गुलाम मोहम्मद की मां ने जो कहा, वो 'अपराधियों' की पैरवी करने वालों को सुनना चाहिए!
एनकाउंटर में मारे गए उमेश पाल के हत्यारे गुलाम मोहम्मद का शव लेने से उसकी मां और भाई ने इनकार कर दिया है. जबकि अतीक का परिवार और उसके हिमायती असद को 'शहीद' बनाने पर तुले हैं. दोनों ओर के लोगों में फर्क है संस्कारों का...
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झांसी के पारीक्षा डैम के पास यूपी एसटीएफ का माफिया डॉन अतीक अहमद के बेटे और 5 लाख रुपए के ईनामी असद अहमद और शूटर गुलाम को ढेर करना भर था. यूपी पुलिस द्वारा किये गए इस एनकाउंटर पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गए हैं. चाहे वो यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव हों या फिर एआईएमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी और संभल से ही समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क हर कोई बार बार इसी बात को दोहरा रहा है कि यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बदले की राजनीति को अंजाम दे रहे हैं और संविधान को ताख पर रखकर गन कल्चर को बढ़ावा दिया जा रहा है. एनकाउंटर सच है या स्क्रिप्टेड इसका फैसला तो वक़्त करेगा लेकिन जो वर्तमान है वो स्वतः इस बात की तस्दीक कर देता है कि इस एनकाउंटर से यूपी जैसे बड़ी आबादी वाले राज्य में अपराधियों के हौसले पस्त हुए हैं और उनके बीच डर का माहौल है.
झांसी में असद और गुलाम का एनकाउंटर अपने में कई अहम सवाल खड़े करता नजर आ रहा है
एक ऐसे समय में जब असद और गुलाम का एनकाउंटर हॉट टॉपिक हो, इससे जुडी हर बात लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रही है. सवाल इनकी लाशों को लेकर भी हो रहा है. ऐसे में शायद आपको ये जानकार हैरत हो कि लाशों को लेकर गुलाम और असद के घरवालों का रवैया बहुत अलग है. गुलाम के घरवाले जहां गुलाम को हत्यारा और अपराधी मान रहे हैं तो वहीं असद के परिजनों के बीच बेशर्मी का आलम कुछ ऐसा है कि वो उसे पेशेवर अपराधी होने के बावजूद किसी संत, किसी औलिया की तरह देख रहे हैं.
बताते चलें कि एनकाउंटर में मारे गए उमेश पाल के हत्यारे गुलाम मोहम्मद का शव लेने से उसकी मां और भाई ने इनकार कर दिया है. जबकि अतीक का परिवार और उसके हिमायती असद को 'शहीद' बनाने पर तुले हैं. असद के घरवालों का रवैया तो कुछ ऐसा ही है जैसे पुलिस ने उसे जबरिया फंसायाऔर बाद में मौत के घाट उतार दिया. खुद सोचिये कि वो दो अपराधी जिनका खात्मा पुलिस ने अपनी गोली से किया कितना विरोधाभास दिख रहा है उनके परिजनों की सोच में. सीधे सीधे ही हमें इस एनकाउंटर ने दोनों ही परिवारों के संस्कारों के दर्शन करा दिए हैं.
पहले सुन लीजिये क्या कह रही है गुलाम मोहम्मद की मां
बात परिवारों के संस्कारों की और सही को सही और गलत को गलत कहने की हुई है इसलिए इस मामले पर हमें अतीक के शूटर गुलाम की मां की बातों को जरूर सुनना चाहिए. एनकाउंटर के बाद गुलाम की मां से मीडिया ने बात की है और शायद आपको हैरत हो एक मां होने के बावजूद गुलाम की मां इस एनकाउंटर को जायज ठहरा रही है.
#WATCH | Prayagraj, UP: "The action taken by the government is absolutely correct. All gangsters and criminals will take a lesson from this. I had no idea that he (my son) used to work for gangster Atiq Ahmed. I will not receive his body, maybe his wife will receive it," says… pic.twitter.com/9oqwnwYd2i
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) April 14, 2023
मीडिया से बात करते हुए गुलाम की मां ने कहा है कि पुलिस ने जो एक्शन उसके बेटे के खिलाफ लिया है वो पूरी तरह से सही है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा है कि वो लोग जो बुरा या गलत काम करते हैं उन्हें इस एनकाउंटर से ज़िंदगी भर सबक मिलेगा. वहीं उन्होंने ये भी कहा है कि वो किसी भी हाल में गुलाम का शव नहीं लेंगी.
असद, जिसे बचपन में ही अतीक ने पिस्तौल थमा दी थी
माफिया का बेटा है माफिया ही बनेगा भले ही इस कहावत पर लोगों की मिली जुली प्रतिक्रियाएं आएं लेकिन जब हम इस कहावत को असद अहमद के संदर्भ में देखते हैं तो मिलता है कि असद कोई आज ही अपराधी नहीं बना था. चाहे वो पिता अतीक रहा हो या फिर चाचा अशरफ दोनों ने ही असद को बचपन से ही किसी बच्चे की तरह नहीं बल्कि एक अपराधी की तरह देखा.
जानकारी ये भी सामने आई है कि अशरफ जो कि असद को दिलो जान से मानता था चाहता था कि असद अपराधी बने और शायद यही वो कारण था कि जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते हैं असद उस वक़्त गोली चला रहा था, बंदूकों से खेल रहा था. प्रयागराज और आस पास में किस्सा ये भी मशहूर है कि अशरफ को जब भी किसी शादी में जाने का निमंत्रण मिलता वो अपने साथ असद को भी ले जाता और शादियों में उससे हवाई फायरिंग करवाता. शायद अशरफ के मन में ये मंशा रही हो कि ऐसा करके वो बच्चे के दिल से असलहों का खौफ निकालने में कामयाब होगा.
सोचने वाली बात ये है कि जब मां बात खुद बच्चों के नाजुक हाथों में असलहे सौंप रहे हैं तो उनका दुर्दांत अपराधी बनना और एनकाउंटर में मारा जाना दोनों ही संभव है.
एनकाउंटर की एफआईआर जैसी भी हो, हकीकत ये है कि इंसाफ हुआ है
झांसी में असद और गुलाम के एनकाउंटर के बाद वो एफआईआर भी चर्चा में है जिसे यूपी पुलिस ने पेश किया है. तमाम लूपहोल हैं जो इस एफआईआर के जरिये बाहर आ रहे हैं. चाहे वो राजनीतिक दल हों या फिर बुद्धिजीवी वो तमाम लोग जो इस एनकाउंटर को लेकर सरकार की आलोचना कर रहे हैं और बार बार इस बात को दोहरा रहे हैं कि ये एनकाउंटर स्क्रिप्टेड था, उन्हें इस बात को समझना होगा कि चाहे वो अतीक का शूटर गुलाम रहा हो या फिर अतीक का बेटा असद.
ये लोग कोई दूध के धुले बिलकुल भी नहीं थे. यदि पुलिस ने इन्हें कुत्ते की मौत मारा है तो कहीं न कहीं इंसाफ ही हुआ है. वो तमाम लोग जो इनके प्रति हमदर्दी दिखा रहे हैं उन्हें एक बार उन परिवारों के विषय में भी सोचना चाहिए जिन्हें इन दोनों की दहशत ने बर्बाद कर दिया है. सवाल ये है कि क्या उन्हें जीने का हक़ नहीं था.
यदि अपराध और एनकाउंटर को धर्म के आईने से देखना है, तो आदित्य राणा के एनकाउंटर पर बवाल क्यों नहीं हुआ?
असद और गुलाम के एनकाउंटर के बाद तमाम मुस्लिम हितैषी सामने आ गए हैं और इस एनकाउंटर को बदले की राजनीति बता रहे हैं. कहा जा रहा है कि इस एनकाउंटर से यूपी पुलिस और सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ मुस्लिम समुदाय को डराने का प्रयास कर रहे हैं. वो तमाम लोग जो इन बातों को सोच रहे हैं और इसे धर्म के आईने से देख रहे है वो गलत हैं. यदि बात हिंदू मुस्लिम एनकाउंटर की ही होती तो अभी बीते दिनों तब भारी बवाल हुआ होता जब अतीक और गुलाम को नरक के द्वार भेजने वाली यूपी पुलिस ने यूपी के बिजनौर में पुलिस कस्टडी से फरार हुए आदित्य राणा का एनकाउंटर किया.
ध्यान रहे अभी बीते दिनों ही बिजनौर पुलिस को उस वक़्त बड़ी बड़ी कामयाबी हाथ लगी थी जब उसने पुलिस कस्टडी से फरार चल रहे ढाई लाख के इनामी बदमाश आदित्य राणा को ढेर किया था. बता दें कि पश्चिमी यूपी के बड़े बदमाशों में शुमार आदित्य राणा के हिरासत से भागने के बाद पुलिस का सिरदर्द बना हुआ था. पुलिस ने तमाम प्रयास किये मगर इसका नेटवर्क कुछ ऐसा था कि हर बार ही ये पुलिस की आंख में धूल झोंकने में कामयाब रहा. सोचने वाली बात ये है अपराध को लेकर यूपी पुलिस हिंदू मुस्लिम करती तो आदित्य राणा शायद ही कभी मुठभेड़ में ढेर किया जाता.
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