केजरीवाल क्या राजनीति से ऊब चुके हैं?
दुनिया के लिए राजनीति ज्यादा जरूरी है या अध्यात्म? केजरीवाल ने अपने एक ट्वीट में इसी मुद्दे पर टिप्पणी की है. कहीं ऐसा तो नहीं कि केजरीवाल को अपने गुरु अन्ना हजारे की सलाह समझ आने लगी है - 'राजनीति बहुत गंदी चीज है'.
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ऐसा लगता है मध्य प्रदेश में भी इस बार मुकाबला त्रिकोणीय होगा. सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस ने तो कमर कस ही ली है, पंजाब की तरह आम आदमी पार्टी भी जोरदार दस्तक दे रही है.
इंदौर पहुंचे आप नेता अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को खुली बहस की चुनौती दी और टॉपिक भी तय कर दिया - 'एमपी के 15 साल बनाम दिल्ली के 3 साल'.
हुआ ये कि केजरीवाल के पहुंचते ही बिजली गुल हो गयी. फिर क्या था, केजरीवाल को भी बोलने का मौका मिल गया. फिर क्या था, केजरीवाल ने शिवराज सरकार को एक और चुनौती दे डाली - "विधानसभा चुनाव में अभी चार महीने बाकी हैं... मैं शिवराज सिंह चौहान को खुला चैलेंज देता हूं... बिजली की दरों को कम करके दिखायें... जनता आपको ही वोट देगी - और अगर नहीं कर सकते हैं तो बताइए हम आपको सिखाते हैं."
शिवराज सिंह के साथ साथ केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी हमेशा की तरह हमला बोला, लेकिन ट्विटर पर एक ऐसी बात भी कह दी जिसे समझना हर उस शख्स के लिए जरूरी लगता है जिसे केजरीवाल स्टाइल पॉलिटिक्स में जरा सी भी दिलचस्पी है.
धर्म की राजनीति भी रफ्तार पकड़ चुकी है
वक्त के साथ राजनीति में बहस भी करवटें बदलती रहती है. फिलहाल न तो किसी को ये चिंता है कि हिंदुओं को कितने बच्चे पैदा करने चाहिये और ये भी नहीं कि रमजान में बिजली 24 घंटे आये तो नवरात्रों में भी वैसा ही हो. कब्रिस्तान बने तो श्मशान का भी उतना ही भव्य इंतजाम हो. ऐसी चर्चाएं शायद चुनावी माहौल में ज्यादा फिट होती हैं. मगर, इसका ये कतई मतलब नहीं कि राजनीति और धर्म को दूर रखने की कोशिशें होने लगी हैं.
आंदोलन और राजनीति के बाद कौन सी पारी का संकेत दे रहे हैं केजरीवाल
अमित शाह की अगुवाई में बीजेपी के संपर्क फॉर समर्थन की कांग्रेस कॉपी से एक नया विवाद शुरू हो चुका है. बीजेपी अब हर कदम पर 'मुस्लिम पार्टी' को लेकर कांग्रेस से जवाब मांग रही है. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भी आजमगढ़ की रैली में पूछ ही लिया - कांग्रेस बताये कि क्या वो मुस्लिम मर्दों की पार्टी है, मुस्लिम महिलाओं की नहीं. असल में बीजेपी इन दिनों मुस्लिम महिलाओं के वोट पर वाया तीन तलाक हक जताने लगी है.
मध्य प्रदेश में केजरीवाल ने भी धर्म की राजनीति को आगे बढ़ाते हुए मोदी स्टाइल में ही बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की. मोदी के बयान पर टिप्पणी के तौर पर केजरीवाल बोले, "बीजेपी मानती है कि वो हिन्दुओं की पार्टी तो हिन्दुओं के बच्चों को ही नौकरी मुहैया करा दो."
भाजपा कहती है कि वो हिंदुओं की पार्टी है। तो कम से कम हमारे हिंदुओं के बच्चों की ही नौकरी लगवा दो? हिंदुओं के बच्चों को ही अच्छी शिक्षा दिलवा दो? किसी के लिए कुछ तो करो।
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) July 15, 2018
इंडियन एक्सप्रेस में अपने कॉलम में कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने दिल्ली के पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग और मौजूदा एलजी अनिल बैजल को घेरा है. अरविंद केजरीवाल और उनके साथी चिदंबरम के कॉलम की पेपर क्लिप सोशल मीडिया पर खूब शेयर कर रहे हैं. मुस्लिम पार्टी को लेकर बीजेपी पर हमला बोल हो सकता है केजरीवाल ने एहसान चुकाने का प्रयास किया हो. वैसे सवाल तो ये भी बनता है कि कहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश में साथ मिल कर चुनाव तो नहीं लड़ने वाले?
अब इसे धर्म की राजनीति समझा जाये या राजनीतिक धर्म, एक ट्वीट में केजरीवाल ने अध्यात्म का जिक्र कर नये सवाल खड़े कर दिये हैं जिसे समझना बेहद जरूरी लगता है.
आंदोलन से राजनीति और अब अध्यात्म - माजरा क्या है?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर एक ऐसी पोस्ट शेयर की है जो उनकी मौजूदा मनोदशा की ओर इशारा करता है. अगर ऐसा नहीं है तो फिर वो केजरीवाल के किसी और सियासी चाल का हिस्सा भी हो सकता है. ट्वीट की साइज छोटी जरूर है कि लेकिन घाव गंभीर कर रहा है.
दुनिया को सियासत की नहीं, रूहानियत की ज़रूरत है।
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) July 15, 2018
केजरीवाल ने अपने सबसे भरोसेमंद साथी मनीष सिसोदिया के एक एक ट्वीट को रीट्वीट किया है जिसकी तासीर भी मिलती जुलती है.
सुप्रभात! अपने ख्यालों का ख्याल रखिये क्योकि - https://t.co/OBRp9WfJKd
— Manish Sisodia (@msisodia) July 15, 2018
अरविंद केजरीवाल आंदोलन के रास्ते राजनीति में आये थे. राजनीति में आने के साथ ही इरादा जाहिर कर दिया था वो राजनीति को बदलने आये हैं. अब तक की केजरीवाल की राजनीति को देख कर तो ऐसा ही लगता है कि राजनीतिक को बदलना तो दूर, राजनीति ने केजरीवाल को ही बदल दिया है. बीते दिनों की केजरीवाल की राजनीतिक हरकतों पर गौर करें तो पाएंगे कि उनकी आम आदमी पार्टी भी वही सारे हथकंडे अपनाती है जो बाकी सारी पार्टियां बरसों से करती आ रही हैं.
अब तक अपने राजनीतिक सफर में केजरीवाल ने धांसू बयान दिये तो कानूनी पचड़े में फंसने पर माफी भी मांग ली. दिल्ली के उप राज्यपाल से जंग में जब कभी कमजोर पड़े तो कोर्ट की शरण ली. कोर्ट से केजरीवाल को काफी मदद भी मिली है - आप विधायकों को संसदीय सचिव बनाने के मामले में भी और चुनी हुई सरकार बनाम एलजी के अधिकारों के मामले में भी.
राजनीति में आने के बाद भी केजरीवाल का सत्याग्रह रुका नहीं है. केजरीवाल के राजनीतिक विरोधी उसे अपने अपने हिसाब से परिभाषित कर सकते हैं. सीएम की कुर्सी संभालने के बाद केजरीवाल ने पुलिसवालों के खिलाफ सड़क पर धरना दिया था तो अभी अभी हफ्ते भर से ज्यादा वो साथियों के साथ एलजी के दफ्तर में डटे रहे.
प्यार और जंग में हर हथियार को जायज मानने वाले केजरीवाल भला किस रूहानियत की बात कर रहे हैं. ये केजरीवाल ही है जो भ्रष्टाचार मिटाने के लिए सिस्टम बदलने और सिस्टम बदलने के लिए राजनीति बदलने के बड़े पैरोकार रहे हैं. आखिर केजरीवाल को ऐसा क्यों लगता है कि दुनिया को सियासत नहीं रूहानियत की जरूरत आ पड़ी है. वैसे भी हर आंदोलन के बाद केजरीवाल या तो मेडिटेश करते हैं या विपश्यना या फिर किसी नेचुरोपैथी सेंटर में इलाज के लिए चले जाते हैं. जिन लोगों को केजरीवाल की जबान से शिकायत रही वो भी ऑपरेशन के बाद कब की दूर हो चुकी है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि अरविंद केजरीवाल को अपने राजनीतिक गुरु अन्ना हजारे की आध्यात्मिक सलाह समझ आने लगी है - 'राजनीति बहुत गंदी चीज है'. अगर ऐसा कुछ वाकई नहीं है तो केजरीवाल का ये ट्वीट अलर्ट है उस राजनीतिक भूकंप का जिसके बारे राहुल गांधी अब तक सिर्फ अनुमान लगाते रहे हैं या ऐलान करते रहे हैं. केजरीवाल के इस ट्वीट के पीछे या निशाने पर कहीं कपिल मिश्रा या कुमार विश्वास तो नहीं हैं?
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