Kejriwal की देशभक्ति और हनुमान भक्ति का दिल्ली चुनाव से रिश्ता क्या?
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) क्यों दिल्ली चुनाव (Delhi Election 2020) के आखिरी वक्त में देशभक्ति और हनुमान भक्ति (Hanuman and Nationalism now poll issues) पर अपना स्टैंड बताने लगे हैं? क्या AAP नेता को पांच साल में किये गये अपने कामों पर भरोसा नहीं रहा?
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) अभी तक दिल्ली में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं में सुधार को लेकर चुनाव मैदान (Delhi Election 2020) में आगे बढ़ रहे थे, लेकिन अचानक वो कभी हनुमान भक्ति (Hanuman and Nationalism now poll issues) की बात करते हैं तो कभी सफाई में खुद को कट्टर देशभक्त होने का दावा करते हैं. सवाल ये है कि क्या अरविंद केजरीवाल विरोधियों के बिछाये जाल में फंस चुके हैं? या खुद ही बोये हुए बीजों के फसल काटने को मजबूर हो रहे हैं?
जिस तरह शाहीन बाग (Shaheen Bagh) न जाने को लेकर अरविंद केजरीवाल अपने स्टैंड पर कायम हैं. जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले करने से बचते आ रहे हैं. जिस तरह निर्भया के दोषियों की फांसी टालने के सवालों पर दो टूक बयान देकर आगे बढ़ जाते हैं - हनुमान भक्ति और देशभक्ति पर जवाब देने में लंबा वक्त क्यों ले रहे हैं?
कुछ तो बात है, अगर ऐसा नहीं होता तो स्कूली पाठ्यक्रम में देशभक्ति की पढ़ाई पर शायद ही इतनी चर्चा होती?
दिल्ली चुनाव के लिए वोटिंग से पहले ऐसा लगता है राष्ट्रवाद ने बाकी मुद्दों को पीछे छोड़ दिया है, वरना अरविंद केजरीवाल ऐसी चीजों की परवाह ही क्यों करते?
केजरीवाल और उनका 'भक्तिकाल'!
पहले सेवाकाल, फिर आंदोलनकाल और राजनीतिकाल के बाद, फिलहाल अरविंद केजरीवाल का भक्तिकाल चल रहा है. केजरीवाल के भक्तिकाल में भी दो शाखाओं का समावेश लगता है - हनुमान भक्ति शाखा और देशभक्ति शाखा.
हनुमान भक्ति शाखा में अभी उनके जातीय विचार जैसे दलित हनुमान या ऐसे कुछ और अन्वेषण अभी सामने तो नहीं आ पाये हैं लेकिन देशभक्ति शाखा में सॉफ्ट राष्ट्रवाद की सुगंध महसूस की जाने लगी है.
केजरीवाल को लेकर अराजकतावादी और आंतकवादी विपक्षी बहस के बीच भक्तिकाल के प्रादुर्भाव में उनका टीवी पर हनुमान चालीसा का पाठ और दिल्ली का स्कूली पाठ्यक्रम ही है. दिल्ली चुनाव कैंपेन के दरम्यान बहस चल पड़ी है कि केजरीवाल ने विकास के मुद्दे से पलटी मारते हुए स्कूली पाठ्यक्रम में खुशी (Happiness), उद्यमिता (Entrepreneurship) और आखिरकार देशभक्ति (Patriotrism) जोड़ कर बीजेपी को काउंटर करने की रणनीति बनायी है.
वैसे भी ये तीनों बीजेपी के खांचे में बड़े आराम से फिट हो जाते हैं - हैपिनेस में सहज तौर पर 'अच्छे दिन' महसूस किये जा सकते हैं, उद्यमिता में कौशल विकास और देशभक्ति में बीजेपी का एजेंडा राष्ट्रवाद पूरी तरह फिट हो जा रहा है.
सवाल ये है कि दिल्ली में काम और राजधानी के विकास की बात करने वाले अरविंद केजरीवाल को ऐसी जरूरत क्यों पड़ने लगी है?
क्या BJP की चाल में उलझ गये हैं अरविंद केजरीवाल?
क्या वाकई केजरीवाल को लगता है कि दिल्ली चुनाव में AAP के साथ कदम कदम पर दो-दो हाथ कर रही बीजेपी राष्ट्रवाद के एजेंडे को लेकर लोगों की धारणा बदलने में कामयाब हो चुकी है? क्या वाकई केजरीवाल को लगने लगा है कि बीजेपी से मुकाबले के लिए आम आदमी पार्टी को उसके एजेंडे में घुसपैठ करनी पड़ेगी?
तो क्या अरविंद केजरीवाल भी उसी रास्ते पर चल पड़े हैं जिस पर लंबा वक्त गुजार कर राहुल गांधी फेल हो चुके हैं?
ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब खोजने पर भी मिलेंगे तो जरूर लेकिन नतीजे आने के बाद ही - और तब तक सिर्फ कयासों से ही काम चलाना पड़ेगा.
केजरीवाल की देशभक्ति पर सवाल क्यों?
अरविंद केजरीवाल आंदोलन के रास्ते नये तरीके की राजनीति के वादे के साथ सत्ता में आये, लेकिन जल्द ही सारे दावों पर पानी फिरने लगा. रंग उतरने लगे. अरविंद केजरीवाल की पार्टी भी उसी रास्ते पर चल पड़ी जो पहले से मैदान में डटी हुई हैं.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन दिनों घूम घूम कर कह रहे हैं कि बीजेपी नेताओं की तरफ से उनको आतंकवादी बताये जाने से वो तो दुखी हैं ही उनके माता-पिता ज्यादा दुखी हैं. मुख्यमंत्री की बेटी हर्षिता केजरीवाल भी बीजेपी के इस हमले को लोगों से जनसंपर्क के दौरान उठा रही हैं - और पत्नी सुनीता केजरीवाल भी.
सवाल ये है कि अरविंद केजरीवाल को देशभक्ति के मुद्दे पर जवाब क्यों देने पड़ रहे हैं?
दरअसल, कोई और या कोई विरोधी राजनीतिक दल या उसका नेता नहीं ये खुद केजरीवाल ही हैं जो इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार माने जाएंगे. बीजेपी ने केजरीवाल की उन्हीं कमजोर नसों पर चोट किया है जो ऊपर से नजर आ रही हैं. अरविंद केजरीवाल की नीयत अपनी जगह सही हो सकती है, लेकिन कम से कम दो ऐसी बातें हैं जो अरविंद केजरीवाल को सवालों के कठघरे में खड़ा करने का मौका दे देती हैं.
एक है सर्जिकल स्ट्राइक पर अरविंद केजरीवाल का वीडियो बयान और दूसरा है कन्हैया कुमार केस में दिल्ली सरकार की हीलाहवाली. ये दोनों ही मामले ऐसे हैं जो अरविंद केजरीवाल के विरोधियों को राजनीतिक हमले के लिए आसानी से ईंधन मुहैया करा रहे हैं.
2016 के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जब विपक्ष की तरफ से सबूतों को लेकर सवाल किये जा रहे थे तभी अरविंद केजरीवाल की तरफ से एक वीडियो बयान जारी किया गया - अपने बयान में अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सलाह दी थी कि वो सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत पाकिस्तान के मुंह पर दे मारें. ये बयान तीखी टिप्पणी तो थी ही, साफ साफ लग रहा था कि अरविंद केजरीवाल सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रहे थे. बाद में जब भी मौका मिला है बीजेपी ये मामला उछालती रही है.
कन्हैया कुमार के केस में दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अप्रूवल की जरूरत है. ये दिल्ली पुलिस को कोर्ट में जमा करना है. ये मामला कई बार उठ चुका है. ये ठीक है कि सरकार के कामकाज के कुछ नियम होते हैं और उनके तहत ही फैसले होते हैं - लेकिन इस मसले पर न तो आम आदमी पार्टी और न ही दिल्ली सरकार की तरफ से कोई स्पष्ट बयान आया है. बीजेपी इसे सीधे राष्ट्रवाद से जोड़ देती है - और अरविंद केजरीवाल को जवाब देने पड़ते हैं.
अरविंद केजरीवाल का याद दिला रहे हैं कि वो देश में हुए अन्ना आंदोलन की उपज हैं जिसमें उन लोगों ने हर बच्चे के हाथ में तिरंगा थमाया था - और अन्ना हजारे के मंच पर भी तिरंगा ही लहराया करता रहा.
अरविंद केजरीवाल खुद को कट्टर देशभक्त बता रहे हैं - सवाल तो यही है कि संविधान की शपथ लिये किसी मुख्यमंत्री के सामने ऐसे सवाल पूछे जाने की नौबत ही क्यों आ रही है? समझने वाली बात तो ये भी है कि जिस तरह बयान देकर बीजेपी नेता अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी बता रहे हैं, वैसे ही तो आप नेता ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कायर और मनोरोगी बता दिया था - लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उस पर कभी रिएक्ट ही नहीं किया.
केजरीवाल और राहुल गांधी की भक्ति में फर्क
देश की राजनीति में भक्तिमार्ग पर बहस चले तो अरविंद केजरीवाल के साथ साथ राहुल गांधी का नाम भी अपनेआप जुड़ जाता है - दोनों के भक्तिमार्ग में कुछ तो कॉमन है लेकिन बुनियादी फर्क भी है.
अरविंद केजरीवाल की देशभक्ति को सॉफ्ट-राष्ट्रवाद के तौर पर देखा जाने लगा है, ठीक वैसे ही जैसे कई चुनावों में राहुल गांधी सॉफ्ट-हिंदुत्व के प्रयोग कर चुके हैं.
अरविंद केजरीवाल का भक्तिमार्ग उनकी आम आदमी वाली छवि में काफी हद तक छुप भी जाता है. जैसे हनुमान चालीसा पढ़ने वाला कोई आम आदमी हो. अरविंद केजरीवाल के हाव-भाव, रहन-सहन भी आम आदमी वाले रहे हैं. अपने परिवार को भी वैसे ही प्रोजेक्ट करना जैसे कोई भी मध्यमवर्गीय परिवार होता है. माता-पिता के आशीर्वाद लेना और पैर छूकर, टीका लगा कर घर से निकलना.
राहुल गांधी के केस में ये सब काफी अलग नजर आता था. राहुल गांधी का भक्तिमार्ग सिर्फ चुनावों के वक्त ही अचानक सामने आया. अचानक ही राहुल गांधी को कांग्रेस नेता जनेऊधारी शिवभक्त हिंदू साबित करने में जुट गये - कम से कम अरविंद केजरीवाल के सामने ऐसा कोई संकट खड़ा नहीं हुआ.
सिक्योरिटी लेने से इंकार करते वक्त भी अरविंद केजरीवाल भगवान पर भरोसे की ही बात किया करते रहे. ये बात अलग है कि बीजेपी अब उनके बयानों को लेकर उन्हें झूठा बोलने लगी है. बीजेपी नेता रैलियों में कह रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल सरकारी सुविधाएं लेने और सुरक्षा लेने से इंकार करते रहे और धीरे धीरे सब फायदे उठाने लगे.
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