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Updated: 15 मई, 2020 09:55 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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दिल्ली में जीत के जश्न के बीच अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने लोगों को 'आई लव यू' बोलने के बाद कहा था कि आगे से 'काम की राजनीति' होगी. ये केजरीवाल का बीजेपी पर कटाक्ष था. तब वो परोक्ष रूप से समझाने की कोशिश कर रहे थे कि दिल्ली वालों ने उनके काम पर मुहर लगायी है. फिर जीत का क्रेडिट हनुमान जी को दे डाला - और अब तो ऐसा लगता है शासन भी बिलकुल वैराग्य भाव से चलाने लगे हैं.

लॉकडाउन 4.0 (Lockdown 4.0) की ओर बढ़ रही दिल्ली को लेकर अरविंद केजरीवाल का कहना है कि जैसा केंद्र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार से निर्देश मिलेगा वो उस पर पूरी तरह अमल करेंगे. ये तो नहीं कहा जा सकता कि कोरोना वायरस की महामारी और लॉकडाउन के बीच भी अरविंद केजरीवाल दिल्ली वालों के बीच वैसे ही बने हुए हैं जैसे चुनाव बाद हुए दंगे के वक्त देखे गये थे, लेकिन उनके राजनीतिक तौर तरीके बड़े ही बदले बदले से लगते हैं - फिलहाल तो जिस तरीके से अरविंद केजरीवाल दिल्ली में सरकार चला रहे हैं, ऐसा लगता है अगले चुनाव तक क्रेडिट लेने के लिए उनके पास कोई काम बचेगा भी नहीं!

केंद्र सरकार को दिल्ली के सुझाव

दिल्ली वालों को लॉकडाउन के अगले चरण को लेकर राय देने के लिए एक दिन की ही मोहलत मिली थी, लेकिन फिर भी लोगों ने जी खोल कर सुझाव दिये. सुझाव देने का मामला तो ऐसा है कि यहां के लोगों से मुकाबले में पूरी दुनिया पिछड़ सकती है. यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल बाकी कोई काम भले ही भूल जायें दिल्ली वालों से सुझाव लेना नहीं भूलते.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बताते हैं, 'हमने लोगों से राय मांगी थी... हमें 5 लाख से ज्यादा सुझाव मिले हैं... इनके आधार पर हम केंद्र को प्रस्ताव भेजेंगे... केंद्र जो भी फैसला लेगा, उसके आधार पर आने वाले सोमवार से आर्थिक गतिविधियों में छूट दे दी जाएगी.'

मतलब, एक बात मान लिया जाये कि लॉकडाउन को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री डाकिया की भूमिका निभाने जैसी बातें कर रहे हैं. जो लोगों ने बताया वो केंद्र सरकार को बता देंगे और जो केंद्र सरकार बताएगी उसे लागू कर देंगे. ये भी ठीक है, लेकिन ये अरविंद केजरीवाल की राजनीति के लिए तो कतई ठीक नहीं लगती. अगर वास्तव में अरविंद केजरीवाल 'जो कह रहे हैं वो कर रहे हैं' के सिद्धांत पर चल रहे हैं तो. बहरहाल, पहले ये जान लेते हैं कि दिल्ली वाले लॉकडाउन 4.0 में चाहते क्या हैं?

1. ज्यादातर लोगों का कहना है कि मास्क नहीं पहनने वालों और सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल नहीं करने वालों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिये.

2. दिल्ली के लोग चाहते हैं सुबह पार्क में मॉर्निंग वॉक की इजाजत मिलनी चाहिये, लेकिन मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ही.

3. ज्‍यादातर लोगों का ये भी मानना है कि ऑटो औरटैक्सी सर्विस चालू होनी चाहिये, लेकिन शर्त वही हो - सोशल डिस्‍टेंसिंग के साथ.

4. दिल्ली के लोगों का मानना है कि ऑटो में भी और टैक्सी में भी एक ही सवारी चलनी चाहिये, साथ में बसें भी चलायी जानी चाहिये.

5. लेकिन लोग ये नहीं चाहते कि शाम 7:00 बजे के बाद घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगे क्योंकि इसका कोई मतलब नहीं है.

6. ज्यादातर लोगों ने गर्मियों की छुट्टियों तक स्कूल और बाकी शैक्षणिक संस्थान बंद रखने का सुझाव दिया है.

7. बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका मानना है कि होटल तो बंद रहें, लेकिन टेक-अवे और होम डिलीवरी के लिए रेस्टोरेंट खुले रखे जायें.

8. हां, लगभग सभी इस बात पर एक राय हैं कि हेयर कटिंग सैलून, स्पा, सिनेमा हॉल और स्विमिंग पूल अभी बंद ही रहने देने चाहिये.

9. काफी सारे लोग इस बात के हिमायती हैं कि ऑड-ईवन के आधार पर बाजार खोले जाने चाहिये, ऐसा ही सुझाव मार्केट संगठनों का भी है.

10. जहां तक दिल्ली मेट्रो का सवाल है अभी लोग मानते हैं कि मेट्रो सर्विस में ज्यादा छूट देना ठीक नहीं होगा.

लोगों की राय अपनी जगह है लेकिन दिल्ली मेट्रो ने अपनी तरफ से तैयारी शुरू कर दी है. अभी ये तो नहीं साफ है कि दिल्ली मेट्रो कब शुरू होने जा रही है, लेकिन अंदर बैठने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के इंतजाम किये जरूर जा रहे हैं.

delhi metro in lockdown 4.0दिल्ली मेट्रो में सोशल डिस्टेंसिंग की ऐसे चल रही है तैयारी

कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन!

लॉकडाउन 4.0 को लेकर सुझाव देने के लिए मुख्यमंत्रियों को 15 मई की डेडलाइन मिली थी. बाकियों के साथ साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी इस काम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो बैठक खत्म होने के साथ ही जुट गये थे.

हर किसी की काम करने की अपनी स्टाइल होती है. AAP नेता अरविंद केजरीवाल ज्यादातर काम दिल्ली के लोगों से पूछ कर ही करते हैं. चाहे वो चुनाव मैनिफेस्टो तैयार करना हो या कोई और काम. लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी को लॉकडाउन 4.0 के सुझाव के लिए भी वो लोगों के बीच चले गये.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुझाव लाखों में मिले हैं जिसे वो प्रधानमंत्री मोदी को भेज देंगे. मुख्यमंत्री केजरीवाल का कहना है कि वो ये सुझाव केंद्र को भेज देंगे और जो दिशानिर्देश मोदी सरकार की ओर से मिलेंगे उसे लागू करेंगे.

केंद्र के दिशानिर्देश पर तो सभी सरकारों को अमल करना है. ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल सरकार पर तो यही तोहमत लग रही है कि वो लॉकडाउन के दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रही हैं और उनका पक्ष है कि उनके साथ केंद्र राजनीति कर रहा है जो ऐसे महामारी के वक्त नहीं किया जाना चाहिये. ये कोई गलत बात तो हो भी नहीं सकती कि अरविंद केजरीवाल केंद्र के दिशानिर्देशों पर पूरी तरह अमल कर रहे हैं.

जब देश के कई राज्य अपने तरीके से लॉकडाउन लागू करने की बात कर रहे हैं तो क्या दिल्ली में ऐसी कोई जरूरत नहीं लगती. आखिर दिल्ली भी तो देश के सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्यों में से एक है. गुजरात जैसे बीजेपी के कुछ मुख्यमंत्री तो आगे लॉकडाउन बढ़ाये जाने के पक्ष में ही नहीं है, लैकिन कैप्टन अरिंदर सिंह जैसे कुछ मुख्यमंत्री चाहते हैं कि कलर जोन निर्धारित करने और आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने का अधिकार राज्य सरकारों को मिलना चाहिये.

अरविंद केजरीवाल के बयान से तो ऐसा लगता है जैसे लॉकडाउन 4.0 में उनके जिम्मे कोई काम ही नहीं बच रहा है. दिल्ली के लोगों का सुझाव केंद्र सरकार को भेज देना है और केंद्र से मिले दिशा निर्देश पर अमल करना है. ये काम तो दिल्ली की सरकारी मशीनरी अपनेआप भी कर लेगी, फिर दिल्ली सरकार की जरूरत ही क्या है?

पहले तो अरविंद केजरीवाल यही लड़ाई लड़ते रहे कि दिल्ली का अच्छा बुरा सोचने की जिम्मेदारी उनकी है क्योंकि वो जनता की चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री हैं. सड़क से लेकर अदालतों तक तो वो इसी बात की लड़ाई लड़ते रहे कि सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री को एक चपरासी रखने और अधिकारियों ट्रांसफर तक का अधिकार नहीं है.

जब सारे दिशानिर्देश केंद्र की बीजेपी सरकार ही कर रही है तो दिल्ली में उसे लागू तो अफसर और दिल्ली सरकार के कर्मचारी भी कर लेंगे - फिर केजरीवाल सरकार क्या बताएगी कि उसकी उपलब्धि क्या है?

अगर ऐसे ही सब काम होते रहे तो सवाल ये भी तो उठेगा कि AAP की सरकार की जरूरत क्या है? और कोई सवाल उठाये न उठाये बीजेपी तो उठाएगी ही. बस एक आरोप बीजेपी नहीं लगा सकती कि अरविंद केजरीवाल की सरकार केंद्र सरकार की योजनाओं को दिल्ली के लोगों तक पहुंचने नहीं देते या बाधा बन कर खड़े हो जाते हैं.

अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि लोगों को कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा, लेकिन यहां तो ऐसा लगता है जैसे वो कोरोना की तरह बीजेपी के साथ जीना सीख चुके हों - अब न तो वो विरोध की आवाज हैं - और न ही किसी आंदोलनकारी राजनीति के प्रणेता लगते हैं. ये ऐसा लगता है जैसे अरविंद केजरीवाल भी अब वही कर रहे हैं जो नीतीश कुमार, योगी आदित्यनाथ या शिवराज सिंह अपने अपने राज्यों में कर रहे हैं.

क्या ये सब अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक शैली के लिए स्वाभाविक लगता है? कतई नहीं. फिर तो ये अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक कॅरियर के लिए सबसे बड़ा खतरा है. आखिर आगे चल कर आने वाले चुनावों में अरविंद केजरीवाल लोगों को क्या समझाएंगे कि वो बीजेपी से क्यों अलग हैं? चुनाव के बाद अब तक की अरविंद केजरीवाल की उपलब्धियों में तो अलग से कुछ दर्ज तो हो पाया है नहीं. दिल्ली में दंगे हुए तो वो दिल्ली पुलिस की खामियों के चलते, लेकिन दिल्ली सरकार की तरफ से कोई उल्लेखनीय बात भी रही क्या? अगर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का शासन अलग नहीं हैं तो केंद्र की तरह दिल्ली में भी बीजेपी को वोट देने में क्या बुराई है? जब बीजेपी के नेता दिल्ली वालों को ये बात समझाएंगे तो अरविंद केजरीवाल के पास काउंटर के क्या उपाय होंगे?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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