भाषण में माक्रों ने इन विचारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने एकल मुद्रा ब्लॉक के लिए काम करना शुरु कर दिया है. इस विचार को अब तक मर्केल का सहयोग भी मिलता रहा है. लेकिन नई सरकार की संभावित पार्टी एफडीपी के साथ और विपक्षी दल एएफडी की मौजूदगी में इस तरह का यूरोपीय एकीकरण बेहद ही चुनौती भरा साबित होगा.

अपने चुनाव अभियान में उदारवादी एफडीपी ने यूरोप के ईएसएम बेलआउट फंड को खत्म करने के साथ उन संधियों की वकालत की थी, जो यूरोपीय देशों को यूरोपीय संघ छोड़ने की इजाजत देते हैं. यूरोप में एफडीपी भी एएफडी से अलग नहीं है. अगर एफडीपी के विचारों पर अमल किया जाए तो यूरोपीय संकट खड़ा हो जाएगा. गठबंधन में सिर्फ एफडीपी हीएजेंला मर्केल की मुश्किल नहीं होगी बल्कि सीडीयू की सहोदर पार्टी सीएसयू भी नए गठबंधन रच-बस पाएगी कि नहीं ये भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है. एएफडी का शानदार प्रदर्शन बवेरिया में सीएसयू के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. अगले साल राज्य में होने वाले चुनाव में इससे सीधे सीएसयू को सीधे नुकसान पहुंचा सकते हैं.

अपने नए कार्यकाल में चांसलर मर्केल और सीडीयू के रूढ़िवादी खेमे के लिए उन मतदाताओं को अपनी ओर वापस लाना सबसे बड़ी चुनौती होगी, जिन्होंने इन चुनावों में एएफडी पर भरोसा जताया है. इससे साफ है कि भविष्य में भी शरणार्थी नीति में बदलाव के लिएएजेंला मर्केल पर भारी दबाव होगा.

एंजेला मर्केल, जर्मनी, जर्मन चांसलर, नरेंद्र मोदीनरेंद्र मोदी और एजेंला मर्केलजर्मन चुनाव का भारत के लिए महत्व

भारत-जर्मनी के बीच पिछले वर्ष 1.34 लाख करोड़ का व्यापार हुआ था. जर्मनी, ब्राजील, भारत और जापान जी-4 समूह बनाकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में संयुक्त रुप से सुधार की मांग करते हैं. सौर ऊर्जा और ग्रीन एनर्जी के लिएएजेंला मर्केल ने भारत को 7700 करोड़ रुपये की सहायता देने का वादा किया है. इससे भारत-जर्मनी सबंधों को मर्केल के पुन: निर्वाचित होने के संदर्भ में भी समझा जा सकता है. जर्मनी एक राजनीतिक भूकंप से बच गया है, जिसका न केवल भारत-जर्मन संबंध बल्कि भारत-यूरोप के संबंधों पर भी सकारात्मक असर होगा.

एजेंला मर्केल के वैश्वीकरण और एकीकृत यूरोप की अवधारणा से भारत के हित भी जुड़े हैं. कमजोर यूरोप भारतीय हितों के भी अनुरूप नहीं था. अगर दक्षिणपंथ एजेंला मर्केल को भी हरा देता तो यूरोपीय यूनियन को गंभीर धक्का लगता, जो एकीकृत मजबूत यूरोप के लिए खतरनाक होता. यूरोपीय यूनियन भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है. और भारत के कुल निर्यात में उसका हिस्सा 24% से भी अधिक है. यूरोपीय यूनियन भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का भी सबसे बड़ा स्रोत है.

इसके अतिरिक्त जर्मनी एनएसजी तथा निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में भारत की सदस्यता का स्वागत करता है. मर्केल एनएसजी के अतिरिक्त आस्ट्रेलिया ग्रुप तथा वासेनार व्यवस्था में भारत का स्वागत करती हैं. जर्मनी और भारत वर्ष 2000 से रणनीतिक भागीदार हैं. भारत दुनिया के उन चंद देशों में है, जिसके साथ जर्मनी अंतर सरकारी परामर्श बैठक करता है. इस तरह मर्केल के नेतृत्व में जर्मनी और भारत के संबंध काफी गहरे हैं. ऐसे मेंएजेंला मर्केल का पुन: निर्वाचित होना भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है.

इस चुनाव परिणाम से मर्केल के सामने कई कठिन चुनौतियां उपस्थित हुई हैं. जर्मनी की आयरन लेडी एंजला मर्केल अपने बूते पर बदलाव लाने का माद्दा रखती हैं. एंजेला के व्यक्तित्व को करीब से समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि फोब्स पत्रिका ने उन्हें दो बार विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली शख्स का तमगा दिया है. यही कारण है कि जनाधार घटने पर भी एंजेला का जादू फिए एक बार चला है. एंजेला मार्केल राजनीति में आने से पहले वैज्ञानिक थीं. इसलिए कहा जा रहा है कि वैज्ञानिक होने के इसी गुण की वजह से वह हर मुद्दे की तह जाकर समाधान खोज ही लेती है. इस तरह मर्केल नवीन राजनीतिक स्थिति का भी समाधान भी अवश्य खोज लेंगी.

ये भी पढ़ें:-

मोदी जी पाकिस्तान को अकेले करने के चक्कर खुद ना अकेले हो जाएं

बर्लिन के मुसलमानों ने लिबरल मस्जिद बनाकर खतरा मोल ले लिया है

मोदी का मिशन यूरोप

लेखक

राहुल लाल राहुल लाल @rahul.lal.3110

लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय