तीसरे मोर्चे के लिए खतरनाक है शरद पवार की निराशा और देवगौड़ा का स्टैंड
जब लगता है कि तीसरा मोर्चा रफ्तार पकड़ने लगा है, तभी लड़खड़ाने लगता है. विपक्ष के दो सीनियर नेताओं की बातों से एक बार फिर तीसरे मोर्चे के चारों खाने चित्त होने के आसार नजर आने लगे हैं.
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तीसरा मोर्चा ऐसी रेलगाड़ी हो गयी है जो बार बार पटरी से उतरती हुई लगती है. अब तक अच्छी बात यही है कि ऐन मौके पर आगे बढ़ कर कोई न कोई उसे संभाल लेता है. हालांकि, संभालने वाली क्षमता इन्हीं दिनों दिख रही है. वरना पहले तो एक या दो मीटिंग में ही मामला निपट जाता रहा.
एक तरफ पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा हैं जो जल्द से जल्द तीसरा मोर्चा खड़ा करने पर जोर दे रहे हैं, दूसरी तरफ एनसीपी नेता शरद पवार काफी निराश लगते हैं. खास बात ये है कि ये दोनों ही नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ तीसरा मोर्चा खड़ा करने की हाल की कोशिशों में अहम भूमिका निभा रहे हैं.
शरद पवार निराश क्यों?
अभी अभी एक इंटरव्यू में शरद पवार तीसरे मोर्चे को लेकर काफी निराश दिखे. एक सवाल के जवाब में शरद पवार का कहना रहा, "ईमानदारी से कहूं तो मैं महसूस करता हूं कि कोई महागठबंधन या तीसरा मोर्चा संभव नहीं है..."
क्या तीसरे मोर्चे की उम्मीद नहीं?
शरद पवार ने वैसे तो इसे व्यक्तिगत आकलन बताया, लेकिन माना भी कि ये व्यावहारिक नहीं है. अब अगर कोई चीज व्यावहारिक नहीं है तो उसके मंजिल तक पहुंचने की संभावना ही कितनी होगी? शरद पवार ने ये भी कहा कि उनके कई साथी महागठबंधन बनाये जाने के पक्ष में हैं, लेकिन उन्हें खुद नहीं लगता कि ये क्रियान्वित हो पाएगा.
तीसरे मोर्चे से कोई चेहरा साफ तौर पर सामने आया तो उसके पीछे शरद पवार का बड़ा रोल समझा जाना चाहिये. शरद पवार ने ही एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल को ममता बनर्जी से मिलने के लिए कोलकाता भेजा. शरद पवार के ही बुलावे पर ममता बनर्जी दिल्ली आयीं - और राहुल गांधी को छोड़ कर सोनिया गांधी सहित तीसरे मोर्चे के संभावित सभी नेताओं से मुलाकात कीं. अखिलेश यादव और मायावती को भी फोन किया. मोर्चे में दिलचस्पी लेने वाले नेताओँ की तस्वीरें आयीं तो उनमें शरद पवार और ममता बनर्जी दोनों साथ साथ देखे गये.
सवाल ये है कि शरद पवार आखिर इतने निराश क्यों हैं?
शरद पवार के इस नतीजे पर पहुंचने के पीछे की वजह समझनी होगी. कहीं ऐसा तो नहीं कि शरद पवार का मन कांग्रेस नेतृत्व की ओर बढ़ने लगा है? इस बीच, देवगौड़ा ने तीसरे मोर्चे को लेकर तत्परता तो दिखायी है, लेकिन उनका स्टैंड ही अव्यावहारिक लगता है.
देवगौड़ा क्या चाहते हैं?
जेडीएस नेता देवगौड़ा को लगता है कि मोदी सरकार जिस तरह एक्टिव है उससे आम चुनाव समय से पहले होने के साफ संकेत मिल रहे हैं. देवगौड़ा को लगता है कि आम चुनाव 2019 में नहीं, बल्कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के साथ ही कराये जा सकते हैं. यही वजह है कि देवगौड़ा तीसरे मोर्चे के गठन को लेकर बहुत जल्दबाजी में लगते हैं. देवगौड़ा के मुताबिक आने वाले दिनों में वो इसी सिलसिले में गैर-एनडीए नेताओं से मुलाकात करने वाले हैं.
देवगौड़ा के बयान से उनकी मंशा कुछ और झलकती है. एक तरफ तो वो कह रहे हैं कि कांग्रेस के साथ कुछ मुद्दों पर मतभेद के बावजूद जेडीएस चुनाव मिल कर लड़ेगी. लगे हाथ वो ये भी चेता रहे हैं कि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों को हल्के में न ले. ये भी देवगौड़ा का ही कहना है कि कुमारस्वामी के शपथग्रहण में शामिल होने वाली पार्टियां सभी राज्यों में चुनाव भी मिल कर लड़ेंगी कतई जरूरी नहीं है.केजरीवाल फैक्टर का कितना रोल?
देवगौड़ा ने ये बात तब कही है जब उनके बेटे कुमारस्वामी की सरकार पर खतरा मंडराते देखा जा रहा है. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया एक वायरल वीडियो में कांग्रेस-जेडीएस सरकार को लेकर खतरनाक टिप्पणी करते सुने गये. वीडियो में सिद्धारमैया कहते हैं कि कुमारस्वामी सरकार सिर्फ साल भर की है. सिद्धारमैया ने जो बयान दिया है उससे ये वीडियो फर्जी भी नहीं लगता क्योंकि वो इसे किसी अन्य प्रसंग में कही गयी बात बताते हैं.
देवगौड़ा की बातों से तो लगता है कि वो कांग्रेस के साथ नहीं बल्कि गैर-बीजेपी मोर्चे के साथ हैं. मतलब, वो मोर्चा जिसमें कांग्रेस नहीं होगी. अब अगर ऐसे किसी मोर्चे में देवगौड़ा को जाना है तो भला कांग्रेस के साथ मिल कर 2019 का चुनाव कैसे लड़ेंगे, समझना मुश्किल हो रहा है.
केजरीवाल की भी कोई भूमिका है क्या?
पिछले दिनों जब अरविंद केजरीवाल धरने पर बैठे थे. केजरीवाल के सपोर्ट में जिन मुख्यमंत्रियों ने दिल्ली में डेरा जमाया था उनमें ममता बनर्जी और एचडी कुमारस्वामी भी शामिल थे. दो-तीन दिन के लिए तो ऐसा लगने लगा जैसे ममता बनर्जी नहीं बल्कि केजरीवाल ही नेता हों.
क्या शरद पवार की निराशा के पीछे ये भी कोई वजह हो सकती है?
एक बात तो साफ है - जिस तरह केजरीवाल के कांग्रेस से समीकरण नहीं बन पा रहे हैं, शरद पवार के साथ भी वही हाल है. काफी पहले ममता बनर्जी ने एक मीटिंग बुलाई थी जिसमें केजरीवाल को भी बुलाया था. जब केजरीवाल को पता चला कि मीटिंग शरद पवार के घर होनी है, उन्होंने किनारा कर लिया था.
ये केजरीवाल ही हैं जिनके चलते ममता बनर्जी कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्षी खेमे से दूर हुई हैं. तो क्या ममता की अगुवाई वाले तीसरे मोर्च को लेकर शरद पवार के निराश होने की यही वजह हो सकती है?
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