UP Elections 2022: राजनीति की रस्साकशी में रौंदे जा रहे हैं रिश्ते!
यूपी में विधानसभा चुनाव हैं ऐसे में दल बदलना तो आम बात है. सियासी रुतबे- ओहदे और कुर्सी पाने की आपाधापी में पवित्र रिश्ते भी टूटकर चकनाचूर होते देखे जा रहे हैं. कहा जा सकता है कि सियासत वो बला है जो कहीं खून के रिश्तों के खून को पानी कर देती है तो कहीं पति-पत्नी के जनम-जनम का साथ निपटा कर आपस में झगड़ा करवा देती है.
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कुर्सी की चाह अंधा कर देती है, ये एहसानों का एहसास, इंसानियत के तक़ाज़ों और रिश्तों की डोर को उलझा देती है. चुनावी मौसम की राजनीति तो बहुत ही पत्थर दिल होती है. यहां कुर्सी की चाह में भरोसे का कत्ल करना पड़ता है. इस मौसम में दल बदलना तो आम बात है, सियासी रुतबे- ओहदे और कुर्सी पाने की आपाधापी में पवित्र रिश्ते भी टूटकर चकनाचूर होते देखे जाते रहे हैं. सियासत वो बला है जो कहीं खून के रिश्तों के खून को पानी कर देती है तो कहीं पति-पत्नी के जनम-जनम का साथ निपटा कर आपस में झगड़ा करवा देती है. यूपी विधानसभा चुनाव की बेला में इधर करीब पिछले एक महीनें में सिर्फ दलबदलुओं की ही चर्चा रही है. आए राम-गए राम की आंधी में कसमें, वादे, प्यार वफा.. सब छोड़कर दर्जनों बड़े-छोटे नेता ताबड़तोड़ दल बदल रहे हैं. कोई कह रहा है कि गरीबों, वंचितों, दलितों-पिछड़ों को समाजिक न्याय दिलाने के लिए उन्होंने पार्टी छोड़ी तो कोई कह रहा है कि राष्ट्रवाद के लिए एक पार्टी छोड़ कर दूसरे दल को अपनाया.
भाजपा ज्वाइन करने के बाद सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से आशीर्वाद लेतीं अपर्णा यादव
जबकि सच ये है कि जितने भी दलबदलुओं की सोयी हुई आत्मा जाग रही है या उनका ह्रदय परिवर्तन हो रहा है उसका मुख्य कारण टिकट है. जिसका टिकट कटा वो भागा, और टिकट के लिए दूसरी पार्टी का दामन थामने पर मजबूर हुआ.सियासत की हथौड़ी से टूटे रिश्तों में नेता और उसकी पार्टी से ही रिश्ते नहीं तोड़े बल्कि इसने खून के रिश्तों को भी जुदा कर दिया है.
लखनऊ की सरोजनीनगर विधानसभा सीट के टिकट के लिए यूपी की मंत्री स्वाति सिंह और उनके पति (यूपी भाजपा उपाध्यक्ष) दयाशंकर सिंह दोनों ही संघर्ष कर रहे हैं. बताया जाता है कि लखनऊ के सरोजनीनगर विधानसभा टिकट को हासिल करने और अपनी-अपनी सियासी हैसियत की प्रतिस्पर्धा में पति-पत्नी के रिश्तों में कड़वाहट बढ़ती जा रही है. इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की बहु अपर्णा बिष्ट सपा छोड़कर भाजपा के आंगन में चली गईं.
बताया जाता है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपर्णा बिष्ट को पार्टी में एहमियत नहीं देते थे. लखनऊ कैंट विधानसभा सीट का टिकट न मिलने से अपर्णा नाराज़ थी. इसी तरह तमाम ऐसे नेता हैं जिन्हें जिस पार्टी ने मौका दिया पर उन्होंने भरोसे के रिश्ते और एहसान के अहसास को भुलाकर मौका मिलते दूसरे दल से रिश्ता जोड़ दिया.
महिलाओं को सियासत में लाने की मुहिम में यूपी कांग्रेस ने कई लड़कियों को जोड़ा. जुम्मा-जुम्मा आठ दिन से कांग्रेस आईं प्रियंका मार्या ने अपने कैरियर की पहली तिमाही में ही पाला बदल लिया. कांगेस की पोस्टर गर्ल प्रियंका मौर्या ने उपेक्षा का आरोप लगाते हुए प्रियंका गांधी का भरोसा तोड़ दिया. पार्टी में आने के कुछ ही दिन बाद ही वो अच्छा अवसर पाकर भाजपा में चली गईं.
इसी तरह यूपी के रायबरेली सदर सीट पर चार बार कांग्रेस के विधायक रहे स्वर्गीय अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह जो मौजूदा वक्त में सदर विधायक हैं, उन्होंने भी कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा ज्वाइन की. जबकि उनके पति पंजाब कांग्रेस के नेता हैं और पिता का कांग्रेस से दशकों तक रिश्ता रहा था. सियासत में रिश्ते टूटने की परंपरा पुरानी है.
यूपी की पिछली अखिलेश सपा सरकार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच जो सियासी लड़ाई छिड़ी थी उसे भुलाया नहीं जा सकता है. नेहरू परिवार की सियासी विरासत को लेकर पारिवारिक विभाजन की तस्वीरें देखी जा चुकी हैं. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बहु मेनका गांधी ने विरासत की सियासत के वावादों में भी भाजपा का दामन पकड़ था.
कहा जाता है कि सियासत समाज को जोड़ने के बजाय समाज को तोड़ती हैं और धर्म-जाति की नफरत की आग लगाती है. ये आरोप सहीं हैं या ग़लत लेकिन ये सच है कि सियासत के खेल में स्वार्थ और कुर्सी की हवस की आग में सियासत वालों के ही आपसी रिश्तों को ख़ाक होते देखा जाता रहा है.
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