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Updated: 14 जुलाई, 2020 02:44 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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'पूरा देश कोरोना (Coronavirus) से लड़ रहा है और कांग्रेस (Congress), कांग्रेस से.' कहने को तो यह सिर्फ एक व्यंग्य है जो सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. लेकिन यह व्यंग्य ही अपने आप में बहुत कुछ कह रहा है. मौजूदा वक्त कांग्रेस के लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं है. एक तरफ बिहार का चुनाव (Bihar Elections) सिर पर है जहां की रणनीतियां तय नहीं हो पा रही हैं. तो दूसरी ओर राजस्थान (Rajasthan) का संकट खड़ा हो गया है. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी को राजस्थान के सियासी ऊथल-पुथल के बारे में कोई खबर ही नहीं ही थी. कांग्रेस को बखूबी मालूम था कि राजस्थान की सरकार में उठापटक हो सकती है. इसी लिए उसने अपनी सारी ताकत भी झोंक दी थी कि मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में ऐसा कुछ न होने पाए. ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने जो मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में किया उसका पूरा डर कांग्रेस को राजस्थान में भी था. लेकिन ये कांग्रेस की उस वक्त की सावधानियां ही थी कि वह राजस्थान का किला बचा ले गई थी. लेकिन कहते हैं न कि कोई खतरा अगर बना हुआ हो तो उसे एक लम्हे के लिए नहीं खत्म करना चाहिए बल्कि हमेशा के लिए उस खतरे को ही खत्म कर देना चाहिए.

Sachin Pilot, Ashok gehlot, Rajasthan, Congress, BJPगहलोत-पायलट के रूप में कांग्रेस राजस्थान में अपनी ही गलतियों का खामियाजा भुगत रही है

कांग्रेस राज्यसभा चुनाव के बाद बिल्कुल इत्मिनान से बैठ गई कि अब राजस्थान में कुछ नहीं होगा. राजस्थान की सरकार अब अपना कार्यकाल पूरा कर लेगी. कांग्रेस का यही सुकून उसकी गले की हड्डी बन गई, राजस्थान में वो सब कुछ अब हो रहा है जिसका डर कांग्रेस को राज्यसभा चुनाव के वक्त सता रहा था. सचिन पायलट, ज्योदिरादित्य सिंधिया दोनों ही नेताओं का वर्चस्व है जिनके रहने या न रहने से बहुत फर्क पड़ता है. राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की जीत में दोनों ही नेताओं की मेहनत को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है.

दोनों ही नेताओं का चुनाव में बहुत बड़ा योगदान था. चुनाव में जीत के बाद से ही कांग्रेस दो धड़े में बंट गया था. दोनों ही राज्यों में वहां के बड़े नेताओं के बीच गुटबाजी हो गई. और यह गुटबाजी इस कद्र हो गई कि सिर्फ बड़े नेताओं के बीच ही नहीं बल्कि निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के बीच भी गुटबाजियां हो गई. कांग्रेस आलाकमान ने जो फैसला लिया उससे बाहरी तौर पर तो एकता हो गई थी लेकिन आंतरिक तौर पर गुटबाजी अभी भी जारी है.

मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य और राजस्थान में सचिन पायलट के बीच लगभग एक ही जैसा फैसला हुआ था. दोनों ही नेताओं को मुख्यमंत्री पद से दूर रखा गया था. यहीं से मतभेदों का सिलसिला शुरू हुआ था जो समय समय पर नजर भी आ रहा था. भाजपा को इस बात की पूरी भनक थी कि मामला गर्म है मौजूदा वक्त का अभी से ही लाभ उठाया जा सकता है. भाजपा अपनी कोशिश में जुटी रही जैसे वह बिहार में नितीश कुमार को अपने खैमे में ला चुकी थी ठीक वैसा हीं दांव भाजपा मध्य प्रदेश में चल रही थी.

ज्योतिरादित्य की नाराजगी का पूरा फायदा बटोर रही थी दूसरी और कांग्रेस पार्टी थी जो इत्मिनान से सुकून की नींद में सो रही थी. उसे एहसास ही नहीं था कि ज्योतिरादित्य कभी ऐसा भी कर देंगे. कांग्रेस का यही सुकून उसके लिए काल साबित हो गया. ज्योतिरादित्य लगातार हाशिये पर जाते रहे और फिर एक दिन भाजपा का दामन थाम लिया. ज्योतिरादित्य ने कई बार कांग्रेस आलाकमान से दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के खिलाफ शिकायतें की लेकिन हर बार कांग्रेस इसे छोटी बातें समझता रहा. लोकसभा चुनाव के टिकट बंटवारे में खूब खेमेबाज़ी हुयी.

ज्योतिरादित्य का ये गुस्सा ही था जब वह अपनी ही सरकार कमलनाथ सरकार को कटघरे में खड़ा कर देते थे. कांग्रेस आलाकमान को यह सब भी छोटी ही बातें लगती थी. ज्योतिरादित्य को जब पूरी तरह एहसास हो गया कि गुटबाजी लगातार बढ़ती ही जा रही है तो वह अपने समर्थित विधायकों के साथ उसी भाजपा की ओर चले गए जो चुनाव के बाद से ही ज्योतिरादित्य से संपर्क साध रही थी. भाजपा की रणनीति पूरी तरह से सफल साबित हुयी.

भाजपा ने मध्य प्रदेश की सत्ता हासिल कर ली और फिर भाजपा को यहीं से हौसला मिला वह राजस्थान के मैदान में भी कूद पड़ी. दूसरी ओर थी कांग्रेस पार्टी जिसने इस गलती से भी सबक नहीं सीखा था. राजस्थान में भी पूरा घटनाक्रम मध्य प्रदेश की तरह ही था. यहां भी गुटबाजियां हावी थी. 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त इसे और हवा मिल गई. जब सचिन पायलट ने मुख्यमत्री के बेटे को भाजपा के कद्दावर नेता के सामने चुनावी मैदान में उतार दिया.

लोकसभा चुनाव में अशोक गहलोत के बेटे को हार मिली और अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच उहापोह की स्थिति बन गई. मुख्यमंत्री अपने बेटे की हार का कसूरवार सचिन पायलट को ही ठहराते थे जबकि सचिन पायलट अपनी नाराज़गी को लेकर लगातार अशोक गहलोत से दूर ही जा रहे थे. कांग्रेस आलाकमान ने इस मतभेद को भी छोटा ही समझा और राज्यसभा चुनाव के वक्त तो मामला किसी तरह संभाल लिया लेकिन उसके बाद का चैन कांग्रेस पार्टी को ले डूबा.

राजस्थान में गुटबाजी और तेज हो गई. सचिन पायलट को नोटिस थमा दी गई जिसमें उनपर आरोप लगाया गया कि वह राज्य सरकार के खिलाफ कार्य कर रहे हैं. यह बेवकूफी थी राज्य सरकार की जिसने खुद ही खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम कर लिया था. सचिन पायलट को यह इनता नागवार गुजरा कि उन्होंने पार्टी से जुदा होने का पूरा मन बना लिया है.

दूसरी ओर भाजपा लगातार उनसे संपर्क साधने का पूरा प्रयास कर रही है. सचिन पायलट भाजपा में जाएंगे, अलग पार्टी बनाएंगे या फिर मान जाएंगे इसका फैसला अगले कुछ ही घंटों मे हो जाएगा लेकिन कांग्रेस अपनी इस गलती से क्या सबक सीखेगी यह भी देखना दिलचस्प होगा. कांग्रेस पार्टी की यह सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है कि वह किसी भी नेताओं के बीच के मतभेदों को पूरी तरह दूर नहीं कर पाती है. जो आगे चलकर उसे ही नुकसान पहुंचा देता है. कांग्रेस ने इसी गलती के चलते पहले मध्य प्रदेश की सत्ता गवांई तो अब राजस्थान की सत्ता पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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