गोरखपुर से कैराना तक योगी फेल रहे, इसलिए 2014 दोहराने वास्ते मोदी-शाह मैदान में
योगी से नाउम्मीद हो चुका बीजेपी नेतृत्व अब सिर्फ अपने करिश्माई चेहरे के भरोसे है. खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब हर महीने एक बार यूपी का दौरा किया करेंगे - और आस पास ही अमित शाह भी कहीं न कहीं मीटिंग करते नजर आएंगे.
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यूपी में मोदी-शाह की जोड़ी पूरे दमखम के साथ उतरने जा रही है. निशाने पर है मायावती और अखिलेश यादव की हाल में हिट रही जोड़ी. साथ में, काफी हद तक, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नाउम्मीदी भी समझी जा सकती है. योगी न तो गोरखपुर में इज्जत बचा पाये और न ही कैराना में कोई कमाल दिखा पाये. योगी की ये चूक बीजेपी नेतृत्व के लिए भारी नुकसान साबित हुई, न सिर्फ सांसद घटे बल्कि समर्थकों और कार्यकर्ताओं के जोश पर भी फर्क पड़ा है. बीजेपी नेतृत्व को पता है, अगर मैदान-ए-जंग में ब्रह्मास्त्र नहीं उतारा तो 2019 में वैतरणी पार कर पाना आसान नहीं होगा.
बीजेपी नेतृत्व यही सब सोच कर सूबे में जोरदार मौजूदगी दर्ज कराने जा रहा है. अब यूपी के बीजेपी समर्थकों को हर महीने कम से कम एक बार 'मोदी-मोदी' बोलने का मौका भी मिलने वाला है. साथ ही, शाह भी कहीं न कहीं यूपी के किसी कोने में घूमते नजर आएंगे. असल में शाह माइक्रो लेवल पर फोकस कर रहे हैं. कुछ कुछ वैसे ही जैसे दिल्ली के एमसीडी चुनावों में शाह की दिलचस्पी देखने को मिली थी. फिर तो वैसे ही नतीजे आने चाहिये.
सावधान, आगे खतरनाक मोड़ है!
ऐसा लगता है अमित शाह ने जानबूझ कर हाल के उपचुनावों को मुख्यमंत्रियों के लिए मंथली टेस्ट जैसा बना दिया. उपचुनावों की पूरी जिम्मेदारी उस मुख्यमंत्री पर रही जिस राज्य में उपचुनाव हुए. हाल के उपचुनावों में तो तीनों सीएम फेल रहे - राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सभी के. शिवराज सिंह चौहान तो बस गुना में हुए दो ही विधानसभा सीटों के चुनाव हारे, वसुंधरा राजे सिंधिया और योगी आदित्यनाथ तो सब कुछ लुटा बैठे. पहले के उपचुनावों में शिवराज को मिली कामयाबी भी मुंगावली और कोलारस की हार में धुल कर मिट्टी में मिल गयी.
2014 दोहराने की चुनौती!
दरअसल, अब तक ऐसा कोई सर्वे नहीं आया है जिसमें 2019 में बीजेपी की सत्ता में वापसी पर शक जताया गया हो. मगर, सर्वे ये जरूर बता रहे हैं कि उत्तर भारत के नतीजे 2014 जैसे नहीं होंगे. एक सर्वे में तो पता चला कि बीजेपी दक्षिण भारत से भले सीटों की भरपाई कर ले लेकिन उत्तर भारत से उसे 56 सीटें कम मिल सकती हैं और उनमें अकेले यूपी से 46 होंगी. 10 सीटों के नुकसान का अनुमान है, लेकिन चुनाव में अभी बहुत वक्त है इसलिए कुछ भी हो सकता है.
यही वजह है कि मोर्चा अब बीजेपी नेतृत्व खुद संभालने जा रहा है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह मिलकर विरोधियों को मैदान में शिकस्त देने की कोशिश करेंगे. हालांकि, इस कवायद में ज्यादा जोर उत्तर प्रदेश पर ही होगा. योगी आदित्यनाथ के इलाके में मोदी-शाह की मौजूदगी अपनेआप में बड़ा संकेत है. लिहाजा शिवराज सिंह और वसुंधरा राजे को भी समझ लेना चाहिये और खुद योगी आदित्यनाथ को भी.
अबकी बार, यूपी में बार बार मोदी-शाह
वैसे तो काशी के बाद मगहर का नंबर आता है. मगर, मगहर घूम आये प्रधानमंत्री मोदी के लिए अगला पड़ाव काशी तो बनता ही है. काशी यानी वाराणसी जो प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है. बताते हैं कि 15 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी का काशी दौरा हो सकता है. 15 के ही आगे पीछे मोदी की आजमगढ़ में भी रैली हो सकती है, हालांकि, तारीख अभी तक मुकर्रर नहीं हुई है. आजमगढ़ मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र है, लेकिन माना जा रहा है कि अगली बार मुलायम सिंह अपना चुनाव क्षेत्र बदल सकते हैं.
जुलाई में ही अमित शाह भी वाराणसी धावा बोलने वाले हैं, लेकिन उनका प्रोग्राम प्रधानमंत्री मोदी से पहले बन रहा है. दरअसल, अमित शाह 4 जुलाई को पूर्वांचल के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ मिर्जापुर में मीटिंग करने वाले हैं. इस मीटिंग में केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के सहयोगी अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल भी हिस्सा लेंगी. जाहिर है ये मीटिंग सिर्फ बीजेपी की नहीं होगी, इसलिए इसे एनडीए की मीटिंग मानी जानी चाहिये.
मिर्जापुर की मीटिंग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि शाह बीजेपी के विस्तारकों के साथ बैठक करेंगे. विस्तारक, बीजेपी के बूथ लेवल कार्यकर्ता ही होते हैं लेकिन उनका काम लोगों से निरंतर मिलते रहना होता है - और पार्टी के राजनीतिक विस्तार की कोशिश करनी होती है. अमित शाह पहले भी विस्तारकों से कम से कम 15 सदस्य बनाने की अपेक्षा जता चुके हैं. साथ ही चाहते हैं कि शहरी क्षेत्र का विस्तारक अपने बूथ पर कम से कम एक दिन और ग्रामीण क्षेत्र का विस्तारक तीन दिन अपने बूथ पर जरूर बिताये.
अब तो बस 'मोदी-मोदी' से ही आस
खबर है कि प्रधानमंत्री मोदी हर महीने कम से एक बार यूपी का दौरा जरूर करेंगे. दो बातें इससे साफ हैं - एक, अखिलेश-मायावती की हिट जोड़ी की चुनौती को बीजेपी गंभीरता से लेने लगी है. दूसरा, अखिलेश यादव और मायावती की जोड़ी के सामने अब सिर्फ योगी एंड कंपनी नहीं बल्कि मोदी और शाह होंगे, फिर तो मुश्किल बढ़नी तय है.
गोरखपुर-फूलपुर, कैराना और नूरपुर - तीन मौके कम नहीं होते...
बीजेपी भी मान कर चल रही है कि 2019 में 2014 को दोहराया जाना बेहद मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन भी तो नहीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी गठबंधन ने यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 73 सीटें हथिया ली थी. बीजेपी के बाद अगर कोई जीत पाया तो वो रहा - गांधी परिवार और मुलायम परिवार. दो सीटें कांग्रेस ने जीती थी और पांच समाजवादी पार्टी के हिस्से में आयी थीं. मायावती की बीएसपी और अजीत सिंह की आरएलडी का तो खाता तक न खुला. कैराना की जीत के बाद आरएलडी संसद में हाजिरी लगाने के काबिल जरूर हो गयी है.
चुनावी राजनीति में योगी भले ही फेल हो रहे हों, लेकिन बीजेपी के पास एक करिश्माई चेहरा तो है ही - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव और उसके बाद गुजरात चुनाव में बीजेपी अगर जीत हासिल कर सकी तो उसके पीछे वही चेहरा है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. संघ ने भी जब 2017 में उसे लगा कि काशी क्षेत्र में मामला गड़बड़ा सकता है तो मोदी को सड़क पर उतार दिया था - देखा भी गया काशीवासी किस कदर मोदी के रोड शो में शामिल हुए और फिर दिल खोल कर वोट भी दिये.
मोदी की रैलियों के बीच शाह जगह जगह कार्यकर्ताओं से मीटिंग कर उनकी समस्याएं सुलझाने की कोशिश करेंगे. शाह का जोर फीडबैक पर होगा और कोशिश होगी कि उनके बीच आपसी मनमुटाव यथाशीघ्र खत्म हो सके.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की मीटिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे की तैयारियों का जायजा लेने योगी आदित्यनाथ वाराणसी भी हो आये हैं. कबीरदास के नजरिये से देखें तो मगहर और काशी में कोई फर्क नहीं है. मगर, योगी आदित्यनाथ के हिसाब से तो बहुत बड़ा फर्क है. कम से कम काशी में मगहर की तरह योगी को टोपी पहनाने की जुर्रत तो कोई नहीं ही कर सकता.
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