तो क्या, वामपंथी टीवी एंकरों और देश विरोधी नारों से त्रिपुरा में हारी CPI(M)?
त्रिपुरा से वाम का सफाया हो गया है. त्रिपुरा में वाम को मिली हार पर एक नजर डालें तो मिलता है कि इस हार की एक बड़ी वजह जहां एक तरफ टीवी स्टूडियों में बैठे कुछ लोग हैं तो वहीं जेएनयू भी है, जिसकी गतिविधियों से देश के लोग बेहद नाराज हैं.
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25 साल से त्रिपुरा पर अपना कब्ज़ा जमाए बैठे माणिक सरकार के शासन का अंत हो गया है. बताया जा रहा है कि, माणिक सरकार की हार की सबसे बड़ी वजह वो विरोध था, जो राज्य के युवाओं में पनप रहा था. राज्य के युवा माणिक सरकार से इसलिए भी नाराज थे क्योंकि पिछले 25 सालों से राज्य की हालात जस की तस थी. त्रिपुरा के सन्दर्भ में शायद यही वो कारण है जिसके चलते राज्य विकास की मुख्यधारा के विपरीत चलता रहा. कह सकते हैं कि न तो राज्य में मुख्यमंत्री द्वारा युवाओं के लिए ही कुछ किया गया. न ही उन गरीबों, पिछड़ों और शोषित वर्ग के लिए जिसके हिमायती माणिक और उनकी पार्टी बनती थी.
25 साल तक शासन करने वाले माणिक सरकार से लोग खफा थे और ये हार उसी नाराजगी का परिणाम है
त्रिपुरा वाम का गढ़ था. त्रिपुरा में वाम के किले को भाजपा की आंधी ने धूल में मिला दिया है और वहां कमल खिल चुका है. कहा जा रहा है कि वाम के सफाए के लिए इसके बाद पीएम मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में दक्षिण का राज्य केरल है. ध्यान रहे कि राजनीतिक परिपेक्ष में, त्रिपुरा के बाद केरल ही वो जगह है जहां वाम फल फूल रहा है.
अब तक हम यही मानते हैं कि त्रिपुरा के बाद केरल ही वो जगह है जहां वामपंथ बचा हुआ है. अब इस बात को दूसरी नजर से देखिये तो मिलेगा कि केरल के अलावा वामपंथ दो और प्रमुख स्थानों पर है जिसमें जहां एक तरफ टीवी चैनलों के स्टूडियो शामिल हैं तो वहीं दूसरी तरफ "फ्री थिंकिंग का केंद्र बिंदु" जेएनयू शामिल हैं. चूंकि हम बात त्रिपुरा और वाम के सफाए पर कर रहे थे, तो यहां ये बताना जरूरी है कि. वाम त्रिपुरा में अपने मुख्यमंत्री माणिक सरकार या फिर राज्य में कुछ न करने के कारण नहीं हारी है. बल्कि इसका एक प्रमुख कारण जेएनयू और वो चिंतक हैं जिन्होंने कई बार अपनी बातों से देश की भावना को आहत किया है.
वामदल की त्रिपुरा हारने की एक बड़ी वजह जेएनयू को भी माना जा सकता है
हो सकता है आप इस बात को पढ़कर हैरान हो गए हों. और सोच रहे हों कि आखिर त्रिपुरा में माणिक सरकार की हार और दिल्ली स्थित जेएनयू का क्या सम्बन्ध है? तो यहां ये बताना बेहद ज़रूरी है कि, ग्राउंड के अलावा वाम की राजनीति का एक बहुत बड़ा गढ़ जेएनयू है. पूर्व में यहां देश विरोधी नारों से लेकर हिंसक गतिविधियों तक ऐसा बहुत कुछ हो चुका है जिसके परिणाम स्वरूप त्रिपुरा में वाम को अपना मजबूत किला गंवाना पड़ा है.
बात बहुत साधारण है. किसी भी पार्टी के सशक्त होने का सबसे बड़ा माध्यम उसकी स्टूडेंट विंग होता है. अब हम जब देश भर में फैली वाम की स्टूडेंट विंग्स को देखें तो मिलता है कि हाल फिल्हाल में देश कभी इनसे खुश नहीं रहा और कई मौकों पर इन्होंने कई ऐसी बातें कहीं हैं जिससे आम देशवासियों को ठेस पहुंची है. साथ ही यहां जेएनयू को लाने के पीछे की सबसे बड़ी वजह बस इतनी है कि वाम दलों द्वारा त्रिपुरा चुनाव की महत्वपूर्ण भूमिकाएं जेएनयू में भी बैठकर बनाई गयी है.
बेहतर है कि अब अपनी गलतियों से सबक लें वामपंथी विचारधारा के लोग
वाम के मद्देनजर ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, ये एक ऐसी पार्टी है जिसको खत्म करने में जितना योगदान उसकी लचरता और ढीले-ढाले रवैये का था. उतना ही योगदान उसकी स्टूडेंट विंग का था. ज्ञात हो कि आज हमारे सामने ऐसी कई ख़बरें मौजूद हैं जिनको देखकर मिलता है कि केरल, बंगाल और त्रिपुरा में इनकी प्रमुख स्टूडेंट विंग्स अराजकता फैला रही हैं और हिंसा को अंजाम दे रही हैं.
अंत में हम ये कहकर अपनी बात खत्म कर रहे हैं कि जेएनयू की गतिविधियों पर न सिर्फ देश ने बल्कि त्रिपुरा के लोगों ने भी नजर बनाए रखी और वोट के माध्यम से बता दिया कि फ्री थिंकिंग के नाम पर जो विचारधारा देश के साथ नहीं है देश में उसके लिए कोई जगह नहीं है. कहा जा सकता है कि त्रिपुरा में मिली हार वाम दलों को आईना दिखा रही है और बता रही है कि यदि वक़्त रहते ये नहीं सुधरे तो वो दिन दूर नहीं जब देश में इन्हें भी कोई पूछने वाला नहीं होगा.
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