आरिफ मोहम्मद खान ने मोदी और मुसलमानों के बीच की खाई का झूठ उजागर कर दिया है
कांग्रेस में केंद्रीय मंत्री रह चुके आरिफ मोहम्मद खान ने जो बातें कहीं हैं उससे साफ है कि यदि आज इस देश का मुसलमान खस्ताहाली की जिंदगी बिता रहा है तो इसका अहम कारण मौलाना हैं, तो दूसरी तरह कांग्रेस का तुष्टिकरण भी हैं जिसने समाज को पीछे ले जाने वाले कट्टरपंथियों का हरसंभव सहयोग किया.
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द वायर की पत्रकार अरफा खानम शेरवानी को दिए गए इंटरव्यू में कांग्रेस सरकार में पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके आरिफ मोहम्मद खान ने सीधी बात की है. अपनी बातचीत में खान ने बताया है कि कैसे मुसलमानों की ताजा हालात के जिम्मेदार प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा नहीं बल्कि खुद मुसलमान और धर्म से जुड़े धर्मगुरु हैं. लीक से हटकर राजनीति कर चुके आरिफ मोहम्मद खान ने वो तमाम बातें कहीं हैं जिसपर एक आम मुसलमान को गौर ओ फ़िक्र करनी चाहिए और ये समझना चाहिए कि अब तक उसे अलग अलग सरकारों द्वारा एक कठपुतली या फिर ये कहें कि एक वोट बैंक से ज्यादा कुछ नहीं समझा गया है.
कांग्रेस में केंद्रीय मंत्री रह चुके आरिफ खान ने कांग्रेस का असली चेहरा मुसलमानों को दिखा दिया है
तो आइये पहले उन बातों पर गौर कर लिया जाए जिन्हें कहकर आरिफ मोहम्मद खान ने एक नई बहस का आगाज कर दिया है.
मुसलमानों के गटर में पड़े रहने की बात
बीते दिन ही पीएम मोदी ने लोकसभा में बयान दिया है कि कांग्रेस के मंत्री ने अपने इंटरव्यू में बताया था कि उनकी पार्टी के एक नेता ने मुसलमानों के बारे में गटर में पड़े रहने की बात कही थी. इस बात को लेकर आरिफ मोहम्मद खान फ्रंट फुट पर आए हैं और बेबाक होकर बोले हैं.
आरिफ मोहम्मद खान ने बताया कि शाहबानो केस का जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विरोध किया तो उन्होंने इस पर असहमति जताते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश की थी. खान ने कहा कि , 'सरकार से इस्तीफा देकर मैं अपने घर नहीं गया, किसी दोस्त के यहां चला गया ताकि कोई मुझे संपर्क नहीं कर सके. अगले दिन मैं संसद गया तो कांग्रेस के कुछ नेता मुझे समझाने आए. सबसे अंत में नरसिम्हा राव आए और कहा कि तुम बहुत जिद्दी हो अब तो शाह बनो ने भी अपना स्टैंड बदल लिया है.' इसके बाद उन्होंने मुझे बहुत समझाया मगर मैं चूंकि अपनी जगह सही था इसलिए मैं अपनी बातों पर अटल रहा.
आरिफ के अनुसार, इस दौरान नरसिम्हा राव ने उनसे कहा कि हम कांग्रेस पार्टी मुसलमानों का सामाजिक सुधार करने के लिए नहीं है और न ही तुम हो इसलिए तुम ऐसा क्यों कर रहे हो. आरिफ मोहम्मद खान ने बताया कि इसके बाद नरसिम्हा राव ने कहा कि अगर कोई गटर में पड़े रहना चाहता है तो रहने दो.
ध्यान रहे कि तब भी कांग्रेस मुसलमानों के साथ तुष्टिकरण की राजनीति कर रही थी इसलिए वो आरिफ मोहम्मद खान पर दबाव बना रही थी ताकि वो उनके पक्ष में आए. आरिफ का मानना है कि 86 में जो मुद्दे बने उसने मुल्क को 47 में पहुंचा दिया.
50 के दशक से है लिंचिंग
आरिफ मोहम्मद खान के अनुसार लिंचिंग की समस्या कोई आज की नहीं है ये समस्या 50 के दशक से चली आ रही है और तब लाखों लोगों को लिंच किया गया था. और ये सब तक कांग्रेस की हुकूमत में हुआ था. आरिफ ने इस बात को बड़ी ही प्रमुखता से कहा कि जब तक व्यक्ति अपना इतिहास याद नहीं रहेगा और आज में जीने का प्रयास करेगा तब तक उसके हाथ में मायूसी लगेगी. आरिफ मोहम्मद खान ने शम्स उर रहमान फारूकी के एक लेख का भी जिक्र किया जिसमें फारूकी ने बताया था कि 52 या 54 में उनके पिता डिप्टी डायरेक्टर एजुकेशन की हैसियत से गोरखपुर के एक स्कूल का जायजा लेने गए थे. वहां ये खबर फैली कि बराबर के गांव में गो हत्या हुई है, इसपर भीड़ ने उन्हें इतना बुरी तरह मारा कि उनके शरीर में जगह-जगह फ्रैक्चर हो गए. ये घटना तब हुई थी जब बीजेपी सत्ता में नहीं थी. जब वो सरकार के पास ये कहने के लिए गए कि क्योंकि उन्हें चोट अधिक लगी है कोई ऑफिस में बैठने का काम दे दिया जाए तो तब की कांग्रेस सरकार ने माना कर दिया.
राजीव गांधी के पास तजुर्बे की कमी थी
आरिफ ने बहुत मुखर होकर ये बात कही है कि यदि 1986 के मुद्दे आज वैसे ही जिंदा हैं तो इसके जिम्मेदार जहां एक तरफ मुस्लिम धर्मगुरु हैं तो वहीं इसके जिम्मेदार राजीव गांधी भी हैं. इस पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस मुल्क को एक मुसीबत में ढकेल दिया है. खान ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि राजीव जी ने कहा कि ताला जो खुला है 6 फरवरी को उसका कोई मुस्लिम लीडर विरोध नहीं करेगा.
मैंने कहा कैसे उन्होंने कहा ताला खुलने से पहले मैंने सबको सूचित कर दिया था जबकि ये बात किसी को नहीं पता थी. सलमान खुर्शीद का नाम लेते हुए खान ने कहा कि सलमान को लगता था कि बाबरी का मसला छोटा है जबकि शाह बनो देश की समस्या है. खान का ये भी मानना था कि 2014 से पहले 10 साल कांग्रेस का शासन था मगर तब भी उसने कुछ नहीं किया.
अल्पसंख्यक का नेता बनना सही नहीं
इसके लिए खान ने 82 की एक घटना का जिक्र किया जिसमें एक इंटरव्यू के सिलसिले में पत्रकार ने बार बार उनके आगे माइनॉरिटी दोहराया. इसपर उनका तर्क था कि मैं जिस जहां से चुन कर आया हूं वहां मुसलमानों का वोट प्रतिशत 12 प्रतिशत है जबकि ब्राहमणों का वोट 20 प्रतिशत है पाकिस्तान से आने वाले पंजाबियों का वोटिंग प्रतिशत 18 या 19 परसेंट है ऐसे में अगर मैं सबको छोड़ कर सिर्फ मुसलमानों की बात करूं तो ये बिल्कुल भी दुरुस्त नहीं है.
यमन, सीरिया और पाकिस्तान से हालात अच्छे हैं?
पत्रकार ने अपने एजेंडे के तहत सवाल किया इसपर खान का तरह था कि क्या आप यमन, सीरिया और पाकिस्तान की तर्ज पर जीना चाहती है जहां रोज बम धमाके होते हैं. आरिफ का मानना है कि हम अपनी खुद गर्जी से लड़ सकते हैं और किसी और चीज से नहीं लड़ सके हैं. खान का साफ साफ कहना था कि हमें पहले अपनी खुदगर्जी के खिलाफ लड़ना पड़ेगा तभी लोग हमारी बात सुनेंगे.
शिक्षा की कमी
अपनी बातों में आरिफ मोहम्मद खान ने राजा राम मोहन रॉय और सर सैय्यद का जिक्र किया और कहा कि यदि मुसलमानों को वाकई अपना कल्याण करना है तो सबसे पहले उन्हें शिक्षा से नाता जोड़ना होगा. इसके लिए उन्होंने उन लोगों जैसे देवबंद और मौलानाओं का भी जिक्र किया जो कॉन्वेंट / इंग्लिश एजुकेशन के खिलाफ हैं.
अंत में बस इतना ही कि आरिफ मोहम्मद खान द्वारा कही ये बातें उन लोगों को जरूर सुन्नी चाहिए जिनका मानना है कि 2014 के बाद से हालात खराब हुए हैं और देश का मुसलमान हाशिये पर आ गया है. आरिफ की बातें सीधी और सटीक हैं जिनका अर्थ यही है कि अगर वाकई देश का मुसलमान आज पस्ताहाली में रह रहा है तो इसका जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी हैं जिसने आजादी के बाद से लेकर आजतक मुल्क के हालात को खराब किया है.
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