कर्नाटक के शक्ति-परीक्षण में एंग्लो इंडियन समुदाय ने अपनी ताकत दिखा दी है
सरकारों को ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि सिर्फ उन व्यक्तियों को ही मनोनीत किया जाए जो वास्तव में एंग्लो-इंडियन समुदाय के कल्याण के लिए काम कर सकते हैं.
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क्या अल्पसंख्यक मायने रखते हैं? हां. बिल्कुल रखते हैं. आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि कुछ एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों ने अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा के मामले में बहुत अच्छा काम किया है और हमारे अधिकारों को बचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
ये एक बहुत बड़ी जीत है. लोकतंत्र के लिए भी और हमारे लिए भी.
शुक्रवार की सुबह, हमने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. याचिक में हमने आग्रह किया कि कर्नाटक के राज्यपाल को शक्ति परीक्षण खत्म होने तक किसी भी एंग्लो-इंडियन विधायक को नामित नहीं करना चाहिए. हमारी सीट राजनीतिक नहीं होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के गवर्नर को शक्ति परीक्षण खत्म होने के पहले किसी भी एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्य को नामांकित करने पर रोक लगा दिया है.
Takeaways from #KarnatakaElections hearing:
1 Floor test tomorrow at 4 pm
2 Protem Speaker will chose mode of floor test. Turns down AG's request for secret ballot
3 BSY not to take major policy calls
4 DGP to ensure safety
5 No Anglo Indian nomination @the_hindu @abaruah64
— Krishnadas Rajagopal (@kdrajagopal) May 18, 2018
हम देश के किसी भी राज्य में कभी भी किसी भी राजनीतिक दल द्वारा एक मोहरे के रूप में इस्तेमाल नहीं होना चाहते.
1876 के बाद से अखिल भारतीय एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन देश के एंग्लो इंडियन समुदाय का सबसे पुराना और सबसे बड़ा संगठन है. देश में इसकी 62 शाखाएं फैली हुई हैं. कर्नाटक में हमारी कई सक्रिय शाखाएं हैं. बैंगलोर में दो शाखाएं, मैसूर, हुबली और कोलार गोल्ड फील्ड में एक एक. मैं उसका निर्वाचित प्रेजिडेंट-इन-चीफ हूं. 16 मई को मैंने कर्नाटक के राज्यपाल को अपनी तरफ से पत्र लिखा था.
मैंने राज्यपाल से विनती की थी कि वो हमारे संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें. और किसी भी राजनीतिक दल या समूह को इस नामांकन का उपयोग अपने लाभ या किसी भी तरह के राजनीतिक लाभ लेने की अनुमति न दें.
भारत के संविधान के अनुच्छेद 333 में राज्य के राज्यपाल को एंग्लो-इंडियन समुदाय के एक सदस्य को विधानसभा में नामित करने का अधिकार दिया गया है. लेकिन अभी राज्य में जो स्थिति उत्पन्न हुई है, वैसे में अगर किसी व्यक्ति को "शक्ति परीक्षण" या "विश्वास मत" के पहले नामित किया जाता, तो उसका उपयोग किसी भी राजनीतिक दल के पक्ष में वोट करने के लिए किया जाता. जो अनैतिक और असंवैधानिक होता. इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों को भी काफी नुकसान पहुंचता.
एंग्लो इंडियन समुदाय को अपनी साख बचानी होगी
एंग्लो-इंडियन समुदाय सभी राजनीतिक दलों के साथ समान रूप से दोस्ताना व्यवहार रखता है और गैर पक्षपातपूर्ण भी है. हमारी किसी भी व्यक्ति या राजनीतिक दल के प्रति कोई निष्ठा नहीं है. लेकिन अगर कोई राजनीतिक गतिविधि हमारा राजनीतिकरण करने का सोचती है, या हमारी जीवनशैली को गलत तरीके से प्रभावित करती है तो हमारे संस्थान और एत समुदाय के तौर पर हम निश्चित रूप से अपने उन अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े होंगे.
ये किसी भी पार्टी के बारे में नहीं है, बल्कि ये सभी राज्यों के संदर्भ में हमारा विचार है. अगर ऐसा किसी दूसरे राज्य में भी होता तो भी हमारी प्रतिक्रिया यही होती. फिर चाहे इसमें कोई पार्टी शामिल हो. मैं हर किसी को कहता हूं कि चाहे कोई भी राजनीतिक पार्टी हो या फिर कोई भी संगठन हो हमें किसी को भी अपनी सीट का इस्तेमाल नंबर गेम साधने या फिर उनके राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग करने नहीं देना चाहिए.
हैरानी की बात तो ये है कि मीडिया के कुछ लोगों ने भी झूठी खबरों को भी फैला दिया कि विनीशा नीरो को कर्नाटक राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया गया है. ये पूरी तरह से गलत खबर है. हमें बिल्कुल अंदाजा नहीं कि किसे नामित किया गया है. अगर किसी को किया भी गया है तो.
आज असेंबली और लोकसभा में नामित एंग्लो-इंडियन विधायकों और सांसदों की भूमिका के बारे में समुदाय को याद दिलाने का एक अच्छा मौका है. यह एकमात्र ऐसा समुदाय है जिसके पास अपने स्वयं के प्रतिनिधि (दो) लोकसभा और विधान सभाओं में नामांकित होते हैं. जिस इंसान ने इसे संभव बनाया था वो भारतीय संविधान के निर्माताओं में से एक था- फ्रैंक एंथनी. फ्रैंक हमारे एसोसिएशन के पूर्व प्रेजिडेंट-इन-चीफ और एक सच्चे राष्ट्रवादी थे.
अफसोस की बात ये है कि अतीत में कई उदाहरण हुए हैं जब नामित विधायक / सांसद ने हमारे समुदाय को धोखा दिया है. उसको नीचा दिखाया है. सरकारों को ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि सिर्फ उन व्यक्तियों को ही मनोनीत किया जाए जो वास्तव में एंग्लो-इंडियन समुदाय के कल्याण के लिए काम कर सकते हैं. हमारे मुद्दों को संबोधित कर सकते हैं और हमारे अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं.
कौन हैं एंग्लो-इंडियन :
भारतीय संविधान में एंग्लो-इंडियन समुदाय की खासतौर पर व्याख्या की गई है : 'वह व्यक्ति जिसके पिता या पीढ़ी में कोई पुरुष यूरोपीय मूल का रहा हो, लेकिन वह पूरी तरह भारत का मूल निवासी बन गया हो या यहीं जन्मा हो. और स्थाई रूप से भारत में रह रहा हो.'
दस विधानसभाओं में होते हैं नामित :
फिलहाल, भारत के दस राज्यों में एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्य को विधानसभा के लिए नामित किया जाता है. और ये हैं : पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, झारखंड और महाराष्ट्र.
(DailyO की संघमित्रा बरुआ से बातचीत में उन्होंने जो बताया)
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