बिहार से यूपी पहुंची एनडीए की दरार
एनडीए के घटक अपना दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष पटेल ने कहा कि 'बर्दाश्त करने की भी एक सीमा होती है. इस सरकार में हमारी जायज बातें तक नहीं सुनी जाती हैं, इससे हमारे कार्यकर्ता बेहद नाराज हैं. राज्य सरकार हमेशा अपना दल के साथ अपमानजनक सलूक करता रहा है.'
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केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए के घटक अपना दल (सोनेलाल) के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष पटेल ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के नेतृत्व के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि न केवल अपना दल बल्कि बीजेपी के भी कई विधायक, सांसद और मंत्री प्रदेश शासन से नाराज हैं. बता दें कि प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के बाद अपना दल की ओर से दिखाया गया यह तेवर बीजेपी के लिए चिंता का विषय हो सकता है.
मीडिया से बातचीत में आशीष पटेल ने कहा कि 'बर्दाश्त करने की भी एक सीमा होती है.' उत्तर प्रदेश में सरकार बनने से पहले हर कार्यक्रम में स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल को बुलाया जाता था. सरकार बनने के बाद उन्हें किसी कार्यक्रम में नहीं बुलाया जाता. आयोगों में सरकारी अधिवक्ताओं में भर्ती मामले में अपना दल को कुछ नहीं मिला. इस सरकार में हमारी जायज बातें तक नहीं सुनी जाती हैं, इससे हमारे कार्यकर्ता बेहद नाराज हैं. राज्य सरकार हमेशा अपना दल के साथ अपमानजनक सलूक करता रहा है.
अपना दल के तेवर एनडीके के लिए चिंता की बात है
आशीष पटेल ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी की हार को चिंताजनक बताते हुए कहा कि इन राज्यों में हुई हार के मुद्दे पर नेतृत्व को चिंतन करने की जरूरत है. उत्तर प्रदेश के लिए बीजेपी को नसीहत देते हुए पटेल ने कहा कि 'एसपी-बीएसपी का गठबंधन हमारे लिए चुनौती है और यूपी में एनडीए के सहयोगी इससे चिंतित हैं इसीलिए बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व को कुछ करना होगा अन्यथा यूपी में एनडीए को नुकसान उठाना पड़ सकता है. हालांकि इन तमाम आरोपों के बीच उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की तारीफ करते हुए कहा कि जब भी गठबंधन के विषयों को अमित शाह के सामने उठाया गया तब उन्होंने सभी समस्याओं का सकारात्मक समाधान किया है.
कह सकते हैं कि बीजेपी के लिए एसबीएसपी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर का साथ आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से जरूरी है तभी तो उनकी ओर से लगातार विरोधी स्वर के बावजूद बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से उनके खिलाफ कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं देखने को मिलती थी लेकिन अब अपना दल की ओर से उठे स्वर पार्टी नेतृत्व को इसपर विचार करने को मजबूर करेंगे. ये दोनों दल बीजेपी के लिए प्रदेश में खासकर पूर्वांचल में अच्छा करने की दृष्टि से बेहद जरूरी हैं.
बता दें कि, हाल ही में बीजेपी ने बिहार में अपने सहयोगियों एलजेपी और जेडीयू को सीटों का नुकसान सह कर मनाया है और अब यूपी से उठ रही इस तरह की आवाज को भी समय रहते दबाना होगा क्योंकि लोकसभा चुनाव में अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं. 2019 लोकसभा चुनाव की दृष्टि से बीजेपी के लिए एनडीए में शामिल दलों को साथ रखना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि हमने देखा है कि कैसे पिछले दिनों कुछ दल इससे अलग हो गए.
एक नजर डालते हैं उन दलों पर जिन्होंने एनडीए का साथ छोड़ दिया है.
दिसंबर 2018: बिहार के उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाले रालोसपा ने एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया और महागठबंधन में शामिल हो गए.
जून 2018: बीजेपी ने पीडीपी के साथ अपने तीन साल पुराने गठबंधन को तोडा.
मार्च 2018: चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी एनडीए से अलग हो गयी.
फरवरी 2018: बिहार के जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवामी मोर्चा एनडीए से अलग हो गयी और महागठबंधन में शामिल हो गयी.
अगस्त 2017: महाराष्ट्र के राजू शेट्टी के नेतृत्व वाले स्वाभिमानी शेतकरी संगठन ने एनडीए से नाता तोड़ लिया.
दिसंबर 2014: तमिलनाडु में वाइको के नेतृत्व वाला एमडीएमके एनडीए से अलग हो गया.
इनके अलावा कुछ और छोटे दल भी एनडीए से अलग हो गए हैं जबकि सबसे पुराना सहयोगी शिवसेना बीजेपी से नाराज चल रहा है.
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