Anti-CAA violence: जमानत पर रिहा सदफ जाफर को योगी सरकार की 'सजा'!
लखनऊ जिला प्रशासन ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में (Anti CAA Protest) लखनऊ में हुए बवाल (Lucknow Violence) में सामाजिक कार्यकर्ता सदफ़ जाफर (Sadaf Jafar) समेत 56 लोगों की तस्वीरों को लखनऊ के हर बड़े चौराहे पर लगाया है.
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नागरिकता संशोधन कानून के विरोध (Anti CAA Protest-violence) में 19 दिसंबर 2019 को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजधानी लखनऊ (Lucknow) में खूब जमकर बवाल हुआ. प्रदर्शनकारियों ने जगह जगह आगजनी, पथराव को अंजाम दिया जिससे सरकारी / गैर सरकारी संपत्ति को काफी नुकसान हुआ. स्थिति लगातार बेकाबू हुई तो पुलिस ने भी हालत संभालने के लिए सख्त एक्शन लिया. लाठीचार्ज के अलावा आंसू गैस के गोले चले और तमाम लोगों को हिरासत में लिया गया. लखनऊ पुलिस ने राजधानी के परिवर्तन चौक से सामाजिक कार्यकर्ता सदफ़ जाफर (Sadaf Jafar) को भी गिरफ्तार किया. सदफ़ मौके से फेसबुक लाइव (Facebook Live) कर रही थीं. लखनऊ पुलिस का आरोप था कि हिंसा भड़काने और स्थिति बिगाड़ने में उनकी एक बड़ी भूमिका है. सदफ़ को 19 दिन जेल में रखा गया और 7 जनवरी 2020 को उन्हें जमानत पर रिहा किया गया. जेल से आने के बाद सदफ़ ने लखनऊ पुलिस की कार्यप्रणाली को सवालों के घेरे में रखा था और उसपर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाए. सदफ़ की रिहाई के वक़्त जो दलीलें दोनों पक्षों की तरफ से कोर्ट में पेश हुई वो काफी दिलचस्प थीं. सदफ़ की रिहाई दौरान साफ़ हो गया था कि लखनऊ पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई गुस्से में 'बदले' के तहत की गई है. तब सदफ़ की जमानत के लिए कोर्ट में दाखिल की गई याचिका पर अगर गौर करें तो अभियोजन पक्ष ने अपनी दलीलों में इस बात को स्वीकार किया था कि लखनऊ में जो कुछ भी हुआ, उसमें अब तक की जांच में सदफ की विशिष्ट भूमिका के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले और अधिक साक्ष्य एकत्र करने के लिए अभी भी जांच चल रही है. तब सदफ़ को जमानत इसी आधार पर मिली थी की लखनऊ में हुए बवाल में सदफ़ की भूमिका में सबूतों की कमी थी. जमानत के करीब दो महीने बाद एक बार फिर सदफ़ जाफर चर्चा में हैं. सदफ़ समेत 56 लोगों की तस्वीर को लखनऊ के हर बड़े चौराहे पर लगाया गया है. लखनऊ जिला प्रशासन लखनऊ में हुए नुकसान की भरपाई सदफ़ समेत अन्य 56 लोगों से करना चाहता है.
लखनऊ में अपनी तस्वीर के साथ लखनऊ हिंसा में नामजद सदफ़ जाफर
प्रदर्शनकारियों से संपत्ति के नुक़सान की भरपाई का मामला भले ही अदालत में विचाराधीन है लेकिन लखनऊ पुलिस अपनी तरफ से कोई भी ढील नहीं छोड़ना चाहती. लखनऊ जिला प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों की तस्वीर उनके नाम और पते के साथ शहर के हर चौराहों पर टांग दी है. लखनऊ पुलिस और जिला प्रशासन का मानना है कि प्रदर्शन के दौरान हिंसा के लिए यही लोग जिम्मेदार हैं. इन्हीं लोगों ने लोगों को हिंसा का मार्ग चुनने के लिए भड़काया है. इन होर्डिंग्स में इन लोगों से सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने के लिए हर्जाना भरने को कहा गया है. होर्डिंग्स में यह भी लिखा गया है कि अगर ये लोग हर्जाना नहीं देते हैं तो इनकी सपंत्ति को ज़ब्त कर लिया जाएगा.
लखनऊ के डीएम अभिषेक के अनुसार, 'राजधानी लखनऊ के चार थाना क्षेत्रों में एक करोड़ 55 लाख 62 हज़ार 537 रुपए की रिकवरी के तीन आदेश जारी किए जा चुके हैं. अगर पुलिस कुछ और लोगों के ख़िलाफ़ साक्ष्य उपलब्ध करा देती है तो उनके नाम भी सार्वजनिक किए जाएंगे. सभी को नोटिस जारी होने की तिथि से 30 दिन का समय दिया गया है. अगर निर्धारित समय के भीतर यह राशि जमा नहीं कराई जाती है तो फिर इनकी संपत्ति कुर्क की जाएगी.'
लखनऊ में हुई हिंसा के मद्देनजर यूपी सरकार ने 57 लोगों की तस्वीर लगाकर एक नई बहस की शुरुआत कर दी है
बता दें कि 19 दिसंबर को लखनऊ में हुए एंटी सीएए प्रोटेस्ट के दौरान लखनऊ के चार थाना क्षेत्रों ठाकुरगंज, हज़रतगंज, क़ैसरबाग़ और हसनगंज में जबरदस्त हिंसा भड़की और निजी वाहनों समेत पुलिस चौकी और पुलिस के वाहनों को आगे के हवाले किया गया.
राजधानी में हुई हिंसा ने सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ को खासा नाराज किया था. मामले का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि उपद्रवियों को चिन्हित कर लिया गया है. उपद्रवियों ने पब्लिक प्रॉपर्टी को जो भी नुकसान पहुंचाया है, उसकी वसूली उपद्रवियों की संपत्ति नीलम करके की जाएगी.
नागरिकता कानून के मुद्दे पर गुमराह करके लोगों को हिंसा के लिए प्रेरित करना देशद्रोही कृत्य है।
उपद्रवियों को चिन्हित कर लिया गया है। उपद्रवियों ने पब्लिक प्रॉपर्टी को जो भी नुकसान पहुँचाया है, हम उसकी वसूली उन उपद्रवियों की संपत्ति नीलाम करके करेंगें। pic.twitter.com/vSHlX7Id7E
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) December 19, 2019
ध्यान रहे कि राज्य सरकार ने नुक़सान की भरपाई के लिए वीडियो फ़ुटेज और अन्य साक्ष्यों के आधार पर 150 से ज़्यादा लोगों को नोटिस जारी किया था जिनमें फ़िलहाल 57 को इसके लिए दोषी पाया गया है.
अपनी फोटो के जरिये एक बार फिर चर्चा में आने वाली सामाजिक कार्यकर्ता सदफ़ से अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि हम अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास का रहे हैं कि पुलिस और कोर्ट को आगे की जांच में हमारा सहयोग मिले. न तो मैं गायब हूं न ही मैं भागी हूं. मैं शहर में हूं मेरे वकील इसी शहर में हैं. होर्डिंग को लेकर सदफ़ का कहना है कि लखनऊ पुलिस और जिला प्रशासन द्वारा ऐसा करके हमें बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है.
Sadaf Jafar is one of those whose name has been put on ‘property attachment’ hoardings across Lucknow by the @myogiadityanath govt . She was arrested by the @lkopolice in dec 19 while doing a FB live during #CAA violence and asking cops to act . Judge gave bail . Her reaction ... pic.twitter.com/qUTvzX6czw
— Alok Pandey (@alok_pandey) March 6, 2020
सदफ़ ने ये भी कहा है कि मेरे बच्चे स्कूल जाते हैं. उनके साथ पढ़ने वाले बच्चे कैसा बर्ताव करेंगे और उनकी सुरक्षा कितनी ख़तरे में आ जाएगी, क्या ये सरकार को नहीं पता है. आदेश को लेकर कहा यही जा रहा है कि चौराहे पर तस्वीरें टांगने का ये फरमान मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से आया है मगर फिलहाल इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.
किसी एक 'दंगाई' की बेगुनाही योगी सरकार को गुनाहगार न बना दे
सदफ़ जाफर हों या फिर बाकी के 56 लोग. हम इस बात तो बिलकुल भी खारिज नहीं कर रहे हैं कि किसी चीज के विरोध में हिंसा फैलाने वाले व्यक्ति या ये कहें कि दंगाई को पुलिस और जिला प्रशासन को यूं ही छोड़ देना चाहिए. मगर बड़ा सवाल ये है कि जिन 57 लोगों की तस्वीर पुलिस ने जारी की है यदि इनमें से कोई भी 'दंगाई' आगे की जांच में निर्दोष पाए जाने के बाद कोर्ट द्वारा बाइज्जत बरी कर दिया जाता है तो उस क्षण जो अभी तस्वीरें जारी करने का खेल यूपी में शुरू हुआ है इसका क्या?
There will be no end to the madness. Now a hoarding by a govt that violated all processes of law targets those working for human rights - lawyer Mohammed Shoaib , theatre personality Deepak Kabir, ex-IPS officer SR Darapuri, Sadaf Jafar https://t.co/LPut1iBPiz
— Radhika Bordia (@radhikabordia) March 6, 2020
सवाल ये भी है कि क्या दोष सिद्ध होने से पहले ही यूपी सरकार सभी को दोषी मान चुकी है? क्या इन सभी लोगों को अपना पक्ष रखने के तमाम मौके मिल चुके हैं?
बात सीधी और एकदम साफ़ है. दंगाइयों या फिर हिंसा फैलाने वाले लोगों पर एक्शन हर सूरत में लिया जाना चाहिए. मगर यूपी की सरकार और स्वयं यूपी के मुखिया योगी आदित्यनाथ को इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए कि अगर इन तस्वीरों में से कोई भी एक व्यक्ति निर्दोष निकल आया फिर क्या होगा? कैसे वो उस परिवार का सामना करेंगे जो सिर्फ इस चीज के चलते आने वाले वक़्त में तमाम तरह की यातनाएं सहेगा.
CM Adityanath takes "badla" to another level by trying to stigmatise those who are fighting to save the Constitution. Some of the people named on the hoarding (Sadaf Jafar, Darapuri etc) are those against whom the police had no direct evidence of violence.https://t.co/TXmnZaCmH4
— Ruchira Chaturvedi (@RuchiraC) March 6, 2020
हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि एक ऐसे वक़्त में जब हम पर सोशल मीडिया पूरी तरह हावी हो ये तस्वीरें भविष्य में भी रहेंगी और उस आदमी पर एक बदनुमा दाग लगाएंगी जो निर्दोष हुआ. ऐसी स्थिति में 'दंगाई' की बेगुनाही सरकार के गले की हड्डी की तरह देखी जाएगी जो शायद खुद योगी आदित्यनाथ को भी दर्द दे.
बाकी इस तरह तस्वीरें डालने की आलोचना इसलिए भी हो रही है क्योंकि बात 57 लोगों की सुरक्षा से जुड़ी है. साफ़ ये है कि योगी सरकार की ये लापवाही आने वाले समय में एक बड़ी मुसीबत की वजह भी बन सकती है. हम फिर इस बात को कह रहे हैं कि दोषियों को सजा हो और इस सजा के लिए पूरी न्यायिक व्यवस्था को अमल में लाया जाए.
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