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Updated: 04 अगस्त, 2020 04:59 PM
अनु रॉय
अनु रॉय
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पहले एक कश्मीरी, दिल्ली में अपने कश्मीरी होने की वजह से डरता था, अब वही कश्मीरी कश्मीर में भी अपने कश्मीरी होने के पहचान से डरता है.

मतलब आह! वाह! तालियां रुकनी नहीं चाहिए मोहतरमा शेहला राशिद (Shehla Rashid) जी के लिए. गजब. माथा घूम रहा है अभी तक मेरा. Shehla Rashid जी का अभी एक फूल-फ़्लेज़्ड इंटरव्यू Huffpost India में छपा है, वहीं से ये अमूल्य स्टेटमेंट मिला. कश्मीर (Kashmir) से अनुच्छेद 370 (Article 370) को हटाये हुए पूरा एक साल हो गया है. उसी ग़म को कम करने के लिए Huffpost ने दुःख से भरा ये इंटरव्यू मैडम का किया है. जिसमें मैडम जी ने दिल खोल कर रख दिया है. मैडम कहती है कि, 'हम से हमारी कश्मीरी होने की पहचान छीनी जा रही है. हमारी जो इंडिविजूअल्टी है वो ख़त्म हो रही है. मैं अभी से ही नोस्टेलैजिया जैसा फ़ील करने लगी हूं. 370 के हटने के बाद अब यहां विकास के नाम पर बाहर के लोग आएंगे तो हमारी पहचान इंटैक्ट कैसे रहेगी?

हम मुस्लिम, देश में माइनॉरिटी में हैं, सिर्फ़ कश्मीर में हम मेजॉरिटी में हैं. यहां हम बेख़ौफ़ इंशा अल्लाह, अल्लहम दुल्लिल्लाह बोल सकते हैं देश के दूसरे किसी कोने में नहीं. लेकिन अब तो कश्मीर में भी ये बोलने से हम कतराने लगे हैं. 370 का हटना कश्मीरियों को धोखा देने जैसा है. अब यहां की पॉलिटिक्स सिर्फ़ सेंटर के हाथों की कठपुतली है, इसलिए मैं ख़ुद को राजनीति से दूर ही रखना चाहूंगी.'

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ये सब पढ़ कर मेरे दिमाग़ में कुछ सवाल आ रहे हैं, कोई जानकार व्यक्ति हो तों मेरे मसले को सुलझाए ज़रा. सबसे पहले तो ये कि कैसे कोई उनसे उनकी कश्मीरी होने की पहचान को छीन रहा है?

भारत के हर राज्य की अपनी इंडिविजूअल्टी है, अपनी एक अलग पहचान है और वो इंटैक्ट है, तो कश्मीर का कैसे 370 हटने के बाद ख़त्म हो जाएगा? यानी देश के बाकी राज्याेें में धारा 370 नहीं है, तो क्या वहां की कोई पहचान नहीं है? मिसाल के तौर पर महाराष्ट्र का अपना अलग कल्चर है, बिहार का अलग और पंजाब का अलग जबकि ये भारत का ही हिस्सा हैं. इनसे तो कोई इनकी पहचान नहीं छीन रहा फिर कश्मीर में कश्मीरियों की पहचान कैसे छीन ली जाएगी.

और मैंने तो अपने हर मुस्लिम दोस्त को इंशा अल्लाह और अल्लहम दुल्लिलाह बोलते सुना है. इस पर तो कोई रोक देश के दूसरे राज्यों में नहीं है तो कश्मीर में भला कैसे रोक लग रही है?

मतलब कुछ भी बोल देंगे. फ़ैज़ साहेब ने यही कहा था कि 'बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे', ये नहीं कहा था कि 'बकवास बोल कि लब आजाद हैं तेरे'. बॉस, सीधी सी बात है अगर आप इस क़दर ज़हर ले कर चलेंगे अपने मन में बाक़ियों के अंदर भी आपको ज़हर ही दिखेगा. क्यों नहीं डिवेलप्मेंट की बात पर आप तवज़्ज़ो देना चाहते हैं? हो सकता है कि सच में कश्मीर के हालात बदले अगर आप वहां के लोगों के बीच हिंदुस्तानी सरकार के ख़िलाफ़ ज़हर न उगलें तो.

एक बार आप अपनी तरफ़ से दोस्ती वाला हाथ तो बढ़ाइए. मैं इतने इंटरव्यू पढ़ती रहती हूं कश्मीरी नेताओं के जिसमें आप सब अपना-अपना रोना गाना करते रहते हैं लेकिन मैं कहीं पर भी आप सबकी ज़ुबान से कश्मीरी पंडितों के लिए एक शब्द निकलते नहीं देखती हूं. आपको अपने हक़ मरते दिखते हैं लेकिन जिनके घरों पर क़ब्ज़ा करके बैठ गए हैं उनके हक़ के लिए क्यों नहीं बोलते? एक कश्मीरी मुसलमान की पहचान को लेकर आपके मन में इतना दर्द है, तो जरा ऐसा ही दर्द उन कश्मीरी पंडितों के लिए भी दिखाइए. उनसे तो उनकी पहचान ही नहीं, उनका पता ठिकाना भी छीन लिया गया है. उनके घर, जमीन, मंदिर, सब. 

क्या तब लब आज़ाद नहीं रहते आपके? हिपोक्रेट्स.

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लेखक

अनु रॉय अनु रॉय @anu.roy.31

लेखक स्वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं, और महिला-बाल अधिकारों के लिए काम करती हैं.

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