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Updated: 03 अक्टूबर, 2019 01:40 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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21 अक्टूबर को हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाने हैं. बीजेपी सहित तमाम छोटे छोटे राजनीतिक दल चुनावी तैयारियों में जुटे हैं, सिर्फ कांग्रेस को छोड़ कर. कांग्रेस में चुनावी तैयारी की कौन कहे - हरियाणा कांग्रेस का झगड़ा तो दिल्ली की सड़कों पर उतर आया है.

हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के खिलाफ नया मोर्चा खोल दिया है - सोनिया गांधी के सामने मुश्किल ये खड़ी हो गयी है कि चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ायें या फिर से पुराने पंचायत में ही उलझी रहें.

खास बात ये है कि अशोक तंवर भी हुड्डा स्टाइल में कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं - और हवाल दे रहे हैं बीजेपी से मिले ऑफर का!

अशोक तंवर का आरोप कांग्रेस में बिक रहा 5 करोड़ में टिकट!

जब महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी संदेश यात्रा में व्यस्त थे, हरियाणा कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर अचानक कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे और समर्थकों के साथ धरने पर बैठ गये. अशोक तंवर का आरोप है कि हरियाणा कांग्रेस में उम्मीदवारों को पैसे लेकर टिकट दिया जा रहा है और जो कार्यकर्ता पार्टी के लिए लगातार पसीना बहाते रहे हैं उन्हें को पूछ भी नहीं रहा है.

चुनाव की तारीख आने से पहले हरियाणा में सोनिया गांधी ने कई बदलाव किये थे. कांग्रेस नेतृत्व ने अशोक तंवर को हटा कर कुमारी शैलजा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया था - और विधानमंडल दल का नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा को. इस तरह किरन चौधरी को भी किनाने कर दिया गया. अशोक तंवर ने तब तो कुछ नहीं बोला लेकिन अब वो खुलेआम टिकट बंटवारे में पैसे के लेन-देन का इल्जाम लगा रहे हैं.

अशोक तंवर का कहना है कि बीते पांच साल में जिन नेताओं ने कांग्रेस के लिए काम किया है टिकट देने में उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है. ऊपर से, अशोक तंवर कहते हैं, जिन लोगों ने कांग्रेस के खिलाफ काम किया वे भूपिंदर सिंह हुड्डा के पसंदीदा उम्मीदवार बन रहे हैं.

अशोक तंवर का खुल्लम-खुल्ला इल्जाम है, "सोहना विधानसभा सीट का टिकट 5 करोड़ रुपये में बेच दिया गया...'

ashok tanwar follows hooda pressure politicsहरियाणा कांग्रेस में अशोक तंवर और हुड्डा फिर आमने सामने

अशोक तंवर को लेकर माना जाता रहा है कि वो राहुल गांधी के करीबी रहे हैं और चुनावों के ऐन पहले दबाव बनाकर हुड्डा ने उनका पत्ता साफ कर दिया. हुड्डा ने हरियाणा में एक रैली की थी और संकेत देने की कोशिश की कि अगर कांग्रेस नेतृत्व ने उनकी मांगें नहीं मानीं तो वो नयी पार्टी बना लेंगे. चुनाव सिर पर आ गये थे लिहाजा सोनिया गांधी को हुड्डा की शर्तें माननी पड़ी.

सोनिया गांधी के हस्तक्षेप से तात्कालिक तौर पर झगड़ा तो खत्म हो गया - लेकिन टिकट बंटवारे को लेकर लड़ाई फंस गयी. जाहिर है जो हुड्डा लगातार पांच साल तक अशोक तंवर के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे, भला उनके समर्थकों कों टिकट देकर अपने लिए आगे की मुसीबत क्यों मोल लेंगे?

बीजेपी की मददगार बन रही कांग्रेस!

भूपिंदर सिंह हुड्डा ने अशोक तंवर को हटाने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह वाली तरकीब अपनायी थी - और कामयाब रहे. अब अशोक तंवर हुड्डा का नुस्खा अपना रहे हैं. नेतृत्व ने अनसुना किया तो कांग्रेस टूट जाएगी - क्योंकि बीजेपी ने तो पहले से ही दरवाजे खोल रखे हैं.

अशोक तंवर अब हुड्डा के खिलाफ कई तरह के इल्जाम लगाने लगे हैं. मसलन, हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनवाने में भी हुड्डा की ही भूमिका रही. हालांकि, ये बात गले के नीचे नहीं उतरने वाली लगती है क्योंकि पांच साल पहले हुड्डा सत्ता में वापसी करना चाह रहे होंगे कि बीजेपी के मददगार बने होंगे.

ऐसे ही कुछ और भी इल्जाम लगाने और हुड्डा को कठघरे में खड़ा करने के बाद अशोक तंवर जल्दी ही मुद्दे पर आ जाते हैं. संकेत साफ है, कांग्रेस नेतृत्व ने उनकी बातों को नजरअंदाज किया तो पाला बदलते देर नहीं लगेगी. जाहिर है ऐसा हुआ तो अकेले तो कहीं जाएंगे नहीं - बैंड, बाजा और बारात भी तो साथ होगी.

अशोक तंवर बातों बातों में ही कह डालते हैं - 'बीजेपी ने मुझे 3 महीने में 6 बार पार्टी में शामिल होने का ऑफर दिया, लेकिन मैं नहीं गया और कभी नहीं जाउंगा.'

अशोक तंवर रंग दिखाने लगे हैं और हुड्डा की ही तरह कांग्रेस नेतृत्व पर धमकाते हुए दबाव बना रहे हैं. राज्यों में कांग्रेस के अंदरूनी झगड़ों के लिए अब तक राहुल गांधी को जिम्मेदार समझा जाता रहा - लेकिन ये तो लगता है सोनिया गांधी के लिए भी नेताओं में सुलह कराना और पार्टी के हित में काम करने के लिए राजी कर पाना मुश्किल क्या नामुमकिन होता जा रहा है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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