New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 21 जनवरी, 2021 03:25 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

अन्ना हजारे (Anna Hazare) को लेकर खबर है कि वो अनशन करने पर तुले हुए हैं - और खबर ये भी है कि केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी मोदी सरकार (Modi Sarkar) की मदद में अन्ना हजारे को अनशन न करने के लिए मनाने में शिद्दत से लगी हुई है.

गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे ने अपने प्रस्तावित अनशन को आखिरी अनशन बताया है - और उनकी जिद को देखते हुए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के भरोसेमंद बीजेपी नेता गिरीश महाजन की जगह बीजेपी के कई नेताओं को ये काम सौंपा जा चुका है - जिनका रालेगण सिद्धि और आसपास के इलाकों में दबदबा समझा गया है और ऐसे कई नेता अन्ना हजारे से मुलाकात भी कर चुके हैं.

अन्ना हजारे का कहना है कि वो जिंदगी में कभी झूठ नहीं बोले हैं - और हमेशा ही जनता के लिए लड़ते रहे, लेकिन एक बार वो किसानों के लिए भी अनशन करना चाहते हैं. आखिरी बार.

अन्ना हजारे दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन करना चाहते हैं, लेकिन अभी तक उनको अनुमति नहीं मिली है - अगर रामलीला मैदान नहीं तो किसी और जगह की भी अनुमति नहीं मिली है - फिर भी अन्ना हजारे अपनी बात पर अब तक कायम हैं - कहीं नहीं तो वो अपने गांव रालेगण सिद्धि में ही आंदोलन करने को तैयार बैठे हैं और तारीख भी पक्की कर रखी है - 30 जनवरी से. 30 जनवरी को शहीद दिवस मनाया जाता है, जिस दिन महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी.

30 जनवरी से अगर अन्ना आंदोलन शुरू करते हैं तो एक बार फिर से हिंदुत्व और देशभक्ति पर चर्चा के साथ साथ नाथूराम गोडसे को लेकर बयानबाजी और फिर बहस होगी - लगता है यही वजह है कि मोदी सरकार राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के आक्रामक रूख की जगह अन्ना हजारे के शांतिपूर्ण आंदोलन से ज्यादा भयाक्रांत है.

अन्ना के अनशन से इतना डर क्यों लगता है?

अपनी तरफ से अन्ना हजारे ने केंद्र सरकार को पूरी मोहलत दे रखी थी. ऐसा भी नहीं कि सीधे अनशन की ही घोषणा कर दी. अन्ना हजारे ने कहा था कि अगर केंद्र सरकार ने किसानों के मसले पर कोई सर्वमान्य फैसला नहीं लिया तो वो जनवरी के आखिर में आंदोलन शुरू करेंगे.

अन्ना हजारे की शिकायत है कि वो सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर अपनी बात और जवाब न मिलने पर शिकायत भी पत्र के जरिये ही दर्ज करा चुके हैं - लेकिन कोई जवाब नहीं मिला है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अन्ना हजारे ने पत्र में लिखा है - 'मैंने जीवन में कभी झूठ न हीं बोला, इसीलिए सरकार के टाइमपास रवैये से मन को पीड़ा पहुंची है.'

अन्ना हजारे का इल्जाम है, 'किसानों के मुद्दे पर सरकार बार बार मुझसे झूठ बोली है... सरकार के आश्वासन न पूरा किये जाने की वजह से ही किसानों की आत्महत्याएं जारी हैं - मैंने अब तक बिना किसी पार्टी का विचार किए जनता के हित में आंदोलन किया है और अब किसानों के लिए मैं अपने जीवन की बाजी लगाने को तैयार हूं.'

हालांकि, अन्ना हजारे ने सरकार के सामने जो डिमांड रखी है वो दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों से बिलकुल अलग है. आंदोलनकारी किसान केंद्र सरकार से नये बनाये गये तीनों कृषि कानून वापस लेने की मांग कर रहे हैं, जबकि अन्ना हजारे चाहते हैं कि कृषि मूल्य आयोग को स्वायत्तता दी जाये और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू कर उनके अनुसार कृषि उपज की कीमतें तय की जायें.

anna hazare, narendra modi, rahul gandhiअन्ना हजारे हों या राहुल गांधी, किसानों का आंदोलन अगर कोई खत्म करा सकता है तो वो हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही!

अन्ना हजारे के अपने आंदोलन की घोषणा से टस न मस न होने के पीछे सबसे बड़ी वजह ये है कि अब तक बीजेपी के जितने भी नेता उनसे मिले, किसी के पास कोई ठोस आश्वासन नहीं रहा जो अपनी बात पर विचार करने के लिए उनको राजी कर सके.

बीजेपी की तरफ से अब तक बीजेपी सांसद सुजय विखे पाटिल, राधाकृष्ण विखे पाटिल, पूर्व मंत्री गिरीश महाजन और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरीभाऊ बागडे रालेगण सिद्धि पहुंच कर मुलाकात कर चुके हैं. बताते हैं कि देवेंद्र फडणवीस खुद भी अन्ना हजारे के लगातार संपर्क में हैं, लेकिन उनके पास भी अन्ना हजारे को आश्वस्त करने के लिए कोई ठोस पहल नहीं है.

2011 में अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ रामलीला मैदान में ही काफी बड़ा आंदोलन किया था. तब केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए 2 की मनमोहन सिंह सरकार हुआ करती थी. अन्ना हजारे के तब के आंदोलन का आर्किटेक्ट अरविंद केजरीवाल को माना जाता है जो उसके बाद राजनीति में चले आये और अन्ना हजारे ने उनसे दूरी बना ली. 83 साल की उम्र में अन्ना हजारे एक बार फिर अनशन करने का दृढ़ निश्चय कर चुके हैं - और यही कारण है कि सरकारी अपना परेशान है.

एक तरफ सरकार अन्ना हजारे के अनशन और आंदोलन की घोषणा से इस कदर परेशान है - और दूसरी तरफ राहुल गांधी कितने भी आक्रामक क्यों न हो जायें, लगता है जैसे सरकार को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा. उलटे बीजेपी नेता उनसे ही सवाल पूछना शुरू कर दे रहे हैं.

विदेश दौरे से लौटने के बाद राहुल गांधी को काफी सक्रिय देखा जा रहा है - चेन्नई दौरे और विदेश मामलों की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में सवाल खड़े करने के बाद राहुल गांधी मीडिया से मुखातिब हुए - और जोर देकर पूछा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कब प्रेस कांफ्रेंस करेंगे?

कांग्रेस पार्टी और खुद को किसानों के सबसे बड़े हमदर्द होने का दावा करते हुए, राहुल गांधी ने चेन्नई दौरे वाले अंदाज में ही दावा किया कि मोदी सरकार को तो तीनों ही कानूनों को वापस लेना ही होगा. राहुल गांधी ने आशंका जतायी कि केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों से देश की खेती-बारी पर तीन-चार पूंजीपतियों का कब्जा हो जाएगा.

राहुल गांधी ने किसान आंदोलन के बीच कृषि कानूनों और मोदी सरकार के किसानों के प्रति रवैये को लेकर एक बुकलेट भी जारी की है - खेती का खून. किसानों के मामलों तो राहुल गांधी की गहरी दिलचस्पी नजर आती ही है, मोदी सरकार के विरोध का अंदाज भी मिलता जुलता ही रहा है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले खाट पर चर्चा कार्यक्रम के बाद जब राहुल गांधी दिल्ली लौटे तो सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर हमला बोला था और उसे भी नाम दिया गया था - खून की दलाली.

राहुल गांधी को जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 1947 से अब तक हुए सारे खून-खराबे गिना डाले, हालांकि, 2002 के गुजरात दंगे का कोई जिक्र नहीं किया. प्रकाश जावड़ेकर का कहना रहा, 'आप खेती का खून की बात करते हैं, लेकिन बंटवारे के समय हुए खून-खराबे का क्या? तीन हजार सिखों को 1984 में दिल्ली में जिंदा जला दिया गया... क्या वो खून-खराबा नहीं था? कांग्रेस के राज में लाखों किसानों ने जान दी - क्या उनके शरीर में खून नहीं था?'

हाल ही में राहुल गांधी पर अकाली नेता हरसिमरत कौर बादल ने भी तकरीबन इसी अंदाज में हमला बोला था और सिख दंगो के जिक्र के साथ साथ इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक के सिखों को लेकर धारणा का भी जिक्र किया था. हरसिमरत कौर ने कहा था कि इंदिरा गांधी सिखों को खालिस्तानी समझती थीं और राजीव गांधी ने सिखों का नरसंहार कराया - और राहुल गांधी घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं.

राहुल गांधी ने एक और बात कही कि वो किसी से नहीं डरते और वो मुझे गोली मार सकते हैं, लेकिन छू नहीं सकते. साथ ही राहुल गांधी ने देश के नौजवानों से किसानों के हक के लिए खड़े होने की भी अपील की. ध्यान रहे, सोनिया गांधी ने भी रामलीला मैदान की रैली से मोदी सरकार के खिलाफ घरों से निकल कर आंदोलन में कूद पड़ने की अपील की थी. तब कांग्रेस सीएए कानून का विरोध कर रही थी.

बातचीत बार बार बेनतीजा क्यों?

सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों के बीच 10वीं बातचीत का हाल भी बाकियों जैसा ही नजर आ रहा है. केंद्रीय मंत्रियों के साथ किसान यूनियनों के 40 नेताओं ने बातचीत में हिस्सा लिया है.

किसानों का कहना है कि बैठक का वेन्यू भी वही है और मंत्री भी वे ही हैं - और बातें भी पुरानी ही हो रही हैं. केंद्रीय मंत्री कह रहे हैं कि किसान जो भी संशोधन चाहते हैं सरकार संशोधन करने के लिए तैयार है, लेकिन किसानों की तरफ से बैठक में फिर से साफ-साफ बोल दिया गया कि वे तीनों बिलों की वापसी चाहते हैं - उससे कम किसी को मंजूर नहीं है.

किसानों का आरोप है कि सरकार NIA का इस्तेमाल कर किसान आंदोलन से जुड़े लोगों को टारगेट कर रही है, जिस पर सरकार की तरह से कहा गया है कि अगर कोई बेकसूर है तो लिस्ट मुहैया करायी जाये - किसी भी निर्दोष को परेशान नहीं होने दिया जाएगा.

किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी दखल देने से इंकार कर दिया है, ये कहते हुए कि दिल्ली पुलिस इस पर फैसले के लिए पूरी तरह सक्षम है - अदालत कोई आदेश पारित नहीं करेगी. आठ किसान यूनियनों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश सीनियर वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि

किसान केवल बाहरी रिंग रोड पर शांतिपूर्ण तरीके से गणतंत्र दिवस मनाना चाहते हैं - शांतिभंग करने का उनका कोई इरादा कतई नहीं है.

हाल ही में पंजाब सरकार के तीन सीनियर अफसरों के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में किसानों के आंदोलन के कई पहलू सामने आये थे. रिपोर्ट से मालूम हुआ कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद अपने भरोसेमंद अफसरों को उदारवादी किसान नेताओं से बातचीत के लिए सिंघु बॉर्डर भेजा था. तमाम कोशिशों के बावजूद वे अफसर किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं तलाश पाये जो उनकी बात तो सुने और समझे ही, वो भी इतना सक्षम हो कि प्रदर्शन कर रहे किसानों को अपनी बात समझा सके. अफसरों का आकलन रहा कि आंदोलन किसी नेता के हाथ में न रह कर भीड़ के हवाले हो चुका है - और अगर किसी नेता ने इधर उधर जाने की कोशिश की तो भीड़ उसे दरकिनार कर देगी.

अगर ऐसी हालत हो चुकी है तो भला केंद्र सरकार के मंत्री किन किसान नेताओं से बातचीत कर रहे हैं. अगर ऐसे ही बातचीत होती रही तो हर दौर के बाद अगले दौर की तारीख तय होती रहेगी और ये सिलसिल यूं ही चलता रहेगा, कोई नतीजा तो निकलने से रहा.

इन्हें भी पढ़ें :

Farmers protest: संवाद के सलीक़े में कमज़ोर पड़ रही मोदी सरकार!

आंदोलन का आसान शिकार बनतीं सड़कें, और राहगीर

राहुल गांधी और कैप्टन अमरिंदर में फिर टकराव हो ही गया!

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय