इमरान खान के कसीदे पढ़ने वाले शांति के कबूतर नहीं, भारत-विरोधी गिद्ध हैं!
इमरान खान की बातों पर भरोसा करने वाले लोग इस ब्रह्मांड के सबसे बेवकूफ लोग हैं और अगर भारत सरकार भी उसपर भरोसा कर लेती है तो यह इक्कीसवीं सदी में उसकी अब तक की सबसे बड़ी मूर्खता होगी.
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हमारे विंग कमांडर अभिनंदन सकुशल वतन लौटे, तो लगा कि कितना अच्छा लगता है, जब हमारा कोई जवान अपनी बहादुरी के साथ हमारे बीच जीवित लौटता है! मुझे अपने जवानों की बहादुरी का सबूत देखने के लिए अनंत काल तक उनकी शहादतें नहीं चाहिए.
1. उनकी बहादुरी के सबूत के तौर पर हर बार हमें कॉफिन में बंद तिरंगे में लिपटा उनका पार्थिव शरीर ही क्यों चाहिए?
2. कब तक हम अपने राष्ट्र की ताकत के छद्म अहंकार को तुष्ट करने के लिए उनके परिवारों पर मातम लुटाते रहेंगे?
3. कब तक मेरी अनगिनत बहनें गर्भ में बच्चा लेकर विधवाओं का जीवन जीने के लिए मज़बूर होती रहेंगी?
4. कब तक मेरे देश के अनगिनत नौनिहालों की आंखें इस झूठे दिलासे के साथ अपने पापा की बाट जोहती रहेंगी कि वे जल्दी ही लौट जाएंगे?
5. कब तक मेरे देश की अनगिनत माएं अपने जवान बेटों को अपने आंचल से गवांती रहेंगी?
6. कब तक मेरे देश के अनगिनत पिता अपने जवान बेटों की लाशें अपने कंधों पर ढोते रहेंगे?
इस प्रॉक्सी वॉर को खत्म करना होगा. जो भी लोग हर रोज हमारे अनगिनत जवानों और नागरिकों की शहादत के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें अंतिम रूप से सबक सिखाना होगा. हम सालों साल इस प्रॉक्सी वॉर का दंश झेलने के लिए अभिशप्त नहीं रहना चाहते. हम आतंकवाद को अधिकतम सख्ती के साथ कुचल देना चाहते हैं.
हमारी परम सहिष्णु संस्कृति में भी राक्षसों के विनाश में कोई ममता नहीं दिखाई गई है. हिरणकश्यप को खूंटे पर डालकर उसकी छाती फाड़ दी गई थी. जरासंध को दोनों टांगों से पकड़कर चीर दिया गया था. कंस को छाती पर मुक्के के वार से मौत की नींद सुला दिया गया था. दया, ममता, क्षमा, मानवता, मानवाधिकार ये सब इंसानों के लिए हैं, हैवानों के लिए नहीं.
आतंकवादी हैवान हैं. पाकिस्तान की सेना, आईएसआई और सरकार आतंकवाद के सफेदपोश चेहरे हैं. हम अगर उनकी बातों में आकर आज एक बार फिर से नरम पड़ जाएंगे, तो मानवता का इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा. कल फिर से मेरे देश के नागरिकों और जवानों पर इसी तरह हमला होगा, जैसे मुंबई में, उरी में, पठानकोट में, पुलवामा में हुआ है. कल फिर से हम अपना खून खौलाएंगे और चार दिन बाद सेक्युलरिज़्म का पानी डालकर उसे शांत कर देंगे.
पाकिस्तान की सेना, आईएसआई और सरकार आतंकवाद के सफेदपोश चेहरे हैं
इमरान, जिसकी तारीफ में मेरे देश के अनेक पाकिस्तानी मन-मस्तिष्क वाले लोग कसीदे पढ़ रहे हैं, वह भी आतंकवाद का ही पोषक है. अगर वह आतंकवाद का पोषण नहीं करेगा, तो किसी दिन वहां की सेना उसे जुल्फिकार अली भुट्टो की तरह सूली पर टांग देगी या नवाज शरीफ की तरह अपदस्थ कर देगी. वहां के आतंकवादी उसे बेनज़ीर की तरह किसी रैली में उड़ा देंगे या फिर सलमान तासीर की तरह गोली मार देंगे. उसकी कथित नरमी और शांतिप्रियता भी पाकिस्तान के उसी प्रॉक्सी वॉर का हिस्सा है, जिसमें वह सीधे युद्ध से बचते हुए हमें लगातार नुकसान पहुंचाते रहना चाहता है.
आतंकवाद अगर पाकिस्तान सरकार और आर्मी का एक्सटेंशन नहीं होता, तो जैश के ठिकाने पर भारत के हवाई हमले के बाद वे हमारे सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने का प्रयास क्यों करते? आतंकवाद अगर पाकिस्तान सरकार और आर्मी का एक्सटेंशन नहीं होता, तो आज तक उन्होंने दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद और मसूद अजहर को अपने सीने में समेटकर क्यों रखा होता? आतंकवाद अगर पाकिस्तान सरकार और आर्मी का एक्सटेंशन नहीं होता, तो उसने अमेरिका द्वारा मार दिए जाने तक ओसामा बिन लादेन को पनाह क्यों दी होती और उसके मारे जाने के बाद भी मुशर्रफ ने क्यों कहा होता कि ओसामा तो हमारा हीरो था?
पाकिस्तान किस सबूत की बात करता है कि हम उसपर भरोसा करने लगते हैं? क्या उसे पता नहीं कि मौलाना मसूद अजहर कंधार प्लेन हाइजैक के बदले छुड़ाए गए 5 आतंकवादियों में से एक है. दुनिया के इतिहास में कब किसी शरीफ आदमी को छुड़ाने के लिए प्लेन हाइजैक किया गया है और उसमें बेगुनाह लोगों के कत्ल किए गए हैं? मसूद अजहर को आतंकवादी प्रमाणित करने के लिए इससे बड़ा प्रत्यक्ष सबूत पाकिस्तान को और क्या चाहिए?
पाकिस्तान को मुंबई, उरी, पठानकोट पर हमले के सबूत नहीं दिए गए थे क्या? पाकिस्तान ने क्या किया? अब तो पुलवामा हमले के भी डोजियर उसे सौंप दिए गए हैं. क्या वह मसूद अजहर पर कार्रवाई करेगा? मुझसे लिखवाकर रख लीजिए कि पाकिस्तान में किसी दिन खुद इमरान खान को फांसी दिया जाना संभव है, लेकिन हाफिज सईद और मसूद अजहर को फांसी दिया जाना संभव नहीं है.
यह स्पष्ट है कि अभिनंदन की रिहाई युद्धबंदियों को लेकर जेनेवा समझौते, भारत के आक्रामक तेवर और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण हुई है, न कि इमरान की शांतिप्रियता के कारण. इमरान ने तो देश की संसद में खड़े होकर कश्मीर में हमला कर रहे आतंकवादियों की गतिविधियों को जायज़ ठहराया है. पाकिस्तान का हर नेता कश्मीर में आतंकवाद को बड़ी ही ढिठाई से आज़ादी की लड़ाई बताता है. पाकिस्तान की फौज हर रोज़ एलओसी पर सीज़फायर तोड़ रही है, रिहाइशी इलाकों में गोले बरसा रही है. पाकिस्तान के आतंकवादियों से हर रोज़ हमारे सैनिकों की मुठभेड़ हो रही है. खुद अभिनंदन की रिहाई के दिन भी हमारे पांच जवान ऐसी ही मुठभेड़ में शहीद हुए हैं.
इसीलिए, मैंने पहले भी कहा है कि इमरान की बातों पर भरोसा करने वाले लोग इस ब्रह्मांड के सबसे बेवकूफ लोग हैं और अगर भारत सरकार भी उसपर भरोसा कर लेती है तो यह इक्कीसवीं सदी में उसकी अब तक की सबसे बड़ी मूर्खता होगी. जो लोग आज इमरान की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं, उनके बारे में भी मेरी स्पष्ट राय है कि वे शांति के कबूतर नहीं, बल्कि भारत-विरोधी चील-गिद्ध हैं. उन्हें हमें संदेह की नज़र से देखने और उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है.
मैंने अपने पिछले दो लेखों में युद्ध का समर्थन नहीं करते हुए भी यह लिखा था कि अगर मानवता की रक्षा और स्थायी शांति कायम करने के लिए युद्ध ही मजबूरी है, तो युद्ध ही सही. जब मैं ऐसा कह रहा हूं, तो युद्ध के स्वरूप पर चर्चा नहीं कर रहा. इसका स्वरूप भारत की सरकार और सेना इस तरह से तय करे, जिससे दोनों ही देशों के आम नागरिकों के जान-माल को कम से कम नुकसान पहुंचे, लेकिन अब हमें बिल्कुल भी ढिलाई नहीं बरतते हुए इस प्रॉक्सी वॉर को खत्म करना चाहिए, इस बात पर मैं कायम हूं.
जय हिन्द. जय हिन्द की सेना.
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