महाराष्ट्र-हरियाणा चुनाव से पहले Bypoll results का इशारा समझना होगा
महाराष्ट्र और हरियाणा में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को लेकर बीजेपी अपने तरीके से सारे इंतजाम कर चुकी है. कांग्रेस भी अपनी स्टाइल में तैयारियों में लगी है - ऐसे में उपचुनाव के नतीजे कितना मायने रखते हैं?
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चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों के लिए जहां एक एक सीट मायने रखती है, उपचुनावों को लगता है जैसे क्षेत्रीय या स्थानीय स्तर पर ही निपटा दिया जाता है. यूपी की हमीरपुर विधानसभा सीट सहित देश की चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए 23 सितंबर को वोट डाले गये थे.
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीखें तो आ चुकी हैं - लेकिन झारखंड के बारे में अभी नहीं मालूम. हां, दिल्ली को लेकर आप नेता संजय सिंह जरूर कह रहे हैं कि विधानसभा चुनाव झारखंड के साथ ही इस साल के आखिर तक हो सकते हैं.
जब कई राज्यों में विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हों, ऐसे में उपचुनावों के नतीजे बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन कुछ संकेत जरूर देते हैं जिनके राजनीतिक मायने समझना जरूरी होता है. उपचुनावों के इन नतीजों का न तो महाराष्ट्र में कोई असर पड़ने वाला है और न ही हरियाणा - फिर भी बीजेपी और कांग्रेस के प्रति देश की जनता का मूड पढ़ने की कोशिश तो हो ही सकती है.
जिसकी सरकार उसका MLA
देश की चार विधानसभा सीटों के लिए 23 सितंबर को हुए उपचुनाव के नतीजे आ गये हैं - लब्बोलुआब यही है कि जिस पार्टी की जहां सरकार है राज्य में हुए उपचुनाव के नतीजे उसी के पक्ष में गये हैं. हालांकि, आम चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश और राजस्थान के नतीजे इससे अलग रहे.
2018 में हुए राजस्थान चुनाव के नतीजे उपचुनावों की भविष्यवाणी को तो सच साबित कर दिये, लेकिन यूपी में अपनी ही सीट पर बीजेपी को हार से नहीं बचा पाने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आम चुनाव में हिसाब बराबर कर लिया.
ये नतीजे उसी अवधारणा की पुष्टि करते हैं कि जनता समझती है कि अगर उनका प्रतिनिधि सत्ताधारी पार्टी का नहीं होगा तो बस टकराव और आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहेगा. बाकी काम तो तमाम ही समझो.
हमीरपुर, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश की हमीरपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी ने कब्जा बरकरार रखा है. हमीरपुर के लोगों ने बीजेपी उम्मीदवार युवराज सिंह को 17 हजार वोटों से चुनाव जिता दिया है - बगैर इस बात की परवाह किये कि पुराने बीजेपी विधायक को हत्या के जुर्म में सजा होने के चलते सदस्यता गंवानी पड़ी थी. दरअसल, बीजेपी विधायक रहे अशोक सिंह चंदेल को हत्या के एक मामले में हाई कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा मिलने के बाद उनकी सदस्यता खत्म हो गयी थी और फिर उसी के चलते उपचुनाव हुआ.
2014 के बाद से ये पहला मौका रहा जब सभी प्रमुख पार्टियां अपने अपने उम्मीदवारों के साथ मैदान में डटी रहीं. बीजेपी को छोड़ कर किसी भी पार्टी के किसी बड़े नेता ने चुनाव प्रचार नहीं किया - लेकिन योगी आदित्यनाथ आखिर तक डटे रहे. गोरखपुर से लेकर कैराना तक बार बार दूध के जले योगी आदित्यनाथ भला हमीरपुर के छाछ को बगैर फूंके कैसे पी जाते.
UP और त्रिपुरा के नतीजे बीजेपी कार्यकर्ताओं के लिए उत्साहवर्धक है, लेकिन दंतेवाड़ा सीट पर कांग्रेस का कब्जा काफी महत्वपूर्ण है
हमीरपुर उपचुनाव की एक खासियत ये भी रही कि आम चुनाव के उलट मायावती और अखिलेश यादव अलग होकर चुनाव लड़े थे. वोटों के हिसाब से देखा जाये तो समाजवादी पार्टी ने बीएसपी को पीछे तीसरे स्थान पर धकेल दिया - और कांग्रेस के हिस्से में चौथा स्थान ही बच सका.
उत्तर प्रदेश के साथ बीजेपी ने त्रिपुरा में भी उपचुनाव जीत लिया है - इससे बाकी कुछ हो न हो, महाराष्ट्र-हरियाणा चुनावों में ये जीत कार्यकर्ताओं का उत्साह बनाये रखने में काम जरूर आएगी. साथ ही, बीजेपी नेतृत्व चुनावी भाषणों में जब भी सत्ता विरोधी फैक्टर का जिक्र आएगा मिसाल के तौर पर पेश कर सकता है.
बाधरघाट, त्रिपुरा
त्रिपुरा की बाधरघाट सीट पर हुए उपचुनाव में भी बीजेपी ने अपना कब्जा कायम रखा है. बीजेपी विधायक दिलीप सरकार के निधन के चलते ये सीट इसी साल अप्रैल में खाली हो गयी थी.
बीजेपी उम्मीदवार मिमी मजूमदार ने सीपीआई कैंडिडेट बुल्टी बिस्वास को 5276 वोटों के अतंर से हराकर ये सीट पक्की कर ली. कांग्रेस को यहां तीसरा स्थान मिला लेकिन उसके उम्मीदवार ने पिछले साल फरवरी में हुए विधानसभा चुनावों के मुकाबले काफी ज्यादा वोट हासिल किया. कांग्रेस ने यहां से रतन चंद्र दास ही फिर से उम्मीदवार बनाया था.
त्रिपुरा की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री बिप्लव देब के खिलाफ सत्ता विरोधी फैक्टर का कोई प्रभाव नहीं पड़ा - चाहे तो बीजेपी आने वाले विधानसभा चुनावों में इसे ऐसे भी प्रोजेक्ट कर सकती है.
यूपी और त्रिपुरा से अलग हटकर देखें तो छत्तीसगढ़ और उससे थोड़ा कम केरल का रिजल्ट बीजेपी के लिए निराश करने वाला समझा जा सकता है - क्योंकि ये सीट अब कांग्रेस के खाते में जा चुकी है.
दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़
दंतेवाड़ा में कांग्रेस उम्मीदवार देवती कर्मा ने बीजेपी के ओजस्वी मंडावी को 11, 331 वोटों से शिकस्त दे दी है. दंतेवाड़ा में बीजेपी विधायक भीमा मंडावी की एक नक्सली हमले में मौत हो जाने की वजह से यहां उपचुनाव हुआ था.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी चुनाव में काफी मेहनत की थी. देवती कर्मा 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भीमा मंडावी से हार गयी थीं. फिर बीजेपी ने भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी मंडावी को चुनाव मैदान में उतारा था. देवती कर्मा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे महेंद्र कर्मा की पत्नी हैं. महेंद्र कर्मा की भी एक नक्सली हमले में मौत हो गयी थी.
विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सत्ता तो गंवा दी थी लेकिन आम चुनाव में छत्तीसगढ़ की 11 में से नौ सीटें जीतने में कामयाब रही - लेकिन विधानसभा चुनाव में उसकी अपनी ही सीट हाथ से निकल गयी - क्योंकि ओजस्वी मंडावी की तुलना में लोगों ने देवती कर्मा से सहानुभूति ज्यादा दिखा दी.
पाला, केरल
सत्ताधारी LDF ने केरल की पाला सीट UDF से आखिरकार झटक ही ली है. बरसों बाद ऐसा पहली बार हुआ है. एलडीएफ उम्मीदवार मनि सी कप्पन ने 2943 वोटों से जीत दर्ज की है.
अगर उपचुनाव के नतीजे मायने रखते हैं तो लेफ्ट को कांग्रेस के विपक्षी मोर्चे से ये सीट जीत कर आम चुनाव में हुए नुकसान को लेकर थोड़ी राहत महसूस जरूर हो रही होगी. दूसरी तरह एनडीए को मिले 18044 वोट साफ इशारा कर रहे हैं कि केरल में पांव जमाने के लिए अभी उसे बहुत मेहनत करनी होगी.
पाला उपचुनाव का रिजल्ट कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है, बनिस्बत बीजेपी के मुकाबले. ये उपचुनाव केरल कांग्रेस (M) नेता केएम मणि के निधन से विधानसभा सीट खाली होने के कारण कराया गया था. कांग्रेस खेमे से एक सीट झटक कर मुख्यमंत्री पी. विजयन थोड़ी राहत की सांस जरूर ले सकते हैं.
महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव की तारीखें तो आ चुकी हैं - लेकिन झारखंड की नहीं. अब आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह कह रहे हैं कि हो सकता है - झारखंड के साथ साथ दिल्ली के भी चुनाव कराये जायें. संजय सिंह के मुताबिक ऐसा तभी हो पाएगा जब बीजेपी महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव जीतने में कामयाब हो पाये.
जहां तक बीजेपी का सवाल है वो तो महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों ही राज्यों में चुनाव जीतकर सत्ता में वापसी तय मान कर चल रही है. चुनाव में जीत को अपने हिसाब से हर संभव तरीके से सुनिश्चित करने के बाद बीजेपी रिस्क मैनेजमेंट में लगी हुई है. विपक्ष को सिर उठाने का कोई मौका न मिले इसका पूरा इंतजाम किया जा रहा है.
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