जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाना मोदी का दूसरा मास्टरस्ट्रोक
वो बालाकोट एयर स्ट्राइक ही थी जिसने भाजपा को लोकसभा चुनावों में 303 सीटों तक पहुंचाया था. अब जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाना भाजपा के लिए शुभ संकेत दे सकता है. यानी चुनावी राज्यों में इसका फायदा भाजपा को मिलना तय माना जा रहा है.
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मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर पर एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए उस राज्य को विशेष दर्जा देनेवाले आर्टिकल 370 को खत्म कर दिया. अब जम्मू कश्मीर को तोड़कर लद्दाख को अलग केंद्र शाषित राज्य बनाया जाएगा. यानी जम्मू कश्मीर विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश होगा जबकि लद्दाख बिना विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश होगा.
इसे मोदी का बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद दूसरा मास्टरस्ट्रोक भी कहा जा रहा है. ये बालाकोट एयर स्ट्राइक ही थी जिसने भाजपा को लोकसभा चुनावों में 303 सीटों तक पहुंचाया था. 2014 के लोकसभा चुनाव में इसे 282 सीटें मिली थीं और 2019 के लोकसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के आसार थे लेकिन बालाकोट एयर स्ट्राइक ने इसे पिछली बार के मुकाबले 21 सीटें ज्यादा दिलाई थीं.
हालांकि इस बार कोई लोकसभा का चुनाव तो नहीं है लेकिन भाजपा शाषित राज्य- महाराष्ट्र, झारखण्ड, हरियाणा और दिल्ली के साथ अब जम्मू कश्मीर में भी एक साथ चुनाव होने की संभावनाएं हैं. दिल्ली और जम्मू कश्मीर में भाजपा की सरकार नहीं है और यहां इसके जीतने की संभावना भी अच्छी नहीं हैं. बाकी के तीन राज्यों- महाराष्ट्र, झारखण्ड और हरियाणा में भी सरकार के खिलाफ असंतोष का खामियाजा भुगतने का डर भाजपा को सता रहा है. ऐसे में जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाना भाजपा के लिए शुभ संकेत दे सकता है. यानी चुनावी राज्यों में इसका फायदा भाजपा को मिलना तय माना जा रहा है.
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कांग्रेस को भी दो भागों में बांट दिया
मोदी सरकार ने न केवल जम्मू कश्मीर को बांटा बल्कि इससे कांग्रेस में भी अलग-अलग राय नजर आई. कांग्रेस ने जहां इसका विरोध किया वहीं इसके नेता जनार्दन द्विवेदी, दीपेंद्र सिंह हुड्डा और मिलिंद देवड़ा ने मोदी के इस फैसले का स्वागत किया.
जनार्दन द्विवेदी ने आर्टिकल 370 हटाए जाने का स्वागत करते हुए कहा, "मेरे राजनीतिक गुरु राम मनोहर लोहिया हमेशा से इस आर्टिकल के खिलाफ थे. इतिहास की एक गलती को आज सुधारा गया है."
दीपेंद्र हुड्डा ने ट्वीट कर लिखा, 'मेरी व्यक्तिगत राय रही है कि 21वीं सदी में अनुच्छेद 370 का औचित्य नहीं है और इसको हटना चाहिए. ऐसा सिर्फ देश की अखंडता के लिए ही नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर जो हमारे देश का अभिन्न अंग है, के हित में भी है. अब सरकार की यह जिम्मेदारी है कि इसका क्रियान्वयन शांति और विश्वास के वातावरण में हो.'
मिलिंद देवड़ा ने कहा- 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अनुच्छेद 370 को उदार बनाम रूढ़िवादी बहस में तब्दील कर दिया गया. पार्टियों को अपनी विचारधारा से अलग हटकर इस पर बहस करनी चाहिए कि भारत की संप्रभुता और संघवाद, जम्मू-कश्मीर में शांति, कश्मीरी युवाओं को नौकरी और कश्मीरी पंडितों के न्याय के लिए बेहतर क्या है.'
इससे पहले आर्टिकल 370 के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी के रुख से नाराज कांग्रेस के चीफ व्हिप भुबनेश्वर कलिता ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
राज्यसभा में बदलती केमिस्ट्री का फायदा उठाया
मोदी सरकार जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 को खत्म करने के लिए राज्यसभा के बदलते समीकरण का पूरजोर फायदा उठाया. या फिर ये कहें कि बहुत ही सोच समझकर चाल चली.
सबसे पहले राज्यसभा का सत्र को 26 जुलाई से बढ़ाकर 7 अगस्त तक कर दिया. विपक्षी पार्टियों के मूड भांपने के लिए पहले आरटीआई (संशोधन), ट्रिपल तलाक और यूएपीए (संशोधन) बिल लाया गया. जब इसमें सरकार को कामयाबी हासिल हो गई तब आर्टिकल 370 लाया गया. जम्मू कश्मीर को 2 हिस्सों में बांटने वाला बिल राज्यसभा से पास भी करवा लिया जिसके पक्ष में पड़े 125 और विपक्ष में 61 वोट पड़े. अब बारी लोकसभा से पास करवाने की है जो इसे संख्याबल के आधार पर कहा जा सकता है कि इसमें कहीं कोई बाधा नहीं है.
इसमें कोई शक नहीं कि मोदी सरकार ने यह चाल बहुत ही सोच-समझकर चली और विपक्षी पार्टियों के साथ ही साथ कांग्रेस को भी दो धड़ों में बांटकर रख दिया. और आने वाले समय में भाजपा के खिलाफ विपक्षी पार्टियों की एकजुटता पर भी इसका प्रभाव पड़ना तय है.
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